संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों के इस्तेमाल और प्रभाव को लेकर अमेरिका और रूस के बीच तनातनी

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Feb 09, 2022

संयुक्त राष्ट्र|  संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों के इस्तेमाल और उनके प्रभाव को लेकर अमेरिका एवं उसके सहयोगियों और रूस एवं चीन के बीच सोमवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तनातनी हो गई।

परिषद के अध्यक्ष रूस की मेजबानी में ‘प्रतिबंध संबंधी सामान्य मामले: उनके मानवीय और अनपेक्षित परिणामों को रोकना विषय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की खुली बहस आयोजित की गई, जिसमें रूस ने अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य देशों एवं समूहों द्वारा लागू किए गए ‘‘एकतरफा प्रतिबंधों’’ की निंदा की।

संयुक्त राष्ट्र की राजनीतिक प्रमुख रोजमेरी ए डिकार्लो ने परिषद से कहा कि 14 संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध व्यवस्थाएं हैं: उदाहरणार्थ वे लीबिया, माली, दक्षिण सूडान और यमन में संघर्ष के समाधान को सहयोग देती हैं, गिनी बिसाऊ में उनका उद्देश्य सरकार के असंवैधानिक परिवर्तनों को रोकना है, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, कांगो और सोमालिया में वे प्राकृतिक संसाधनों के अवैध दोहन पर अंकुश लगाती हैं, उत्तर कोरिया में उनका मकसद हथियारों के प्रसार पर रोक लगाना है और वे इस्लामिक स्टेट और अलकायदा के आतंकवादी खतरों पर रोक लगाती हैं।

डिकार्लो ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों में 1990 के दशक के बाद से कई बदलाव लाए गए हैं, ताकि इनके आम नागरिकों और तीसरे देशों पर न्यूनतम प्रतिकूल प्रभाव पड़े और सुरक्षा परिषद की अधिकतर प्रतिबंध व्यवस्थाओं में मानवीय छूट को शामिल किया गया है और यह छूट मुहैया कराई गई है। संयुक्त राष्ट्र में बैठक की अध्यक्षता कर रहे रूस के उपराजदूत दमित्री पोलियांस्की ने कहा कि कई प्रतिबंध व्यवस्थाएं राष्ट्र निर्माण और आर्थिक विकास की योजनाओं में हस्तक्षेप करती हैं।

उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद को उन्हें हटाने के लिए अधिक यथार्थवादी मापदंड तय करने चाहिए, ताकि उन्हें हटवाना ‘‘कोई असंभव मिशन’’ नहीं बन जाएं। इस बीच, संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत लिंडा थॉमस ग्रीनफील्ड ने कहा कि प्रतिबंध एक ऐसा कारगर तरीका है, जिसके कारण ‘‘आतंकवादियों के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणालियों के जरिए धन एकत्र करना मुश्किल हो जाता’’ है और उसने उत्तर कोरिया के परमाणु एवं बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रमों की ‘‘कुछ क्षमताओं’’ के विकास की गति को धीमा किया है।

ब्रिटेन के उप राजदूत जेम्स कारियुकी ने कहा कि अंगोला, आइवरी कोस्ट, लाइबेरिया और सिएरा लियोन में संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध की महत्ता साबित हुई है। संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत झांग जुन ने एकतरफा प्रतिबंधों को ‘‘अत्यधिक हानिकारक’’ बताया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के कदमों ने ‘‘लक्षित देशों में आर्थिक एवं सामाजिक विकास के कार्यों और वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी संबंधी प्रगति’’ को बाधित किया है।

ग्रीनफील्ड ने इसके जवाब में कहा कि अमेरिका सुरक्षा परिषद समेत बहुपक्षीय तरीके से प्रतिबंध लगाने को तरजीह देता है, लेकिन सुरक्षा परिषद के कुछ सदस्य देश ‘‘शांति प्रक्रिया को बाधित करने वालों, हाई प्रोफाइल आतंकवादियों, मानवाधिकारों और प्रतिबंधों का उल्लंघन करने वालों को प्रतिबंध सूची में डालने’’ की प्रक्रिया को बाधित करते हैं, तो अमेरिका और कई अन्य देशों को कदम उठाने पड़ते हैं।

अलग-अलग देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के गैरकानूनी होने के रूस के तर्क के जवाब में ग्रीनफील्ड ने कहा, ‘‘अमेरिका इस बात को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करता है।’’

संयुक्त राष्ट्र में फ्रांस की उप राजदूत नथाली ब्रॉडहर्स्ट ने कहा कि यूरोपीय संघ के प्रतिबंध ‘‘अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार’’ हैं।

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