Swami Vivekananda Death Anniversary: स्वामी विवेकानंद ने पहले ही कर दी थी अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी, जानिए कुछ अनसुनी बातें

By अनन्या मिश्रा | Jul 04, 2024

आज ही के दिन यानी की 04 जुलाई को स्वामी विवेकानंद का निधन हो गया था। स्वामी विवेकानंद ने बहुत कम समय में कई ऐसे काम किए थे, जिनसे आज भी लोग प्रेरणा लेते हैं। उनके पूरे जीवन को देखा जाए, तो ऐसा लगता है कि वह एक उद्देश्य के साथ जन्मे थे और जब उस उद्देश्य की पूर्ति हो गई, तो उन्होंने अपनी देह का त्याग कर दिया। बताया जाता है कि स्वामी विवेकानंद ने अपनी मौत की पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म 

पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में 12 जनवरी 1863 को स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था। राजस्थान के खेतड़ी के राजा अजित सिंह ने उनको विवेकानंद नाम दिया था। उनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वह बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में काफी होशियार थे। स्वामी विवेकानंद ने गुरू श्रीरामकृष्ण परमहंस से प्रेरित होकर उन्होंने महज 25 साल की उम्र में सांसारिक मोह माया का त्याग कर दिया। 

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आध्यात्मिक जीवन

उन्होंने अपना पूरा जीवन आध्यात्म और हिंदुत्व के प्रचार प्रसार में लगा दिया। जब विवेकानंद सन्यासी बनें, तो वह ईश्वर की खोज में निकल पड़े। आध्यात्म की राह पर चलने के बाद उन्होंने विश्व को हिंदुत्व और आध्यात्म का ज्ञान दिया। एक बार जब स्वामी विवेकानंद रेलवे स्टेशन पर थे, तो उन्होंने अयाचक व्रत किया हुआ था। यह ऐसा व्रत होता है, जिसमें किसी से मांगकर नहीं खाया जाता है। व्रत खत्म होने के बाद भी वह किसी से कुछ मांगकर नहीं खाया। तब उनके पास बैठा एक व्यक्ति उनको चिढ़ाने का प्रयास करता है और उनके सामने खाना शुरूकर दिया था। वह बार-बार स्वामी के सामने पकवान की तारीफ करने लगा। उस दौरान वह ध्यान की मुद्रा में बैठे थे और अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस को याद कर रहे थे।


ऐसे मिला भोजन

उस दौरान दोपहर का समय था और उस दौरान नगर के ही एक शख्स को भगवान राम ने दर्शन दिया था। उन्होंने कहा कि रेलवे स्टेशन पर मेरा भक्त आया है, उसका व्रत है और उसे तुमको भोजन कराना है। पहले तो सेठ को यह भ्रम लगा। लेकिन जब सेठ सोता है तो भगवान उसको दोबारा दर्शन देते हैं और भगवान को भोजन कराने के लिए कहते हैं। इसके बाद वह सेठ स्टेशन जाता है और संत के भेष में बैठे स्वामी विवेकानंद को प्रणाम कर पूरी घटना बताते हैं। सेठ स्वामी विवेकानंद से कहता है कि उनके कारण भगवान ने उसे दर्शन दिए। स्वामी विवेकानंद सोचते हैं कि वह तो अपने मन में गुरु को याद कर रहे थे। इसके बाद सेठ स्वामी विवेकानंद को भोजन कराता है और उनका व्रत पूरा होता है।


शिकागो यात्रा

स्वामी विवेकानंद से अपने कार्यों से पूरे विश्व में भारत का डंका बजाया था। बता दें कि 11 सितंबर 1893 स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित धर्म संसद में भाषण दिया था। इस भाषण की शुरूआत उन्होंने 'अमेरिकी भाई और बहनों से की थी'। उन्होंने कहा था कि मेरे भाइयों और बहनों मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिस धरती ने सभी देशों व धर्मों के सताए लोगों को अपने यहां पर शरण देने का काम किया।


मृत्यु की भविष्यवाणी

बताया जाता है स्वामी विवेकानंद ने कई बार अपने शिष्यों से कहा था कि वह 40 साल से अधिक जीवित नहीं रहेंगे। हालांकि कहा जाता है कि उनका किसी बीमारी से निधन हुआ था। लेकिन अपनी मृत्यु से पहले स्वामी ने अपने एक शिष्य पत्र लिखकर उसे देखने की इच्छा जाहिर की थी। उन्होंने पत्र में इस बात का भी जिक्र किया था कि वह दो महीने में मृत्यु के मुंह में जा रहे हैं। जिसके बाद स्वामी विवेकानंद ने 04 जुलाई 1902 को बेलूर मठ में समाधि ली थी।

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