दालों के बढ़ते दाम पर लगेगी लगाम, जमाखोरी पर अंकुश लगाने के लिये सरकार कर रही काम

By अंकित सिंह | Jul 03, 2021

नयी दिल्ली। देश में लगातार महंगाई की समस्या बढ़ती जा रही है। आम आदमी पर खर्च का दबाव बढ़ता जा रहा है। पेट्रोल-डीजल और एलपीजी की कीमतों में बढ़ोतरी तो हो ही रही है। साथ ही साथ खाद्य पदार्थों की भी कीमतों में जबरदस्त उछाल देखने को मिल रहा है। रिफाइन और सरसों के तेल के दामों में भी बढ़ोतरी देखी जा रही है। सब्जियां तो महंगी है ही साथ ही साथ अब दाल की कीमतों में भी भारी उछाल देखा जा रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार अब ऐसे कई कदम उठाने जा रही है जिससे कि महंगाई को कंट्रोल किया जा सकता है। बढ़ते दाल और जमाखोरी को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने मूंग की दाल को छोड़कर अन्य सभी दालों की स्टॉक सीमा तय कर दी है। यह सीमा थोक, खुदरा विक्रेताओं, आयातकों और मिल मालिकों सभी के लिये अक्टूबर 2021 तक लागू की गई है।

 

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केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की ओर से इस संबंध में एक आदेश जारी किया गया है जिसके मुताबिक दालों का स्टॉक रखने की सीमा तत्काल प्रभाव से लागू कर दी गई है। मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इस साल जनवरी-जून की अवधि के दौरान दालों की खुदरा कीमतों में 20 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हुई। अरहर, उड़द और मसर दाल के खुदरा दाम में इस दौरान 10 से 20 प्रतिशत तक वृद्धि दर्ज की गई। मंत्रालय ने आदेश में कहा कि थोक विक्रेताओं के लिये 200 टन दाल की स्टॉक सीमा होगी। हालांकि, इसके साथ ही यह शर्त होगी कि वह एक ही दाल का पूरा 200 टन से अधिक स्टॉक नहीं रख सकेंगे। खुदरा विक्रेताओं के लिए यह स्टॉक सीमा पांच टन की होगी।

 

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दाल मिल मालिकों के मामले में, स्टॉक की सीमा उत्पादन के अंतिम तीन महीने या वार्षिक स्थापित क्षमता का 25 प्रतिशत, जो भी अधिक है उसके मुताबिक होगी। आयातकों के मामले में दालों की स्टॉक सीमा 15 मई, 2021 से पहले रखे या आयात किए गए स्टॉक के लिए थोक विक्रेताओं के बराबर की स्टॉक सीमा होगी। आदेश में कहा गया है कि 15 मई के बाद आयात दालों के लिए आयातकों पर स्टॉक सीमा आयातित माल को सीमा शुल्क मंजूरी मिलने की तिथि के 45 दिन बाद लागू होगी। स्टॉक सीमा वही होगी जो कि थोक विक्रताओं के लिये तय की गई है। मंत्रालय के अनुसार, यदि संस्थाओं का स्टॉक निर्धारित सीमा से अधिक है, तो उन्हें उपभोक्ता मामलों के विभाग के ऑनलाइन पोर्टल (एफसीएआईएनएफओ वेब डॉट एनआईसी डॉट आईएन) पर इसे घोषित करना होगा और आदेश की अधिसूचना के 30 दिनों के भीतर निर्धारित सीमा के भीतर लाना होगा।

 

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मंत्रालय ने कहा कि मार्च-अप्रैल में दालों की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हुई है। बाजार को सही संकेत देने के लिए तत्काल नीतिगत निर्णय की आवश्यकता महसूस की गई।मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि अरहर और उड़द दाल की खुदरा कीमतें अब बढ़कर 110 - 110 रुपये किलो हो गई हैं, जो जनवरी में 100 रुपये किलो थी। मसूर दाल की कीमत 21 प्रतिशत बढ़कर 85 रुपये किलो हो गई है, जो पहले 70 रुपये किलो थी जबकि चना दाल की कीमत समीक्षाधीन अवधि में 65 रुपये किलो से बढ़कर 75 रुपये किलो हो गई।दालों की कीमतों की वास्तविक समय पर निगरानी के लिए मंत्रालय ने कहा कि जमाखोरी की अवांछित प्रवृति पर नजर रखने के लिए एक वेब पोर्टल विकसित किया गया है। दालों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए किए गए अन्य उपायों में, सरकार ने अक्टूबर तक अरहर, उड़द और मूंग के खुले आयात की अनुमति दी है, उन्हें आयात की प्रतिबंधित श्रेणी से हटा दिया गया है। यहां तक कि दालों के मामले में आयात की स्वीकृत कराने में लगने वाले समय को भी कम किया गया है। इसके अतिरिक्त, दालों के आयात के लिए म्यांमार, मलावी और मोजाम्बिक के साथ पांच वर्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं।

 

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म्यांमार के साथ ढाई लाख टन उड़द और एक लाख टन तुअर दाल के वार्षिक आयात समझौता, इसी तरह मालावी से सालाना एक लाख टन अरहर और मोजाम्बिक के साथ दो लाख टन अरहर के वार्षिक आयात के समझौते को अगले पांच साल के लिए और बढ़ा दिया गया है। दालों की कीमतों को कम करने के लिए, केंद्र ने वर्ष 2020-21 में मिलिंग, प्रसंस्करण, परिवहन, पैकेजिंग और सेवा शुल्क की लागत वहन करके राज्य सरकारों को दालों का बफर स्टॉक जारी किया। मूंग, उड़द और अरहर की दाल, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उचित मूल्य की दुकानों, उपभोक्ता सहकारी समिति के बिक्री केन्द्र जैसे खुदरा दुकानों, आदि के माध्यम से आपूर्ति करने के लिए दी गई। फसल वर्ष 2020-21 (जुलाई-जून) में देश का दलहन उत्पादन दो करोड़ 56 लाख टन था। सरकार का लक्ष्य मूल्य स्थिरीकरण कोष योजना के तहत इस साल दालों का 23 लाख टन का बफर स्टॉक बनाने का है।सरकार ने खाद्य तेलों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए भी कई उपाय किए हैं, जिसमें सितंबर तक कच्चे पाम तेल और रिफाइंड पाम तेल के आयात शुल्क में कमी की गई है।

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