By सुखी भारती | Jun 15, 2023
वीर अंगद रावण की कलुषित सभा में, सिंह की भाँति गरज रहे हैं। रावण सच में स्वयं को घिरा सा पा रहा है। लेकिन उसका अहंकार उसे हार मानने से मना कर रहा है। इस कारण रावण की मनःस्थिति ऐसी है, कि वह प्रभु के बल का बखान करने की बजाये, स्वयं के बल के ही गीत गाये जा रहा है। साथ में व्यर्थ की तुलना भी करे जा रहा है, कि श्रीराम जी की वानर सेना में तो उसके समान कोई महान व बलशाली योद्धा ही नहीं है। रावण के वानर सेना के बारे में किए गए नापतोल तो छोड़िए, वह तो इतना मूढ़ है, कि वह तो श्रीराम जी को भी, स्वयं की भाँति परिस्थितियों का ही दास समझे बैठा है। रावण श्रीराम जी के संबंध में बोला-
‘तुम्हरे कटक माझ सुनु अंगद।
मो सन भिरिहि कवन जोधा बद।।
तब प्रभु नारि बिरहँ बलहीना।
अनुज तासु दुख दुखी मलीना।।’
रावण वीर अंगद को चिढ़ाता हुआ बोला, कि अरे अंगद! सुन, तेरी सेना में बता तो, ऐसा कौन सा योद्धा है, जो मुझसे भिड़ सके? तेरा मालिक तो स्त्री वियोग में बलहीन हो रहा है, और उसका छोटा भाई उसी के दुख से दुखी और उदास है। तुम अथवा तुम्हारा चाचा अगर स्वयं को बहुत बड़े योद्धा समझ रहे हो, तो सुनलो, तुम दोनों तो वैसे भी नदी तट के वृक्ष हो। मेरा भाई विभीषण जो है, वह भी बड़ा डरपोक है। मंत्री जाम्बवान बहुत बूढ़ा हो चुका है। वह अब लड़ाई में क्या कुछ कर सकता है? नल व नील तो शिल्पकार हैं, उन्हें भला क्या पता, कि युद्ध किस बला का नाम है। लेकिन हाँ, एक वानर अवश्य महान व बलवान था, जो पहले आया था, और उसने लंका जलाई थी।
रावण ने जैसे ही यह शब्द कहे, कि एक वानर ने यहाँ आकर लंका जलाई थी, तो वीर अंगद को मानों रावण पर व्यंग्य बाण छोड़ने का बहाना मिल गया। वे तपाक से बोले, कि अरे क्या कह रहे हो लंकापति रावण! कहीं तुम मिथया भाषण तो नहीं कर रहे? अच्छा सच-सच बताओ, क्या वाकई में तुम्हारी लंका एक छोटे से वानर ने जला कर भस्म कर दी थी? वैसे ऐसे वचन सुन कर, भला कौन इसे सत्य मानेगा? क्या तुम्हारी लंका का सुरक्षा कवच इतना ही हलका है, कि एक साधारण सा वानर आकर भी उसे भेद सकता है। रही बात यह, कि वह वानर बहुत बलशाली था, तो यह तुम्हारा भ्रम मात्र है। कारण कि जिसे तुमने बहुत बड़ा योद्धा कहकर सराहा है, वह तो सुग्रीव का एक छोटा सा हरकारा है। वह बहुत चलता है, वीर नहीं है। उसको तो हमने केवल खबर लेने के लिए भेजा था-
‘जो अति सुभट सराहेहु रावन।
सो सुग्रीव केर लघु धावन।।
चलइ बहुत सो बीर न होई।
खबरि लेन हम सोई।।’
वीर अंगद ने श्रीहनुमान जी के दिव्य चरित्र के संबंध में जो कथन किया, वह हमें आश्चर्य में डालने वाला है। कारण कि वीर अंगद तो श्रीहनुमान जी का अतिअंत सम्मान करते हैं। फिर उनके संबंध में यह कहना, कि वे तो श्रीराम जी की सेना के एक अति साधारण वानर हैं, व उसे तो बस चलने फिरने की आदत है, और इसी के चलते हमने उसे तुम्हारी खबर लेने के लिए भेजा था। इस बहाने उस वानर का चलने फिरने का चाव भी पूरा हो जायेगा, और तुम्हारी लंका की पूरी जानकारी भी प्राप्त हो जायेगी। लेकिन मुझे अब यह सुनकर आश्चर्य हो रहा है, कि क्या उस वानर ने सचमुच ही प्रभु की आज्ञा के बिना ही, तुम्हारी लंका को अग्नि की भेंट चढ़ा दिया था? तभी मैं सोचूं, कि वह वानर लौट कर, सुग्रीव के पास वापिस क्यों नहीं आया? उसे भय है, कि उसने बिना आज्ञा के ही लंका जलाने का काण्ड़ कर डाला, तो कहीं सुग्रीव उसे दण्ड़ न दे, तो शायद इसी कारण, भयग्रस्त हो वह कहीं छुप कर रह रहा है।
सज्जनों विचार कीजिए, कि क्या वीर अंगद श्रीहनुमान जी के संबंध में ऐसे हलके वाक्य कह सकते हैं? कारण कि श्रीहनुमान न ही तो कोई चलने फिरने वाली आदत वाले कोई साधारण वानर थे। और न ही वे सुग्रीव के भय से कहीं छुप कर रह रहे थे। तो फिर वीर अंगद ने श्रीहनुमान जी के संबंध में, ऐसे शोभाहीन से प्रतीत होने वाले शब्दों का प्रयोग क्यों किया? सज्जनों यही तो एक भक्त का चातुर्य है। संसार में लोगों की प्रशंसा में भी निंदा छुपी होती है। और यहाँ जहाँ प्रभु की भक्ति से परिपूर्ण भक्त होते हैं। वहाँ निंदा में भी अपने प्रभु, व भक्त की प्रशंसा छुपी होती है। प्रशंसा इसलिए, क्योंकि वीर अंगद इसी बहाने से रावण की असफलता व निर्बलता से उसका परिचय तो करवा ही रहे हैं। साथ में प्रभु के एक वानर के पराक्रम का भी गुनगाण गा रहे हैं। वे रावण को यह अहसास करवाना चाहते हैं, कि प्रभु श्रीराम जी की सेना में ऐसे-ऐसे योद्धा हैं, जो ऐसे घूमने घामने भी आये हों, तो भी बातों ही बातों में लंका जैसे अति रक्षात्मक स्थान को भी जला डालते हैं। वीर अंगद जी कितने साधारण शब्दों में कह रहे हैं, कि श्रीराम जी के वानरों ऐसा अथाह बल है, और रावण है, कि सबको बलहीन ही माने बैठा है। साथ ही यह भी बता दिया, कि हमारे यहाँ सेनापति सुग्रीव का कितना भय व प्रभाव है, उसके भय से वह वानर आज तक छिप कर रह रहा है। वीर अंगद ने कहा, कि हे रावण, तुमने सच ही कहा था, कि हमारी सेना में ऐसा कोई भी नहीं, कि जो तुमसे लड़ने में शोभा पाये। प्रीति और बैर बराबर वालों में ही शोभा देता है, नीति ऐसा ही कहती है। सिंह यदि मेंढकों को मारे, तो ऐसे में सिंह की भला क्या शोभा बढ़ेगी?
रावण वीर अंगद के ऐसे हृदय को भेदने वाले शब्द सुन कर तिलमिला जाता है। आगे प्रसंग में क्या घटता है, जानेंगे अगले अंक में---(क्रमशः)---जय श्रीराम।
- सुखी भारती