By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Nov 26, 2019
नयी दिल्ली। वैचारिक मतभेदों से ऊपर उठकर, संविधान-सम्मत प्रक्रियाओं का पालन करने को संवैधानिक नैतिकता का ‘‘सार-तत्व’’ करार देते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को कहा कि देश में हर प्रकार की परिस्थिति का सामने करने के लिए संविधान सम्मत रास्ते उपलब्ध हैं और ‘‘इसलिये संविधान की मर्यादा, गरिमा और नैतिकता के अनुरूप काम करें ।’’ उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में हम सभी को संवैधानिक मूल्यों, ईमानदारी को अपनाते हुए भय, प्रलोभन, पक्षपात, राग द्वेष एवं भेदभाव से मुक्त रहकर काम करने की आवश्यकता है। ऐसे में संविधान निर्माताओं की भावना को शुद्ध अंत:करण से अपनाना चाहिए ।संविधान के अंगीकार के 70 वर्ष पूरे होने के अवसर पर संसद के केन्द्रीय कक्ष में आयोजित लोकसभा एवं राज्यसभा संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ भय, प्रलोभन, राग-द्वेष, पक्षपात और भेदभाव से मुक्त रहकर शुद्ध अन्तःकरण के साथ कार्य करने की भावना को हमारे महान संविधान निर्माताओं ने अपने जीवन में पूरी निष्ठा व ईमानदारी से अपनाया था।
उनमें यह विश्वास जरूर रहा होगा कि उनकी भावी पीढ़ियां, अर्थात हम सभी देशवासी भी, उन्हीं की तरह, इन जीवन-मूल्यों को, उतनी ही सहजता और निष्ठा से अपनाएंगे।’’उन्होंने कहा, ‘‘ आज इस पर हम सबको मिलकर आत्म-चिंतन करने की जरूरत है । ’’ राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ संविधान के अनुसार, प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह संविधान के आदर्शों और संस्थाओं का आदर करे; आज़ादी की लड़ाई के आदर्शों का पालन करे; ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध हैं; तथा हमारी संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे ।’’कोविंद ने कहा, ‘‘ हमारे देश में हरप्रकार की परिस्थिति का सामने करने के लिये संविधान सम्मत रास्ते उपलब्ध है । इसलिये हम जो भी कार्य करें, उसके पहले यह जरूर सोचे कि क्या हमारा कार्य संवैधानिक मर्यादा, गरिता और नैतिकता के अनुरूप है । ’’ संविधान के आदर्शो के प्रति संकल्पबद्ध रहने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा , ‘‘मुझे विश्वास है कि इस कसौटी को ध्यान में रखकर अपने संवैधानिक आदर्शो को प्राप्त करते हुए हम सब भारत को विश्व के आदर्श लोकतंत्र के रूप में सम्मानित स्थान दिलायेंगे ।’’
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कोविंद ने कहा कि 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण में डा. अंबेडकर ने कहा था कि संविधान की सफलता भारत के लोगों और राजनीतिक दलों के आचार पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे संविधान निर्मताओं में यह विश्वास जरूर रहा होगा कि उनकी भावी पीढ़ियां, अर्थात हम सभी देशवासी भी, उन्हीं की तरह, इन जीवन-मूल्यों को, उतनी ही सहजता और निष्ठा से अपनाएंगे। आज इस पर हम सबको मिलकर आत्म-चिंतन करने की जरूरत है ।’’ कोविंद ने कहा, ‘‘ संविधान को सर्वोपरि सम्मान देना तथा वैचारिक मतभेदों से ऊपर उठकर, संविधान-सम्मत प्रक्रियाओं का पालन करना, ‘संवैधानिक नैतिकता’ का सार-तत्व है। भारत का संविधान’ विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र का आधार-ग्रंथ है। यह हमारे देश की लोकतान्त्रिक संरचना का सर्वोच्च कानून है जो निरंतर हम सबका मार्गदर्शन करता है।’’उन्होंने कहा कि यह एक राष्ट्रीय दस्तावेज़ है जिसके विभिन्न सूत्र, भारत की प्राचीन सभाओं व समितियों, लिच्छवि तथा अन्य गणराज्यों और बौद्ध संघों की लोकतान्त्रिक प्रणालियों में भी पाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि 17वीं लोकसभा में आज तक की सबसे बड़ी संख्या में, 78 महिला सांसदों का चुना जाना, हमारे लोकतन्त्र की गौरवपूर्ण उपलब्धि है । महिलाओं को शक्तियां प्रदान करने संबंधी स्थायी संसदीय समिति में, आज शत-प्रतिशत सदस्यता महिलाओं की है। कोविंद ने कहा किकेंद्र व राज्य सरकार के तीनों अंग अर्थात विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सराहना के पात्र हैं । उन्होंने संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को उद्धृत करते हुए कहा कि संविधान की सफलता भारत की जनता और राजनीतिक दलों के आचरण पर निर्भर करेगी।