By अनन्या मिश्रा | Mar 02, 2024
गुरु हरगोबिंद सिंह जी सिक्खों के छठे गुरु थे। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 02 मार्च को गुरु हरगोबिंद सिंह जी की मृत्यु हुई थी। उन्होंने सिख समुदाय के हित में बहुत सारे काम किए थे। गुरु हरगोबिंद सिंह ने सिक्ख समुदाय को सेना के रूप में संगठित करने का काम किया था। महज 11 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने पिता से गुरु की उपाधि प्राप्त कर ली थी। जिसके बाद 37 साल, 9 महीने, 3 दिन तक यह जिम्मेदारी संभाली थी। सिख गुरु के तौर पर उनका कार्यकाल सबसे अधिक था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर गुरु हरगोबिंद सिंह जी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म
अमृतसर के बडाली में गुरु हरगोबिंद सिंह 14 जून, सन् 1595 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम गुरु अर्जुन सिंह और माता का नाम गंगा था। गुरु हरगोबिंद सिंह एक शक्तिशाली योद्धा थे और उन्होंने एक मजबूत सेना का संगठन किया था। साथ ही दूसरे सिखों को लड़ने का प्रशिक्षण दिया था। उन्होंने एक मूल सिद्धांत बनाया था कि हर सिख योद्धा सिर्फ बचाव के लिए तलवार उठाएगा न कि किसी पर हमला करने के लिए। गुरु हरगोबिंद सिंह ने ही अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया था।
सिखों के छठे गुरु
गुरु हरगोबिंद सिंह 25 मई, 1606 ई. को सिक्खों के छठे गुरु बने थे। वहीं 28 फरवरी 1644 तक वह इस पद पर बने रहे थे। समाज में सिक्ख शक्ति के लिए अकाल तख्त साहिब एक बड़ी संस्था के रूप में उभरा। अकाल तख्त साहिब को सामाजिक और ऐतिहासिक पहचान मिली थी। उन्होंने अपने जीवन में मानव अधिकारों के लिए कई लड़ाइयां लड़ी थीं। आपको बता दें कि मुगल शासक जहांगीर गुरु हरगोबिंद साहब के व्यक्तित्व से इतना ज्यादा प्रभावित हुआ था कि उसने न सिर्फ उनको बल्कि 52 अन्य राजाओं को अपनी कैद से आजाद कर दिया था।
शाहजहां ने सिक्खों पर किया अत्याचार
साल 1667 में मुगल शासक जहांगीर की मृत्यु के बाद नए शासक शाहजहां ने सिखों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। जिसके बाद गुरु हरगोबिंद सिंह सिखों की रक्षा के लिए आगे आए। इस दौरान उन्होंने सिख समुदाय को सीख दी कि वह अपनी और अपने धर्म की रक्षा के लिए तलवार उठा सकते हैं। गुरु हरगोविंद के नेतृव्य में सिख सेना ने मुगलों की अजेयता को झुठलाते हुए चार बार शाहजहां की सेना को हराया।
मृत्यु
अपनी मृत्यु से पहले गुरु हरगोबिंद सिंह ने अपने पोते गुरु हर राय को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। प्राप्त जानकारी के मुताबिक एक युद्ध के दौरान उनके सीने में गहरी चोट लगी थी। इस चोट के कारण महज 42 साल की उम्र में पंजाब के कीरतपुर में 1644 को गुरु हरगोबिंद सिंह का निधन हो गया।