नई राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली- छात्रों के सर्वांगीण विकास की आधारशिला

By जे. पी. शुक्ला | Aug 08, 2020

भारत की शिक्षा प्रणाली में एक बहुत बड़ा परिवर्तन करते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 जुलाई 2020 को एक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) को मंजूरी दे दी। नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति संपूर्ण देश में सिर्फ स्कूल स्तर पर ही नहीं बल्कि उच्च शिक्षा के लिए भी एक व्यापक दृष्टि और ढांचा प्रदान करने के लिए बनाई गयी है। इस नई शिक्षा नीति में कई बड़े बदलाव किए गए हैं, जिनमें शीर्ष विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस स्थापित करने की अनुमति देना और छात्रों को व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करना शामिल है, जिसका उद्देश्य भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाना होगा। इस मंत्रिमंडल की बैठक में एक और महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया- मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development) का नाम बदल कर अब शिक्षा मंत्रालय (Ministry of Education) रख दिया गया है।

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वैसे तो नई शिक्षा नीति में बहुत सारे बदलाव किये गए हैं लेकिन जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण है वो है कि नई नीति में शिक्षा के 10+2 प्रारूप को बदल कर 5 + 3 + 3 + 4 कर दिया गया है। मतलब- 

 

5 साल का बुनियादी चरण- इसमें प्री-स्कूल या आंगनवाड़ी शिक्षा के 3 साल और कक्षा 1 और 2 सहित प्राथमिक शिक्षा के 2 साल शामिल होंगे. यह 3-8 आयु वर्ग के लिए निर्धारित किया गया है।

 

3 साल का प्रारंभिक चरण- यह प्रयोगात्मक शिक्षा पर ध्यान देने के साथ साथ कक्षा 3-5 से स्कूली शिक्षा को कवर करेगा। यह 8-11 से आयु वर्ग के बच्चों के लिए होगा।

 

3 साल का माध्यमिक चरण- यह कक्षा 6-8 के स्कूली शिक्षा को कवर करेगा और 11-14 से आयु वर्ग के लिए होगा।  

 

4 साल का माध्यमिक चरण-  यह कक्षा 9-12 से स्कूली शिक्षा के लिए होगा और इसे दो चरणों में कवर करेगा, जिसमें पहला चरण 9-10 के लिए और दूसरा 11-12 कक्षा के लिए होगा। 

 

यह नई स्कूल मूल्यांकन योजना शैक्षिक सत्र 2022-2023 से लागू होगी, जिसके अनुसार कक्षा 3, 5 और 8 में स्कूली परीक्षाएं प्रगति रिपोर्ट कार्ड के साथ बच्चे की बुनियादी शिक्षा का परीक्षण करेंगी। साथ ही साथ बच्चों की प्रमुख दक्षताओं और क्षमताओं के परीक्षण के लिए बोर्ड परीक्षाओं को और अधिक सरल और आसान बनाया जायेगा।


आइये इसके फायदे पर नज़र डालते हैं 


बचपन की देखभाल और शिक्षा (Early Childhood Care and Education- ECCE) को सम्मिलित किये जाने और उस पर फोकस करने के प्रयास की हम सभी सराहना करते हैं, क्योंकि यह प्रारंभिक शिक्षा के महत्व को दर्शाता है। बचपन की देखभाल और शिक्षा हर बच्चे के लिए उनके पूरे जीवन भर सीखने और उनके अच्छे भविष्य की नींव स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।  


भारत K-12 (from kindergarten to 12th grade) आबादी वाला दुनिया का सबसे  बड़ा देश है और प्रारंभिक स्कूल शिक्षा के सार्वभौमिकरण का घर है। सकल नामांकन अनुपात के सुधार पर ज़ोर देने और नए जीवन कौशल- जैसे कोडिंग पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने से भारत में भविष्य के नेताओं की एक मजबूत पाइपलाइन बनाने में भी मदद मिलेगी। 

 

शिक्षा प्रणाली में पांचवी कक्षा तक मातृभाषा को शिक्षा प्रदान करने के माध्यम के रूप में बढ़ावा देने के लिए यह एक बहुत स्वागत योग्य कदम है, लेकिन शिक्षण सामग्री केवल कुछ निर्धारित भाषाओं में ही उपलब्ध है। इसलिए, आदिवासी भाषाओं सहित अधिकांश भाषाओं में अधिक सामग्री पर निवेश करने की ज़रूरत पड़ेगी।

 

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रारंभिक बाल देखभाल शिक्षा (ECCE) और विकास पर एक नाटक-आधारित बहु-आयामी पाठ्यक्रम शामिल करके इस पर विशेष जोर दे रही है। ECCE का सार्वभौमिककरण हर बच्चे के सर्वांगीण विकास की नींव रखेगा जो कम उम्र में ही एक अद्वितीय कौशल को चरितार्थ करने में सक्षम होगा।

 

नई शिक्षा नीति प्रारंभिक बचपन के लिए पाठ्यक्रम और शैक्षणिक ढांचा, जो हर व्यक्ति के आधार को मजबूत करता है, उसके महत्व पर जोर देता है। यह अत्यंत रुचिकर और प्रेरक पहलू है कि इस नई शिक्षा नीति ने कम उम्र में ही वैज्ञानिक कौशल विकसित करने के महत्व पर किस तरह से ध्यान केंद्रित किया है।

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मैं समझता हूँ कि अगले पांच वर्षों में सभी भारतीयों को मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक कौशल प्रदान करने का यह उद्देश्य प्रशंसनीय है और इससे भारत को अशिक्षा का कलंक मिटाने में भी मदद मिलेगी। यह शिक्षा नीति सार्वजनिक और निजी दोनों स्कूलों के लिए लागू होने वाले सीखने के सामान्य मानकों को ला रहा है, जो मौजूदा शिक्षा प्रणाली में असमानताओं को दूर करेगा। नए प्रारूप 5 + 3 + 3 + 4 का पुनर्गठन एक स्वागत योग्य कदम है और स्कूली शिक्षा के दौरान यह प्रत्येक बच्चे का कौशल विकसित करेगा और युवाओं की रोज़गार क्षमता बढ़ाएगा।

 

क्षेत्रीय भाषाओं में प्राथमिक शिक्षा पर जोर और संस्कृत की शुरुआत के साथ साथ तीन भाषाओं का फ़ॉर्मूला देश के लोगों के लिए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में एक बड़ा वरदान साबित होगा।

 

बहुत सारे सुधारों, जैसे स्व-घोषणा प्रणाली होने, 4-वर्षीय स्नातक कार्यक्रम लाने, मुश्किल निरीक्षण प्रणाली की जगह 12+3 के बाद एक अतिरिक्त 1 साल जोड़ने से छात्रों को कई शीर्ष क्रम वाले वैश्विक कार्यक्रमों के लिए पात्र बनाने में मदद मिलेगी और इस तरह से छात्रों को जो पहले कई तरह की बाधाओं और परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था, अब वो सबकुछ ख़त्म हो जायेगा।


- जे. पी. शुक्ला

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