खट्टर के खोटे वादों की पोल जनता के सामने आखिर खुल ही गयी

By ललित गर्ग | Aug 31, 2019

देश की युवा पीढ़ी के सपने जख्मी हैं, जो सबूत बने हैं हमारे शासन के असफल प्रयत्नों के, अधकचरी योजनाओं के, सही सोच एवं सही योजनाओं के अभाव में मिलने वाले अर्थहीन परिणामों के। सार्थक एवं सफल प्रयत्न हो बेरोजगारी को दूर करने के, युवापीढ़ी के सपनों को नये पंख लगाने के। तभी नरेन्द्र मोदी सरकार को मिली ऐतिहासिक जीत की सफलता की सार्थकता होगी, तभी संभावनाओं भर नये भारत का निर्माण होगा। अन्यथा युवापीढ़ी का बेरोजगारी से तंग आकर आत्मदाह के लिये विवश होना, एक काला धब्बा है, एक त्रासदी है, विडम्बना है। जैसा कि हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर की सोनीपत की जनसभा में एक व्यक्ति द्वारा आत्मदाह करने की कोशिश करने की घटना का दुर्भाग्य घटित होना।

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हरियाणा में मुख्यमंत्री खट्टर इन दिनों युवाओं को रोजगार देने के वादे के साथ पूरे राज्य में जन आशीर्वाद यात्रा निकाल रहे हैं। सोनीपत के एक गांव में जब वे अपना रथ रोक कर जनता को संबोधित कर रहे थे, उसी वक्त रथ के पास पहुंचकर एक व्यक्ति ने खुद को आग लगा दी। वह पहले से अपने ऊपर तेल छिड़क कर आया था। बताते हैं कि वह व्यक्ति अपने बेटों को नौकरी न मिल पाने की वजह से बहुत व्यथित था। मुख्यमंत्री ने उसके बेटों को नौकरी देने का आश्वासन दिया था, पर उस दिशा में कोई प्रगति नहीं हो पाई थी। जिससे व्यथित होकर इस तरह आत्मदाह करने का प्रयास कर उसने खट्टर के घूम-घूम कर युवाओं को रोजगार देने के वादे की कलई खोल दी। यह आत्मदाह की कोशिश एक आत्म व्यक्ति का दर्द है, इसे हम किन्हीं राजनीतिक दलों का षड्यंत्र करार नहीं दे सकते।

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मोदी सरकार हो या उन्हीं की पार्टी की हरियाणा की सरकार-अपनी उपलब्धियों का चाहे जितना बखान करें, पर सच यह है कि आम आदमी की मुसीबतें एवं तकलीफें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। इसके बजाय रोज नई-नई समस्याएं उसके सामने खड़ी होती जा रही हैं, जीवन एक जटिल पहेली बनता जा रहा है। विकास की लम्बी-चौड़ी बातें हो रही है, विकास हो भी रहा है, देश अनेक समस्याओं के अंधेरों से बाहर भी आ रहा है। आम जनता के चेहरों पर मुस्कान भी देखने को मिल रही है, लेकिन युवा-चेहरे मुरझाए हुए हैं। क्या हरियाणा में खट्टर की जन आशीर्वाद यात्रा एवं उनकी मंशा वास्तव में युवा-दर्द को बांटना चाहती है, यदि ऐसा है तो रोजगार देने के झूठे वायदे क्यों? क्यों कोई व्यक्ति नौकरी देने के वायदों से ठगा जाता है, क्यों वह आत्मदाह करने को तत्पर होता है? क्या यह सरकार की नाकामी नहीं है? आखिर कब तक चुनावी वायदों के नाम पर, देश की जनता को ठगा जाता रहेगा, कब तक गुमराह किया जायेगा?

 

हरियाणा विधानसभा के चुनाव नजदीक हैं, इसलिए राजनीतिक दल लुभावने वादों के जरिए लोगों को अपनी तरफ खींचने के प्रयास में लगे हैं। खट्टर की जन आशीर्वाद यात्रा भी इसी मंशा से आयोजित है। युवाओं को आकर्षित करने की उनकी कोशिश की वजहें भी साफ हैं। दरअसल, पिछले पांच सालों में चाहे केंद्र हो या फिर राज्य सरकारें रोजगार के नये अवसर पैदा कर पाने में नाकाम रही है। खुद सरकारी आंकड़े इस बात के गवाह हैं। यों युवाओं को अपने व्यापार एवं उद्यम शुरू करने के लिए आसान शर्तों पर कर्ज उपलब्ध कराने की कई योजनाएं चलाई गई हैं। सरकारें कर्ज भी खूब बांटे जाने का दावा करती हैं, पर हकीकत यही है कि बेरोजगारी की दर पर काबू नहीं पाया जा सका है। नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद हजारों लोगों के हाथ का रोजगार भी छिन गया, बड़े-बड़े कॉरपोरेट क्षेत्र, कम्पनियों एवं उद्योगों में कर्मियों की छंटनी हो रही है। ऐसे में युवाओं और उन पर आश्रित परिजनों में हताशा साफ नजर आने लगी है, घनघोर अंधेरों का साया चहूं ओर परिव्याप्त है। इन जटिल होती स्थितियों के कारण कई जगह लोगों में नाराजगी भी दिखी है। इसी नाराजगी, असंतोष और भय को दूर करने के मकसद से मनोहरलाल खट्टर जन आशीर्वाद यात्रा में युवाओं को रोजगार देने का भरोसा दिलाते फिर रहे हैं। यह अलग बात है कि वे नए रोजगार का सृजन कैसे और कितना कर पायेंगे, इसका कोई भरोसेमंद खाका उनके पास नहीं है। कोरे आश्वासन एवं चुनावी वायदे देश की युवा पीढ़ी के घावों पर मरहम का काम नहीं कर पायेंगे।

 

 

क्या देश मुट्ठीभर राजनीतिज्ञों और पूंजीपतियों की बपौती बनकर रह गया है? चुनाव प्रचार करने हैलीकॉप्टर से जाएंगे पर उनकी जिंदगी संवारने के लिए कुछ नहीं करेंगे। वोट हासिल करने के लिये महिलाओं को मुफ्त बस एवं मेट्रो में यात्रा की घोषणा करेंगे, लेकिन खाली पड़े सरकारी पदों को भरने के नाम पर उनके सामने आर्थिक बजट नहीं होगा। तब उनके पास बजट की कमी रहती है। लोकतंत्र के मुखपृष्ठ पर ऐसे बहुत धब्बे हैं, गलत तत्त्व हैं, दोगलापन है। मानो प्रजातंत्र न होकर सज़ातंत्र हो गया। क्या इसी तरह नया भारत निर्मित होगा? राजनीति सोच एवं व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन हो ताकि अब कोई गरीब युवक नमक और रोटी के लिए आत्महत्या नहीं करे।

 

चुनाव के वक्त राजनीतिक दल गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई जैसी व्यापक स्तर पर असर डालने वाली समस्याओं को दूर करने के बढ़-चढ़ कर वादे करते देखे ही जाते हैं। मगर सत्ता में रहने वाली पार्टियों के लिए ऐसे वादे कई बार उलटा भी पड़ते हैं, क्योंकि लोगों के सामने उनके कामकाज का लेखा-जोखा होता है। मनोहर लाल खट्टर के कामकाज से लोग अपरिचित नहीं हैं। हालांकि आत्मदाह की ताजा घटना केवल उनके लिए राजनीतिक भविष्य का खतरा ही नहीं, बल्कि कड़ा संकेत है। मंदी के इस दौर में, जब बाजार में मायूसी का आलम है, कई क्षेत्रों में निराशा दिख रही है, अनेक कंपनियां अपने हाथ रोके हुए हैं, यह सभी सरकारों के लिए चेतावनी है।

 

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भारत में भी विकास की बातें बहुत हो रही हैं, सरकार रोजगार की दिशा में भी आशा एवं संभावना भरी स्वयं को जाहिर कर रही है। यह अच्छी बात है। लेकिन जब युवाओं से पूछा जाता है तो उनमें निराशा ही व्याप्त है। उनका कहना है कि बात केवल किसी भी तरह के रोजगार हासिल करने की नहीं है बल्कि अपनी मेहनत, शिक्षा, योग्यता और आकांक्षा के अनुरूप रोजगार प्राप्त करने की है। ऐसा रोजगार मिलना कठिन होता जा रहा है। उच्च शिक्षा एवं तकनीकी क्षेत्र में दक्षता प्राप्त युवाओं को सुदीर्घ काल की कड़ी मेहनत के बाद भी यदि उस अनुरूप रोजगार नहीं मिलता है तो यह शासन की असफलता का द्योतक हैं। डॉक्टर, सीए, वकील, एमबीए, ऐसे न जाने कितने उच्च डिग्रीधारी युवा पेट भरने के लिये मजदूरी या ऐसे ही छोटे-मोटे कामों के लिये विवश हो रहे हैं। उन्हें भी स्थायी के स्थान पर ठेका मजदूरी व अस्थायी मजदूरी के अवसर ही अधिक मिलते हैं। ऑटो चलाने या औद्योगिक घरानों एवं कम्पनियों में चपरासी बनने में कोई बुराई नहीं है, पर ऐसा कोई युवा जिसने प्रशिक्षित रोजगार के लिए लंबे समय से मेहनत की है, वह इस तरह के काम करना कतई पसंद नहीं करेगा।

 

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सोनीपत की आत्मदाह की घटना से विपक्ष को बैठे-बिठाए का एक मुद्दा मिल गया है, लेकिन विपक्ष तो और भी नाकारा एवं नाकामयाब है। उसने पहले भी जीवन से जुड़े जरूरी मुद्दे उठाने की बजाय केवल मोदी की आलोचना की है, सकारात्मक राजनीति की बजाय नकारात्मक राजनीति की है। विपक्ष यदि अपनी जिम्मेदारी सक्षम तरीके से निभाये तो सत्तापक्ष पर भी दबाव बन सकता है और ऐसी ज्वलंत समस्याओं के समाधान की दिशाएं उद्घाटित हो सकती हैं। लेकिन प्रश्न है कि क्या सत्ता पक्ष हो या विपक्ष बिखरते युवा सपनों पर विराम लगाने एवं रोजगार के नये अवसरों को उपलब्ध कराने की दिशा में कोई माध्यम बनेगा?

 

-ललित गर्ग

 

 

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