खाने का संबंध सिर्फ सेहत से ही नहीं है, बल्कि स्वाद भी इसमें एक अहम् भूमिका निभाता है। जब भी हम किसी तरह के खाने के बारे में सोचते हैं तो उसका स्वाद हमें मन ही मन महसूस होने लगता है। इतना ही नहीं, खाना बनाते समय भी इस बात का ध्यान रखा जाता है कि उसकी पौष्टिकता के साथ−साथ टेस्ट भी लाजवाब हो। लेकिन कभी−कभी ऐसा भी होता है कि मुंह में कोई स्वाद ही नहीं आता और आपको यह समझ नहीं आता कि ऐसा क्यों हो रहा है। यूं तो इसके कई कारण होते हैं। लेकिन कभी−कभी ऐसा अग्यूज़ीया नामक बीमारी के कारण भी होता है। इसमें व्यक्ति के मुंह का टेस्ट खत्म हो जाता है। तो चलिए आज हम आपको इसके बारे में बता रहे हैं−
क्या है अग्यूज़ीया
हेल्थ एक्सपर्ट बताते हैं कि बीमारी में व्यक्ति मीठा, खट्टा, कड़वा या नमकीन पदार्थों का स्वाद लेने में असमर्थ होते हैं। जिन लोगों के मुंह का स्वाद पूरी तरह चला जाता है, वह अग्यूज़ीया पीडि़त होते हैं। वहीं, जो लोग मीठे, खट्टे, कड़वे या नमकीन पदार्थों का स्वाद ले सकते हैं, लेकिन ऐसा करने की क्षमता कम होती है, उन्हें हाइपोगेसिया कहा जाता है।
कारण
हेल्थ एक्सपर्ट की मानें तो टेस्ट डिसऑर्डर के पीछे कई कारण हो सकते हैं। जैसे सिर में आघात, ऊपरी श्वसन पथ के संक्रमण, विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना, एट्रोजेनिक कारण, दवाएं, और ग्लोडोनिया हैं। सिर का आघात केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के क्षेत्रों में घाव का कारण बन सकता है। यह स्वाद उत्तेजनाओं के संचरण में शामिल न्यूरोलॉजिकल मार्गों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। वहीं, विटामिन बी 3 और जस्ता की कमी से अंतःस्रावी तंत्र के साथ समस्याएं हो सकती हैं, जिससे स्वाद हानि या परिवर्तन हो सकता है। इसके अलावा, विकिरण चिकित्सा, ग्लोसिटिस, तंबाकू का उपयोग व उम्र बढ़ने से स्वाद संवेदनशीलता में कमी आती है। वहीं कैंसर, गुर्दे की विफलता और यकृत की विफलता भी मुंह के स्वाद की क्षमता को प्रभावित करता है।
निदान
हेल्थ एक्सपर्ट बताते हैं कि स्वाद और गंध दोनों विकारों का निदान एक ओटोलरींगोलॉजिस्ट अर्थात् कान, नाक, गले, सिर और गर्दन के डॉक्टर द्वारा किया जाता है। एक ओटोलरींगोलॉजिस्ट एक स्वाद गुणवत्ता की न्यूनतम एकाग्रता को मापकर आपके स्वाद विकार की सीमा निर्धारित कर सकता है जिसे आप पहचान सकते हैं। वैज्ञानिकों ने स्वाद परीक्षण विकसित किया है जिसमें रोगी विभिन्न रासायनिक सांद्रता के प्रति प्रतिक्रिया करता है। इसमें एक सरल "घूंट, थूक और कुल्ला" परीक्षण शामिल हो सकता है, या विभिन्न केमिकल्स को जीभ के विशिष्ट क्षेत्रों में सीधे लागू किया जा सकता है।
मिताली जैन