विश्वास के आधार पर इलाज करने की चिकित्सा पद्धति है प्लेसिबो इफेक्ट, जानें इसके बारे में
प्लेसिबो एक लैटिन शब्द है। पांचवी सदी में बाइबल के एक अंश में भी 'प्लेसीबो डॉमिनोज़’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था, जिसका अर्थ है- मैं ईश्वर को प्रसन्न करूंगा। 18वीं सदी में सबसे पहली बार इस चिकित्सा पद्धति का प्रयोग किया गया था।
"विश्वास के दम पर दुनिया जीती जा सकती है", यह बात आपने अक्सर बड़े-बूढ़ों को कहते सुनी होगी। इस कथन का प्रयोग ना सिर्फ इंसान की आम जिंदगी बल्कि चिकित्सा पद्धति में भी किया जाता है। जी हाँ, प्लेसिबो इफेक्ट ऐसी ही एक चिकित्सा पद्धति है जिसमें रोगी को किसी दवा से नहीं बल्कि उसके विश्वास के आधार पर ठीक किया जाता है। इस प्रकार की चिकित्सा में डॉक्टर रोगी के मन में विश्वास पैदा करता है कि वह उसकी दवा से ठीक हो जाएगा। लेकिन असल में इस उपचार में मरीज को कोई दवा दी ही नहीं जाती है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में इलाज के लिए प्लेसिबो इफेक्ट का उपयोग सफलतापूर्वक किया जा रहा है। सिर्फ डॉक्टर ही नहीं पंडित-पुजारी और बाबा भी प्लेसिबो इफेक्ट का इस्तेमाल कर रहे हैं। जब आप किसी बाबा के पास अपनी परेशानी लेकर जाते हैं तो वह आपको कोई उपाय बताता है। वह आपको विश्वास दिलाता है कि उसके बताए उपाय से आपकी समस्या हल हो जाएगी और ऐसा होता भी है। जब व्यक्ति के मन में किसी चीज़ के प्रति विश्वास हो जाता है जो प्लेसिबो इफेक्ट का प्रभाव ज्यादा होता है। आइए जानते हैं इसके बारे में-
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क्या है प्लेसिबो इफेक्ट का मतलब
प्लेसिबो एक लैटिन शब्द है। पांचवी सदी में बाइबल के एक अंश में भी 'प्लेसीबो डॉमिनोज़’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था, जिसका अर्थ है- "मैं ईश्वर को प्रसन्न करूंगा।" 18वीं सदी में सबसे पहली बार इस चिकित्सा पद्धति का प्रयोग किया गया था। प्लेसिबो चिकित्सा में मरीज को ठीक करने के लिए उसके विश्वास के आधार पर उसका इलाज किया जाता है। प्लेसीबो एक ऐसी चिकित्सा है जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता।
मरीज के भ्रम का इलाज किया जाता है
अधिकतर ऐसा होता है कि व्यक्ति को वास्तव में कोई बीमारी नहीं होती है बल्कि उसको केवल यह भ्रम होता है कि वह बीमार है। प्लेसिबो चिकित्सा में इसी भ्रम का इलाज किया जाता है। उदाहरण के लिए आपको तीन-चार दिनों से सर्दी-जुखाम है। आप इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं और वह आपको दवा देता है।
डॉक्टर आपसे कहता है कि रोज़ाना एक गोली खानी है और एक हफ्ते बाद फिर से दिखाने आना। आप दवा लेते हैं और आपका दर्द ठीक हो जाता है। आपको उस डॉक्टर पर विश्वास हो जाता है। अब असल में होता क्या है कि डॉक्टर आपको ऐसी गोली देता है जिसमें कोई केमिकल साल्ट नहीं होता है मतलब उसमें कोई दवा होती ही नहीं है। दरअसल, सर्दी-जुखाम 4-5 दिनों में अपने आप ठीक हो जाता है। लेकिन आपको लगता है कि दवा का कमाल है। आधुनिक चिकित्सा पद्ध्तियो मे ऐसी गोलियाँ सफलतापूर्वक उपयोग की जा रही हैं।
क्या है शोधकर्ताओं का कहना
इस चिकित्सा का कोई प्रभाव नहीं होता है और अगर मरीज के स्वास्थ्य में कोई सुधार होता भी है तो वह किसी अन्य कारण से होता है। इसे प्लेसीबो इफेक्ट या प्लेसिबो प्रभाव बोलते हैं। ऐसा जरूरी नहीं है कि प्लेसिबो इफेक्ट तभी काम करेगा जब मरीज को इसकी जानकारी ना हो। कई शोधों में यह भी पता चला है कि कई बीमारियाँ ऐसी होती हैं जिनमें रोगी को पता होता है कि उसके इलाज के लिए प्लेसिबो इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन तब भी ऐसी बीमारियों में भी प्लेसीबो प्रभावकारी होता है।
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हॉवर्ड मेडिकल स्कूल में प्लेसिबो इफेक्ट पर एक शोध किया गया था। इस शोध में अपच से पीड़ित कुछ लोगों को इलाज के लिए दवा दी गई थी। लेकिन उन्हें यह भी बताया गया था कि ये सिर्फ मीठी गोलियां हैं और इनमें कोई दवा नहीं है। लेकिन फिर भी शोध में भाग लेने वाले लोगों को इन गोलिओं से अपच की समस्या में आराम मिला।
क्यों है प्लेसिबो इफेक्ट प्रभावशाली
प्लेसीबो इफ़ेक्ट व्यक्ति की धारणाओं और अपेक्षाओं के सिद्धांत पर आधारित है। इस चिकित्सा पद्धति का प्रभाव व्यक्ति के मन और उसके शरीर के रिश्ते पर आधारित है। सरल भाषा में समझा जाए तो अगर किसी व्यक्ति को अपेक्षा है कि वह किसी दवा या गोली से ठीक हो जाएगा तो उसके शरीर में कुछ ऐसे प्रभाव उत्पन्न होंगे जो किसी वास्तविक दवा से होते हैं। इसी वजह से वह प्लेसिबो वाली मीठी गोली से भी ठीक हो जाता है।
कई शोधकर्ताओं का मानना है कि प्लेसिबो इफेक्ट से व्यक्ति के शरीर में वास्तव में बदलाव होते देखे गए हैं। एक शोध में पाया गया कि प्लेसीबो इफेक्ट से शरीर में एंडॉर्फिन नामक केमिकल के उत्पादन में वृद्धि होती है जो एक तरह का प्राकृतिक दर्द निवारक है।
शोध में यह भी पाया गया है कि कई बार व्यक्ति की धारणा बदलने वाले विभिन्न कारक प्लेसिबो इफेक्ट के नतीजों में बदलाव ला सकते हैं। ऐसे ही एक शोध के मुताबिक प्लेसीबो उपचार में दी जाने वाली गोली के रंग और आकार से भी परिणामों पर फर्क पड़ता है। जैसे तेज रंगो वाली गोलियां हल्के रंग की गोलिओं के मुकाबले बेहतर असर करती हैं। इसी प्रकार प्लेसिबो चिकित्सा में इलाज के लिए कैप्सूल गोली से ज्यादा प्रभावशाली पाए गए हैं।
- प्रिया मिश्रा
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