By अभिनय आकाश | Jul 29, 2022
जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा जिन्हें आमतौर पर जेआरडी टाटा के नाम से जाना जाता है, उन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। जेआरडी टाटा ने भारत की पहली अंतरराष्ट्रीय एयरलाइन- एयर इंडिया की स्थापना की और टाटा समूह के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले अध्यक्ष बने। जेआरडी. टाटा का जन्म शुक्रवार, 29 जुलाई 1904 (उम्र 89 वर्ष; मृत्यु के समय) पेरिस, फ्रांस में हुआ था। वह एक धनी भारतीय परिवार से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने अपना बचपन फ्रांस में बिताया और फ्रेंच उनकी पहली भाषा थी। 1909 में उनके पिता ने फ्रांस में हार्डलॉट समुद्र तट पर एक नया घर खरीदा। इधर, जेआरडी विमानन से लगाव बढ़ता जा रहा था। उनकी प्रेरणा उनके पड़ोस में रहने वाले लुई ब्लेरियट नाम के एक एक एविएटर थे। उन्होंने 15 साल की उम्र में अपनी पहली हवाई जहाज की सवारी का आनंद लिया। 1917 के दौरान उनका परिवार पेरिस और बॉम्बे के बीच स्थानांतरित हो गया। इसी दौरान उन्होंने बॉम्बे के कैथेड्रल स्कूल में पढ़ाई की। 1923 में, उनकी माँ की मृत्यु के बाद, उनके पिता ने उन्हें उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड भेज दिया। उन्होंने फ्रांस, भारत, जापान और इंग्लैंड सहित चार देशों में अध्ययन किया।
फ्रांस की नागरिकता छोड़ भारत में पहले लाइसेंस प्राप्त पायलट बन गए
जेआरडी टाटा एक अनिवासी भारतीय पारसी परिवार से थे। उनके पिता रतनजी दादाभाई टाटा ने टाटा समूह के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी माता का नाम सुज़ैन सूनी ब्रियर था और वह एक फ्रांसीसी महिला थीं। जेआरडी अपने माता-पिता की दूसरी संतान थे, और उनके भाई-बहन जिमी, रोडाबेह, सायला और दोराब थे। जेआरडी टाटा को थेल्मा वीकाजी से प्यार हो गया और उन्होंने 1930 में उनसे शादी कर ली। लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। चूंकि वो फ्रांस के नागरिक थे, इसलिए उसे कम से कम एक वर्ष के लिए फ्रांसीसी सेना में सेवा करनी पड़ी। ऐसा करने के बाद 1925 में टाटा में एक अवैतनिक प्रशिक्षु के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को संभालने के लिए भारत लौट आए। 1926 में उनके पिता की मृत्यु हो गई, और जेआरडी टाटा संस के निदेशक बनकर अपनी जिम्मेदारियों को संभाला। तीन साल बाद1929 में उन्होंने अपनी फ्रांसीसी नागरिकता छोड़ दी और भारत में पहले लाइसेंस प्राप्त पायलट बन गए।
टाटा एयर सर्विस की स्थापना
अप्रैल 1932 में उन्होंने टाटा एयर सर्विस की स्थापना की। जेआरडी टाटा ने अपनी पहली व्यवसायिक उड़ान 15 अक्टूबर को भरी। उस समय वो सिंगल ईंजन वाले हेलीपैड बसमूथ हवाई जहाज को अहमदाबाद से होते हुए करांची से मुंबई ले गए थे। उनकी इस उड़ान में कोई सवारी नहीं थी बल्कि 25 किलो चिट्ठियां थी। ये चिट्ठिआं लंदन से इंपीरियल एयरबेस के जरिये करांची लाई गई थीं। ये कराची-बॉम्बे-मद्रास वाली उड़ान हर सोमवार को रवाना होती थी और बेल्लारी में इसका नाइट हॉल्ट होता था। यूं ये 28 घंटों में अपनी यात्रा पूरी करती थी। इसके बाद नियमित रूप से इसका इस्तेमाल डाक ले जाने के लिए हुआ। उस वक्त ब्रिटिश सरकार टाटा एयरलाइंस को कोई आर्थिक मदद नहीं देती थी, बल्कि हर चिट्ठी के बदले में मिलता था केवल 16 आना।
विमानन कंपनी का राष्ट्रीयकरण
1938 तक कंपनी का नाम टाटा एयरलाइंस हो गया और इसी साल इसने भारत से श्रीलंका के रूप में एक अंतरराष्ट्रीय उड़ान भी भरी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान टाटा एयरलाइंस ने रॉयल एयरफोर्स की काफी सहायता की और सेना की टुकड़ियों को ले जाना, शरणार्थियों का बचाव में भी अहम भूमिका निभाई। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद टाटा एयरलाइंस पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन गई। टाटा एयरलाइंस का नाम बदलकर एयर इंडिया लिमिटेड रखा गया। जेआरडी टाटा का सपना पूरी तरह उड़ान भर भी नहीं पाया था कि 1953 में उन्हें तगड़ा झटका लगा। यही वो समय था जब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें बिना बताए ही उनकी विमानन कंपनी का राष्ट्रीयकरण कर दिया था।
- अभिनय आकाश