किरोडी लाल मीणा प्रकरण कहीं वरिष्ठ और युवा नेताओं के बीच चल रही खींचतान का परिणाम तो नहीं?

By नीरज कुमार दुबे | Jul 08, 2024

राजस्थान भाजपा में चल रही उठापटक पर पार्टी नेतृत्व की नजर बनी हुई है और बताया जा रहा है कि जल्द ही कोई सर्वमान्य फॉर्मूला निकाल कर सबकी नाराजगी दूर की जा सकती है। हम आपको बता दें कि सात महीने पुरानी भजन लाल शर्मा सरकार तब मुश्किल में नजर आई जब हाल ही में कृषि मंत्री किरोडी लाल मीणा ने बताया कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। किरोडी लाल को मनाने का प्रयास मुख्यमंत्री ने किया, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने किया मगर बात नहीं बनी। अब किरोडी लाल मीणा के इस्तीफे का मामला केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुलझाएंगे। संभवतः इस सप्ताह के अंत तक यह मामला सुलझ जाने के आसार बताये जा रहे हैं।


किरोडी लाल मीणा के इस्तीफे को लेकर राजस्थान में तमाम तरह की कयासबाजियां भी चल रही हैं। विपक्ष जहां इसे भाजपा के अंदरूनी घमासान के तौर पर देख रहा है वहीं राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह प्रेशर पॉलिटिक्स है। हालांकि खुद किरोडी लाल मीणा कह चुके हैं कि उनकी संगठन या मुख्यमंत्री से कोई नाराजगी नहीं है। लेकिन फिर भी उनके इस्तीफे को लेकर कई तरह की बातें चल रही हैं। पहले कहा गया कि वह अपने लिए सरकार में उपमुख्यमंत्री पद चाहते हैं तो अब कहा जा रहा है कि किरोडी किरोड़ी लाल मीणा अपने भाई जगमोहन मीणा के लिए दौसा संसदीय सीट से टिकट चाहते थे लेकिन पार्टी ने उनकी बात नहीं सुनी। हम आपको बता दें कि भाजपा ने दौसा से कन्हैया लाल मीणा को टिकट दिया था जोकि चुनाव हार गये। बताया जा रहा है कि किरोडी लाल मीणा इस बात के लिए भी नाराज हैं कि दौड़ में होने और योग्य तथा अनुभवी होने के बावजूद उन्हें राजस्थान विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। यही नहीं, उनसे उम्र तथा अनुभव में काफी छोटे नेताओं को राजस्थान का उपमुख्यमंत्री बना दिया गया। यह भी बताया जा रहा है कि किरोडी लाल मीणा को इस बात की भी नाराजगी है कि उन्हें कृषि विभाग तो दिया गया लेकिन अक्सर उसके साथ ही मिलने वाले ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग को उनके तथा एक अन्य मंत्री मदन दिलावर के बीच विभाजित कर दिया गया।

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किरोडी लाल मीणा इस्तीफा वापस लेंगे या नहीं, इन अटकलों के बीच उनकी पत्नी तथा पूर्व मंत्री गोलमा देवी का भी बयान सामने आ गया है। उन्होंने कहा है कि लोग अफवाहें फैला रहे हैं कि बड़े पद की लालसा में डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने मंत्री पद से इस्तीफा दिया है। गोलमा देवी ने कहा कि इन अफवाहों में कोई सच्चाई नहीं है। उन्होंने कहा कि किरोडी लाल मीणा पूर्व में वसुंधरा सरकार से भी इस्तीफा दे चुके हैं, तब भी उन्होंने मनाये जाने के बावजूद इस्तीफा वापस नहीं लिया था। गोलमा देवी ने कहा कि उनके पति के लिए विधायक और मंत्री पद कोई मायने नहीं रखता है। वह अपनी जबान के पक्के नेता हैं। हम आपको याद दिला दें कि किरोडी लाल मीणा बार-बार यही कह रहे हैं कि उन्होंने अपनी उस सार्वजनिक घोषणा के कारण इस्तीफा दिया है कि अगर पार्टी उनके अधीन वाली लोकसभा सीटें हारती है तो वे इस्तीफा दे देंगे।


वैसे किरोडी लाल मीणा मामले का एक दूसरा पक्ष भी है। देखा जाये तो भाजपा राजस्थान में नये चेहरों को आगे करने का या युवाओं को बड़ी जिम्मेदारियां देने का जो अभियान चला रही है उससे कई वरिष्ठ नेता नाराज हो गये हैं। इस नाराजगी का असर लोकसभा चुनावों में दिखा भी था। हाल में भाजपा ने कई पुराने और धुरंधर नेताओं को या तो साइड लाइन कर दिया है या दूसरे पद देकर उन्हें राजस्थान की स्थानीय राजनीति से दूर कर दिया है। जैसे कि वसुंधरा राजे को फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। वरिष्ठ नेता गुलाब चंद कटारिया को असम का राज्यपाल बना दिया गया। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को हरियाणा का प्रभारी बना दिया गया। इसके अलावा वसुंधरा राजे के कई करीबी नेताओं को या तो चुनावों में टिकट नहीं दिया गया या विधायक बन जाने पर भी उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया है। यहां यह भी गौर करने लायक बात है कि एक समय राजस्थान भाजपा में वसुंधरा राजे के अलावा कोई बड़ा नाम नहीं था लेकिन अब लगातार दूसरी बार लोकसभा अध्यक्ष बनाये गये ओम बिरला हैं, केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और गजेंद्र सिंह शेखावत हैं, पहली बार विधायक का चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बने भजन लाल शर्मा हैं, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी हैं तथा सांसद से विधायक बना कर राज्य सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं दीया सिंह व राज्यवर्धन सिंह राठौड़ जैसे नेता हैं। इस सबको देखते हुए सवाल उठ रहा है कि कहीं राजस्थान भाजपा में दिख रही उठापटक युवा नेताओं और अनुभवी नेताओं के बीच चल रही खींचतान का नतीजा तो नहीं है?


बहरहाल, देखना होगा कि किरोडी लाल मीणा मामले का भाजपा नेतृत्व क्या हल निकालता है। यदि किरोडी लाल मीणा की मांगें मान ली जाती हैं तो राजनीतिक रूप से साइड किये जा चुके कई वरिष्ठ नेताओं के मन की उम्मीदें भी हिलोरें मार सकती हैं और वह भी फिर से पद पाने का प्रयास करते दिख सकते हैं। यदि किरोडी लाल मीणा को राजस्थान की राजनीति से बाहर लाकर एक बार फिर सांसद बनाया जाता है तो यह कई नेताओं के लिए सख्त संदेश की तरह होगा। वैसे एक बात तय है कि राजस्थान में जातिगत समीकरणों की महत्ता को देखते हुए किरोडी लाल मीणा को साइड लाइन तो नहीं ही किया जा सकता। उम्मीद तो यह भी की जा रही है कि राजस्थान भाजपा में जाट नेताओं को भी बड़ी भूमिका मिलने जा रही है। देखना होगा कि आने वाले दिनों में राजस्थान की राजनीति क्या नई करवट लेती है?


-नीरज कुमार दुबे

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