महिला खिलाड़ियों से पदक तो चाहते हैं पर उनको कोई सुविधा नहीं देना चाहते

By दीपक गिरकर | Aug 28, 2018

विगत वर्षों की तुलना में खेलों को सरकार की ओर से अधिक प्रोत्साहन दिया जाने लगा है। साथ में हमारे खेल बजट में भी वृद्धि हुई है। विश्व खेल जगत में हमारे देश की महिला खिलाड़ियों ने महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ अर्जित की हैं। एक तरफ हम लोग लड़के एवं लड़कियों की समान शिक्षा, समान अधिकार, नारी सशक्तिकरण की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और दूसरी तरफ महिला खिलाड़ियों के साथ सौतेला व्यवहार करते हैं।

भारतीय महिला क्रिकेटरों और भारतीय पुरूष क्रिकेटरों की मैच फीस में ज़मीन आसमान का अंतर है। सिर्फ़ क्रिकेट में ही नहीं अन्य खेलों में भी महिला खिलाड़ियों को पुरूष खिलाड़ियों की तुलना में कम फीस, कम इनाम की राशि, कम भत्ते और अन्य सुविधाएँ भी कम दी जाती हैं। जब भारतीय पुरूष क्रिकेट टीम चैम्पियन बन जाती है या सिर्फ़ पाकिस्तानी टीम को ही हरा देती है तब हमारे देश में दीपावली मनाई जाती है। इसके लिए हमारी सोच, सरकार एवं मीडिया दोषी है। मीडिया भारतीय पुरूष क्रिकेट टीम को, उससे संबंधित खबरों को अत्यधिक तवज्जो देता है। महिला विश्व क्रिकेट चैंपियनशिप के फाइनल में भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज के नेतृत्व में इंग्लैंड की महिला क्रिकेट टीम के विरूद्ध काफ़ी अच्छा प्रदर्शन रहा था और भारतीय टीम मात्र 9 रन से पराजित हुई थी।

 

पिछले कुछ सालों से भारतीय महिला खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन कर रही है। भारतीय महिला टीम की कप्तान मिताली राज को आईसीसी की सालाना वनडे टीम में चुना गया। बॉलर एकता बिष्ट विश्व संस्था द्वारा घोषित साल की सर्वश्रेष्ठ वनडे और टी-20 दोनों टीमों में जगह बनाने वाली एकमात्र क्रिकेटर रही। हरमनप्रीत को भी वर्ष की सर्वश्रेष्ठ आईसीसी महिला टी-20 अंतर्राष्ट्रीय टीम में स्थान मिला। हिमा दास ने आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में पहला स्थान प्राप्त किया। 21वें कामनवेल्थ खेलों में भारतीय महिला खिलाड़ियों ने कुल 31 पदक हासिल किए। गत वर्ष गोल्ड कोस्ट के कामनवेल्थ खेलों में महिला स्वर्ण विजेताओं में बैडमिंटन स्टार सायना नेहवाल, मुक्केबाज़ एमसी मैरीकाम, निशानेबाज़ मनुभाकर, हीना सिद्धू, तेजस्विनी सावंत, श्रेयसी सिंह, टेबल टेनिस खिलाड़ी मणिका बत्रा, भारोत्तोलक मीराबाई चानू, संजीता चानू, पूनम यादव, पहलवान विनेश फोगाट शामिल थीं।

 

रियो ओलंपिक में साक्षी मलिक ने कुश्ती में पदक जीतकर देश का गौरव बढ़ाया। बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु ने ओलंपिक में पहली बार सिल्वर मेडल जीता। दीपा कर्मकार ने जिम्नास्ट में चौथा स्थान प्राप्त कर एक इतिहास बनाया। भारत की दिव्यांग खिलाड़ी दीपा मलिक 2016 के रियो पैराओलंपिक में गोला फेंक एफ-53 में रजत पदक जीतकर पैराओलंपिक में पदक हासिल करने वाली प्रथम महिला खिलाड़ी बनी थी। इस वर्ष के एशियाड गेम्स जो की इंडोनेशिया के जकार्ता और पालेमबांग शहरों में हो रहे हैं, इसमें महिला पहलवान विनेश फोगाट ने कुश्ती का ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीतकर हमारे देश का नाम रोशन किया। रानी सरनोबत ने निशानेबाज़ी में स्वर्ण पदक जीतकर देशवासियों का दिल जीत लिया।

     

विश्व चैंपियनशिप में इतिहास रचने वाली बहुत सारी महिला खिलाड़ी अभी भी उपेक्षित हैं। हम अपने खिलाड़ियों से हर प्रतियोगिता में 'गोल्ड मेडल' की उम्मीद करते हैं लेकिन सुविधाएं देने के नाम पर 'ज़ीरो बटे सन्नाटा' वाला व्यवहार करते हैं। मध्य प्रदेश के दमोह में राज्य की हॉकी टीम के चयन के लिए ट्रायल देने आई महिला खिलाड़ियों को 5 रूपये की थाली से पेट भरना पड़ा। अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं को छोड़कर बाकी राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में महिला खिलाड़ियों के रूकने-ठहरने की व्यवस्था, नाश्ते और भोजन की व्यवस्था बद से बदतर होती है। क्या इनका गुनाह इतना है कि ये लड़कियाँ हैं। स्कूलों में तो छात्राओं को खेलकूद के लिए किसी प्रकार की ढाँचागत व्यवस्था नहीं है।

 

भारतीय महिला जूनियर हॉकी टीम की गोलकीपर खुशबू ख़ान अपने परिवार के साथ झुग्गी झोपड़ी में रहती हैं। मिताली राज ने बताया कि भारतीय खिलाड़ी के रूप में उन्हें ट्रेन में अनारक्षित सीट पर हैदराबाद से दिल्ली की यात्रा करनी पड़ी थी। इस यात्रा के दौरान उन्हें काफ़ी संघर्ष करना पड़ा था। उड़नपरी पीटी उषा को 1984 के ओलंपिक के दौरान खेलगाँव में खाने के लिए चावल के दलिये के साथ अचार पर निर्भर रहना पड़ा था। वह इस ओलंपिक में एक सेकंड के सौंवे हिस्से से पदक चूक गई थी। पोषक आहार नहीं मिलने से उनके प्रदर्शन पर असर पड़ा और उन्हें कांस्य पदक गंवाना पड़ा था। देश का प्रतिनिधित्व करने वाली महिला खिलाड़ियों को रोजमर्रा होने वाली तकलीफ़ों से खुद ही दो चार होना पड़ता है। हमारे देश की महिला खिलाड़ियों के पास अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीतकर अपने गाँव, अपने शहर में आने के बाद अपने प्रशंसकों को मिठाई खिलाने के पैसे भी नहीं होते हैं। इन सबके बावजूद वे देश के लिए कुछ कर गुजरने का जुनून को नहीं छोड़तीं। अपने स्वयं के बलबूते पर ही महिला खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर रही हैं। हमारे यहाँ की बेटियों में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। हमारे देश में खेलों में जो लैंगिक भेदभाव है उसे ख़त्म किया जाना चाहिए।

 

इसके अलावा, इंडोनेशिया में चल रहे 18वें एशियाई खेलों की स्वर्ण पदक विजेता पहलवान विनेश फोगाट जब हाल ही में अपने घर लौटीं तो कथित तौर पर हरियाणा और केंद्र सरकार का कोई भी प्रतिनिधि उनके स्वागत के लिए हवाई अड्डे पर नहीं था। इस संबंध में हरियाणा सरकार ने स्पष्टीकरण दिया कि उसे विनेश के आने की जानकारी नहीं थी। बकौल विनेश उन्होंने भारी दबाव के बीच भारत के लिए स्वर्ण जीतकर इतिहास रचा। इसके बावजूद दिल्ली पहुंचने और हरियाणा आने पर प्रदेश सरकार के किसी भी प्रतिनिधि ने उनका उत्साह नहीं बढ़ाया। उन्होंने कहा कि अफसोसजनक है।

 

-दीपक गिरकर

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