By नीरज कुमार दुबे | Dec 15, 2022
अपने शौर्य, साहस और अनुशासन के चलते दुनियाभर की सेनाओं में सबसे विशिष्ट स्थान और सम्मान रखने वाली भारतीय सेना पर हर देशवासी को गर्व है। विषम प्राकृतिक चुनौतियों को झेलते हुए भी हमारे सुरक्षा बल जिस तरह दिन-रात भारत की पावन भूमि की रक्षा में तैनात रहते हैं यह उसी का प्रतिफल है कि आप और हम निडर भाव से अपना जीवन आजादी से बिता पाते हैं और अपने परिवारों संग खुशियां मना पाते हैं। सेना के जवान भले होली और दिवाली पर अपने घर वालों से दूर सरहद की सुरक्षा में तैनात हों लेकिन वह यह जरूर सुनिश्चित करते हैं कि आप अपने परिजनों के साथ होली-दीवाली ही नहीं जीवन का हर दिन खुशहाली के साथ बिता सकें। सेना है तो सुरक्षा है, सेना है तो विश्वास है, सेना है तो आत्मविश्वास है। यह कोई स्लोगन नहीं बल्कि हकीकत है। आज भी इस देश में यदि प्रेरणा का कोई सबसे बड़ा पुंज है तो वह सेना है। हम चुनावों के समय तथा विभिन्न मौकों पर जब देश के प्राथमिक स्कूलों की सुविधाओं का जायजा लेने खासतौर पर वहां जाते हैं तो नन्हे मुन्ने बच्चों से पूछने पर पाते हैं कि अधिकतर बच्चे बड़े होकर सेना में जाना चाहते हैं। उनका यह जवाब उनकी देशभक्ति और सेना के प्रति सम्मान के भाव को स्पष्टतः प्रकट करता है।
भारतीय सेना के जज्बे को सलाम करने और उसकी वीरता भरी कहानियां आप तक पहुँचाने, रक्षा-सुरक्षा से जुड़े कई महत्वपूर्ण मुद्दे आपको समझाने और सामरिक महत्व के गंभीर विषयों से आपको अवगत कराने के लिए हमने आज से शुरू किया है विशेष कार्यक्रम शौर्य पथ। प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के इस खास साप्ताहिक कार्यक्रम में हमारे साथ विशेष मेहमान के रूप में उपस्थित रहे ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) डीएस त्रिपाठी। पेश हैं उनसे बातचीत के मुख्य अंश-
प्रश्न-1. पहले डोकलाम, फिर गलवान और अब तवांग...चीन चाहता क्या है?
उत्तर- दरअसल चीन मनोवैज्ञानिक आधार पर भी लड़ाई लड़ता है। डोकलाम में उसने मुँह की खाई फिर गलवान में उसने हिमाकत की और जब उसे वहां भी तगड़ा जवाब मिला तो उसने तवांग में हरकत की। उन्होंने कहा कि तवांग ही नहीं चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है और तवांग उसके लिए रणनीतिक रूप से महत्व इसलिए भी रखता है क्योंकि यह चीने से तिब्बत तक जाने के लिए शॉर्टकट रास्ता है।
प्रश्न-2. तवांग पर चीन की नजर किन कारणों से बनी रहती है? हम यह भी जानना चाहते हैं क्या चीन की ओर से हर वर्ष इस तरह की गतिविधियां होती रहती हैं?
उत्तर- तवांग ही नहीं अन्य इलाकों को लेकर भी चीन शुरू से ही भारत पर दबाव बनाता रहा है। हमारी पहले की सरकारों ने हमेशा चीन को हम पर हावी होने दिया इसलिए चीन की हिम्मत बढ़ी हुई है। लेकिन अब चीन को जवाब मिलने लगा है। वह एलएसी पर आक्रामक गतिविधियों के माध्यम से भारत को परेशान करना चाहता है लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। उन्होंने कहा कि तवांग की चौकी पर कब्जा करने के चीनी सेना के प्रयास विफल होना दर्शाता है कि चीन की दादागिरी का समय अब समाप्त हो चुका है।
प्रश्न-3. 1993 में भारत और चीन के बीच समझौता हुआ था, लेकिन उस समझौते को चीन तोड़ता क्यों रहता है?
उत्तर- हमारी सरकारों की कमजोरी रही कि चीन को कभी तगड़ा जवाब नहीं दिया गया। चीन शुरू से ही समझौते को तोड़ता रहा और हम उसका अक्षरशः पालन करते रहे। यही नहीं हमारे तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने तो यहां तक कह दिया था कि यदि हम सीमा पर बुनियादी ढांचा मजबूत करेंगे तो चीन नाराज हो जायेगा।
प्रश्न-4. चीन को लेकर हम यह तो कह रहे हैं कि यह 1962 नहीं 2022 है लेकिन जनता यह भी जानना चाहती है कि हमारी तैयारियां क्या हैं?
उत्तर- हम सिर्फ मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत नहीं हैं बल्कि हमारी युद्धक क्षमता भी बढ़ी है और सेना को मिलने वाली सुविधाओं में भी इजाफा हुआ है। उन्होंने कहा कि जवाब देने की हमारी तैयारी सदैव उच्च स्तर की होती है। तवांग में जो कुछ हुआ उसका हमें पहले ही अंदाजा था इसलिए हमारी तैयारी पूरी थी तभी तो हमारे पचास और उनके 300 सैनिक होते हुए भी हम उन पर भारी पड़े।
प्रश्न-5. आज हमारी वायुसेना पूर्वोत्तर में एलएसी के निकट युद्धाभ्यास कर रही है तो वहीं मेघालय में भारत और कजाकिस्तान की सेनाओं का आतंकवाद-रोधी अभ्यास शुरू हुआ है। इसके पहले हाल ही में उत्तराखंड के औली में हमने अमेरिका के साथ युद्धाभ्यास किया जिस पर चीन ने नाराजगी भी जताई थी। क्या बढ़ती हुई सामरिक चुनौतियों के चलते ही युद्धाभ्यास की संख्या बढ़ायी गयी है?
उत्तर- यह युद्धाभ्यास लगातार चलते रहते हैं ताकि हम दूसरी सेनाओं से कुछ सीख सकें और वो हमसे सीख सकें। इसके अलावा अलग-अलग देशों में सैन्य अभ्यास का मकसद यह भी होता है कि हम उनके प्राकृतिक हालात और वो हमारे प्राकृतिक हालात में लड़ने के अभ्यस्त हो सकें। उन्होंने कहा कि एलएसी पर युद्धक विमान उड़ा कर हम अपनी क्षमता को परख रहे हैं यदि कोई इससे डरता है तो डरता रहे।
प्रश्न-6. आमने सामने की लड़ाई में तो हम किसी को भी मात दे रहे हैं लेकिन चीन की ओर से अब युद्ध का तरीका बदल कर साइबर वार किया जा रहा है। हाल ही में भारत में साइबर अटैक हुए जिसमें चीन का हाथ सामने आया। इस दिशा में हमारी क्या तैयारी है?
उत्तर- बिल्कुल यह एक गंभीर मुद्दा है। चीन अब रणनीति बदल कर साइबर वार पर ही अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है। हमें साइबर हमलों का जवाब देने और बचाव की क्षमता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा और इस संबंध में नागरिकों में जागरूकता भी लानी पड़ेगी ताकि वह साइबर हमलों के शिकार नहीं हों। उन्होंने कहा कि साथ ही हमें एंटी ड्रोन सिस्टम भी बदलती तकनीक को देखते हुए विकसित करने की जरूरत है।
प्रश्न-7. तवांग की घटना पर विपक्ष संसद में चर्चा चाह रहा है। सरकार इस मुद्दे पर संसद में बयान जारी कर चुकी है। सेना का भी बयान आ चुका है। ऐसे में सवाल उठता है कि सरहद पर जो कुछ भी हुआ उस पर संसद में चर्चा ज्यादा जरूरी है या फिर सरहद पर दुश्मन का इलाज करना ज्यादा जरूरी है?
उत्तर- मुझे यह समझ नहीं आता कि जब कुछ हो जाता है तभी उस पर चर्चा क्यों नहीं होती। चीन से खतरे को देखते हुए उस पर क्यों हर सत्र में पहले ही चर्चा नहीं होती? उन्होंने कहा कि सरहद पर यह सेना ही तय कर सकती है कि कब और कैसे जवाब देना है।
प्रश्न-8. वर्तमान सरकार का कहना है कि सीमाओं पर बुनियादी ढांचा तेजी के साथ बढ़ाया गया है और तीनों सेनाओं की युद्धक क्षमता में भी अभूतपूर्व वृद्धि की गयी है। लेकिन विपक्ष इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है। इस मुद्दे पर आपका क्या कहना है?
उत्तर- बिल्कुल बुनियादी ढांचा तेजी से विकसित हुआ है इसलिए पहले जहां जवानों तक पानी पहुँचाना भी मुश्किल होता था आज वहां सेना की गाड़ियां आसानी से पहुँच रही हैं और भारी हथियार भी पहुँच रहे हैं। उन्होंने कहा कि तवांग में जो कुछ हुआ उसके बाद सारा मीडिया वहां पहुँचा हुआ है और वहां बुनियादी ढांचे के निर्माण संबंधी जो रिपोर्टें आ रही हैं वह दर्शा रही हैं कि सरकार ने बहुत कुछ किया है।
प्रश्न-9. पूर्वी लद्दाख में इस समय क्या हालात हैं, क्योंकि विपक्ष तो अपने इस आरोप पर अड़ा ही हुआ है कि चीन हमारे घर में आकर बैठा हुआ है।
उत्तर- पूर्वी लद्दाख में हालात सामान्य हैं। जो कहते हैं कि चीन हमारे घर में घुसकर बैठा हुआ है तो वह आज से नहीं 1962 से है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच कोई सीमा रेखा जब तक निर्धारित नहीं होती तब तक विवाद बना रहेगा इसीलिए भारत को चाहिए कि वह आगे बढ़कर अपनी सीमा घोषित कर दे।