By अभिनय आकाश | Nov 22, 2024
28 अप्रैल 2006 को एक फिल्म रिलीज हुई। वैसे तो हर हफ्ते फिल्मे रिलीज होती रहती है। लेकिन ये तारीख 28 अप्रैल 2006 का जिक्र इसलिए क्योंकि ये स्पेशल है। हॉलीवुड फिल्म यूनाइटेड 93 इस दिन रिलीज हुई थी। फिल्म वास्तविक घटना के 1721 दिन बाद उस पर आधारित थी। मतलब पांच साल से कम समय में घटना को रुपहले पर्दे पर उतारा गया। वैसे उस घटना पर ये कोई अकेली फिल्म नहीं थी बल्कि यूनाइटेड 93 से पहले भी कई सारी फिल्में आई और चली गईं। लेकिन इस फिल्म में कहानी जो बुनी गई, वो सिनेमाई लकीर पर घटना को जोड़ती है। यही कारण है कि रॉटेन टोमैटोज, आईएमडीबी आदि पर इसकी रेटिंग शानदार रही। वैसे वास्तविक घटनाओं पर फिल्मों का बनना कोई नई बात नहीं है। 9/11 की त्रासदी ने हॉलीवुड से बॉलीवुड तक को इस भयानक घटना को दिखाने पर मजबूर किया। हालाँकि, फिल्म निर्माताओं की ओर से इस घटना में "माई नेम इज़ खान" जैसा मसाला टाइप तड़का लगा इसे अलग रुख देने की कोशिश भी की गई। अगर मैं आपसे पूंछू कि क्या हमारे देश ने 9/11 से भी बदतर त्रासदी का अनुभव किया है? जवाब हां में है। कोई इंसान किसी को जिंदा जलाकर कैसे मार सकता है? एक साथ 59 लोगों को जिंदा जलाना कैसे संभव है? गंगा-जमुनी तहजीब में ये दुश्मनी कैसे संभव है? 27 फरवरी की उस मनहूस सुबह को हुआ क्या था? कौन कौन लोग उस साजिश में शामिल थे। किन किन सरकारों ने बाद में गोधरा के गुनहगारों को बचाने की साजिश की थी। इस घटना के 8297 दिन बाद यानी 22 वर्षों के बाद साबरमती रिपोर्ट के रूप में सामने आई है।
22 साल क्यों लग गए?
साल 2011 की बात है। अहमदाबाद की साबरमती सेंट्रल जेल जहां 94 आरोपियों पर मुकदमा चल रहा था। किसी को भी अदालत ले जाना सुरक्षित नहीं था इसलिए जेल को ही अदालत में तब्दील कर दिया गया था। फरवरी के महीने में कोर्ट ने जब फैसला सुनाया तो इस मामले को 9 साल हो चुके थे। इस दौरान दर्जनों चार्जशीट, कॉन्प्रिरेसी थ्योरी के दौर चले। मीडिया रिपोर्ट और डॉक्यूमेंट्री भी बनी, जांच कमेटी की रिपोर्ट भी आई। लेकिन असलियत सामने नहीं आई। साबरमती एक्सप्रेस कांड की असलियत। गुजरात दंगों को 22 साल हो गए हैं। नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने भी 10 साल से ज्यादा हो गए हैं। लेकिन इस देश में एक सेक्शन है जो आज भी गुजरात दंगों पर राजनीति करने से बाज नहीं आता है। ये वो धड़ा है जो दंगों के लिए गुजरात के हिंदुओं को जिम्मेदार बताता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कसूरवार मानता है। इतने सालों बाद आज भी इन दंगों के नाम पर देश के मुसलमानों को भड़काता है। मगर हैरानी ये है कि ये लोग गुजरात दंगों की बात तो करते हैं लेकिन इनमें से कोई भी भूल कर गोधरा कांड का जिक्र नहीं करता। वो गोधरा कांड जिसमें ट्रेन की बोगी में 59 कारसेवकों को जिंदा जला दिया गया था। वो गोधरा कांड जिसके बाद पूरे गुजरात में दंगे शुरू हुए। वो गोधरा कांड जिसके बाद 31 लोगों को उमक्रैद की सजा सुनाई गई। 27 फरवरी, 2002 भारत के इतिहास का एक काला अध्याय है, जिसने हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की भावना को आग लगा दी थी। इस घटना के बाद पूरा गुजरात सुलग उठा औऱ सांप्रदायिक दंगे फैल गए। जिसमें 1200 से भी ज्यादा लोगों ने जान गंवाई। इस साल इस त्रासदी के 22 बरस हो रहे हैं। जब गुजरात के गोधरा में एक ट्रेन को आग लगा दी गई थी। जिसमें 59 लोगों की जलकर मौत हो गई थी। लेकिन अक्सर गुजरात दंगों की बात गोधरा कांड पर आकर रुक जाती है यह दलील दी जाती है कि गुजरात दंगे, गोधरा कांड में किए क्रिया की प्रतिक्रिया थी। क्या हम नरसंहार को याद करते हैं? हाँ, हमें गुजरात में मुसलमानों की हत्या याद है और हाँ, हमें लगातार एक मुस्लिम 'नरसंहार' की याद दिलाई जाती है जो गुजरात में तब हुआ जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्लीन चिट दिए जाने के बावजूद जहां मोदी आरोपी हैं।
क्या हुआ था 27 फरवरी को
27 फरवरी 2002 को आधुनिक भारत के इतिहास का काला अध्याय लिखा गया था। इस दिन हमारे स्वतंत्र धर्मनिरपेक्ष देश में सुबह 7:43 पर गुजरात के गोधरा स्टेशन पर 23 पुरुष और 15 महिलाओं और 20 बच्चों सहित 58 लोग साबरमती एक्सप्रेस के कोच नंबर S6 में जिंदा जला दिए गए थे। उन लोगों को बचाने की कोशिश करने वाला एक व्यक्ति भी 2 दिनों के बाद मौत की नींद सो गया था। गुजरात पुलिस के सहायक महानिदेशक जे महापात्रा ने कहा था कि दंगाइयों ने ट्रेन के गोधरा पहुंचने से बहुत पहले से इस्तेमाल के लिए पेट्रोल से लैस तैयार कर ली थी। इसके बाद, राज्य ने पूरे राज्य में हिंसा देखी। लेकिन जब भी इस घटना की कोई मीडिया रिपोर्टिंग होती है तो ऐसा लगता है कि पहले, राज्यव्यापी हिंसा सिर्फ एक ही समुदाय विशेष की तरफ से हुई थी और इसमें केवल मुसलमान ही पीड़ित थे। लेकिन ये पूरी तरह से असत्य है। क्योंकि 2002 में गोधरा की आग के कारण गुजरात जल गया थाऔर तथाकथित नरसंहार के शिकार लोगों में से एक चौथाई हिंदू थे। सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि ट्रेन आपदा के पीड़ितों की पहचान मीडिया द्वारा कभी सार्वजनिक क्यों नहीं की गई। क्या ऐसा इसलिए था क्योंकि इसके बाद के परिणाम को मुस्लिम 'नरसंहार' के रूप में चित्रित करने का एक ठोस प्रयास किया गया था!
27 फरवरी, 2002 को एस-6, साबरमती एक्सप्रेस के शिकार 41 लोगों के नाम सार्वनजिन
कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा के परिणामस्वरूप जिंदा जलाए गए 59 व्यक्तियों में से केवल 41 के नाम अब तक जनता के सामने जारी किए गए हैं। अन्य अठारह अज्ञात लोग कौन थे? बॉलीवुड के खोजी पत्रकार और फिल्म निर्माता कब इस पर शोध करेंगे और एक वृत्तचित्र या फिल्म का निर्माण करेंगे? क्या आप चाहते हैं कि उन 18 लोगों को यूं ही भुलाया न जाए, या आप चाहते हैं कि यह मुद्दा सिर्फ एक सवाल से बढ़कर देश की कहानी बन जाए? साबरमती एक्सप्रेस को किसने जलाया से ज्यादा फिल्म का फोकस है – किसने छिपाया, किसने षड्यंत्र रचा।
गोधरा कांड: जांच में क्या सामने आया?
नरेंद्र मोदी को गुजरात का सीएम बने अभी साल भर भी नहीं हुआ था। तत्कालीन मोदी सरकार ने एक जांच आयोग का गठन किया। उस आयोग में जस्टिस जी टी नानावटी और जस्टिस के जी शाह शामिल थे। शुरू में आयोग को साबरमती एक्सप्रेस में आगजनी से जुड़े तथ्य और घटनाओं की जांच का काम सौंपा गया। लेकिन जून 2002 में आयोग को गोधरा कांड के बाद भड़की हिंसा की भी जांच करने के लिए कहा गया। आयोग ने दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी, उनके कैबिनेट सहयोगियों व वरिष्ठ अफसरों की भूमिका की भी जांच की। गुजरात में गोधरा कांड के बाद 2002 में हुई हिंसा पर नानावटी रिपोर्ट में गुजरात के तत्तकालीन मुख्यमंत्री और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी गई। साल 2019 में गुजरात विधानसभा में हिंसा की जांच करने वाली नानावटी आयोग की रिपोर्ट रखी गई। आंतरिक रिपोर्ट में नानावटी आयोग ने पीएम नरेंद्र मोदी पर लगे आरोपों को खारिज कर दिया। नानावटी कमीशन ने उन्हें क्लीन चिट दी और तमाम तरह के प्रोपोगैंडा जो न सिर्फ देश बल्कि पूरी दुनिया में फैलाए गए उसे सिरे से खारिज किया गया। इस रिपोर्ट में ये बताया गया कि वहां पर कोई भी ऐसा काम नहीं किया गया जो राज्य सरकार को नहीं करना चाहिए थे। न राज्य सरकार ने किसी तरह की कोई देरी की है, न राज्य सरकार ने किसी तरह का कोई गलत मौखिक गैरकानूनी आदेश दिया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मारे गए 59 लोगों में से अधिकतर कारसेवक थे। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने जस्टिस यूसी बनर्जी की अध्यक्षता में एक अलग जांच आयोग का गठन किया. इस आयोग ने मार्च 2006 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में इस घटना को एक दुर्घटना बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने रिपोर्ट को असंवैधानिक और अमान्य करार देते हुए खारिज कर दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेष जांच दल का गठन किया था।
बीजेपी ने फिल्म को लिया हाथों हाथ
इस फिल्म को बीजेपी ने हाथों-हाथ लिया। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह से लेकर तमाम बड़े नेताओं ने फिल्म की सार्वजनिक रूप से तारीफ की। बीजेपी शासित राज्यों में फिल्म को टैक्स फ्री किया गया है। पार्टी के नेता फिल्म देखने के लिए स्पेशल स्क्रीनिंग का आयोजन कर रहे हैं। फिल्म 2002 में हुए गुजरात दंगे से जुड़ी घटना पर बनाई गई है। इसमें कहीं न कहीं घटना के परिप्रेक्ष्य में बीजेपी की ओर से दिए गए तर्क को सही बताया गया है। बीजेपी का कहना है कि फिल्म के बहाने इसमें सही बात बताई गई है। दरअसल, फिल्म के बहाने बीजेपी विपक्ष के नैरेटिव को नए सिरे से काउंटर कर रही है। पिछले कुछ बरसों में बीजेपी ने तमाम फिल्मों का खुलकर सपोर्ट किया है, जो उसके नैरेटिव के पक्ष में लगीं। पार्टी ने हमेशा यह आरोप लगाया कि बॉलिवुड उसकी विचारधारा का विरोधी रहा है। ऐसे में जब भी उसे ऐसी फिल्में देखने को मिलती हैं, जो उसकी अपनी विचारधारा के करीब हों तो वह उनका पुरजोर समर्थन करती है। बीजेपी नेता आने वाले दिनों में देश के अलग-अलग हिस्सों में साबरमती रिपोर्ट के स्पेशल शो आयोजित करने की तैयारी कर चुके हैं।
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