मध्य प्रदेश में मजबूर किसान ने बैलों की जगह बच्चों को खेत में जोता

By देवराज दुबे, दिनेश शुक्ल | Nov 30, 2019

रायसेन। मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में किसान को अपने ही बच्चों को बैल बना कर हल में जोतना पड़ रहा है। ताजा मामला रायसेन के उमराही गांव का है, जहां किसान रविन्द्र कुशवाह बैलो की जगह अपने दो मासूम बच्चों को खेत में जोत के लिए हल खिंचवाते दिख जाएगें। आर्थिक तंगी और सरकारी मदद के अभाव में किसान अपने दोनों बच्चों को बैल की जगह जोत रहा है। रायसेन जिले की बेगमगंज तहसील के उमराही गांव में पढाई लिखाई की उम्र में किसान रविन्द्र कुशवाह के बच्चे खेतों में बैल बनकर अपने पिता की मदद कर रहे है। कुछ इसी तरह की तस्वीर साल 2017 में दो साल पहले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र सिहोर में भी दिखने को मिली थी। जब सिहोर जिले के बसंतपुर पागरी गाँव में किसान सरदार बारेला अपनी 14 साल की बेटी राधिका और 11 साल की कुंती को हल में जोत कर खेत में दिखे थे।


पूर्व विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज का संसदीय क्षेत्र रहा रायसेन जिले का यह गाँव इन दिनों समाचार पत्रों और मीडिया की सुर्खियों में है। रायसेन जिले के अंतिम छोर पर बेगमगंज जनपद पंचायत के ग्राम पंचायत उमराही में किसान आर्थिक तंगी के कारण हल में अपने बेटों को बैलों की जगह जोत रहा है। किसान रविन्द्र कुशवाह के पास दो एकड़ जमीन थी, जिसमें से एक एकड़ मसूरबाबरी डेम में चली गई। किसान रविन्द्र कुशवाह के दो बेटे है, दोनों स्कूल में पढ़ाई के साथ साथ अपने पिता का किसानी में हाथ बटाते है। किसान रविन्द्र कुशवाह के अनुसार वह तीन साल से बीमारी से जूझ रहा है। सरकार की किसी भी योजना का लाभ उन्हें आजतक नहीं मिला है। आर्थिक तंगी ऐसी है कि खेती के लिए बैल कहा से खरीदें जबकि दो जून की रोटी के लाले पड़े है। मजबूरी में बच्चों से ही खेत में काम करवाना पड़ता है। रविन्द्र कुशवाह कहते है कि मुझे दुख तो होता है पर क्या करें मजबूरी है।

किसान रविन्द्र का बड़ा बेटा कृष्ण कुमार कहता है कि पापा बीमार रहते है एक अकड़ जमीन है। पापा की इतनी गुंजाइश नही की वो बैल खरीद पाए इस हम भी उनके साथ खेत में काम कराते है। अपनी मजबूरी बताते हुए जहाँ किसान रविन्द्र कुशवाह का बोलते बोलते गला भर आता है तो वही मासूम बच्चे अपने पिता की तरफ देकर असाह सा महसूस करते है। तो वही सरकारी तंत्र बस जाँच की बात कर अपना पल्ला झाड़ता नज़र आता है। इस मामले में बेगमगंज के तहसीलदार मनोज पंथी सिर्फ इतना कहते है कि हम जांच कराते है नियम अनुसार मदद की जायेगी।

लेकिन यहाँ सवाल यह उठता है कि केंद्र और राज्य सरकारों की वह योजनाएं कहा है जो किसान हितैसी होने का दावा करती है। किसानों की सहायता के लिए आवंटित करोड़ों रूपए की राशी आखिर कहा खर्च हो रही है। इसे भ्रष्ट्राचार की दीमक चाट रही है या हमारी प्रशासनिक व्यवस्था में ही चरमरा गई है जो अन्नदाता लोगों का पेट भरता है वह आज खाली पेट सोने के साथ ही इतना मजबूर क्यों है, यह हमारी सरकारों के सामने यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा है। 

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