By निरंजन मार्जनी | Jan 15, 2024
22 जनवरी को अयोध्या में होने वाली राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कई मायनों में एक नई शुरुआत है। प्राण प्रतिष्ठा को लेकर विपक्ष की पार्टियों की ओर से भाजपा पर लगातार हमले हो रहें हैं। विपक्ष भाजपा पर मंदिर पर राजनीति करने का, अर्थात राजनीति में धर्म को लाने पर आलोचना कर रहा है। विपक्ष अपनी आलोचना से इस मुद्दे को एकतरफ़ा पेश करने की कोशिश कर रहा है। विरोधी पार्टियां तर्क दे रही हैं कि धर्मनिरपेक्ष देश में सरकार का इस तरह के समारोह में शामिल होना एक तरह से हिंदुत्व को बढ़ावा देना है जो संविधान के ख़िलाफ़ जाता है और अल्पसंख्यकों की भावनाओं को ध्यान में नहीं लेता। लेकिन विपक्ष की नाराज़गी की वजह सिर्फ संविधान की काल्पनिक ख़िलाफ़त नहीं है। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के कई पहलू हैं जिन पर गौर करना ज़रूरी है। इन पहलुओं से विपक्ष की नाराज़गी की असली वजह भी सामने आती है।
सबसे पहले, अयोध्या में प्रभु श्री राम के जन्मस्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण होने से इतिहास में हुए ज़ुल्म और अत्याचार के लिए हिन्दुओं को पांच सौ साल बाद न्याय मिला है। यह सिर्फ एक ऐतिहासिक ग़लती का सुधार नहीं है बल्कि लगातार एक हज़ार वर्षों से हो रहे विदेशी आक्रमणों के दर्द से बाहर निकलना भी है। इसके साथ ही यह राम मंदिर भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के अभिमान का प्रतीक है। भारत को आज़ादी मिलने के बाद भी ग़ुलामी की मानसिकता से बाहर आने में देश के लोगों को काफ़ी वक़्त लगा है। देश को अंग्रेज़ों से 1947 में आज़ादी मिलने का मतलब यह नहीं है कि भारत उसी वर्ष अस्तित्व में आया। सीधे तौर पर इस बात को कहे बिना विपक्ष का रुख़ इस प्रकार रहा है जो अप्रत्यक्ष रूप से हज़ारों साल पुरानी भारत की संस्कृति को नकारता आया है। लेकिन अब देश की ज़्यादातर जनता न सिर्फ अपने भारतीय होने पर गर्व करती है बल्कि भारतीय संस्कृति से भी ज़्यादा से ज़्यादा जुड़ रही है।
दूसरा, विपक्ष इस मंदिर के निर्माण को एक विभाजनकारी कदम के तौर पर पेश कर रहा है जो हिंदुत्व के नाम पर हिन्दू धर्म के अंतर्गत आने वाली जाती, जनजाति और उपजाति को ध्यान में नहीं लेता। लेकिन अयोध्या में निर्माण हो रहे राम मंदिर को देखें तो यह तर्क भी ग़लत साबित होता है। प्रभु श्री राम के मंदिर के साथ साथ उसी परिसर में कई और मंदिरों का निर्माण भी हो रहा है। इनमें शिव, अन्नपूर्णा, भगवती, गणेश, हनुमान, सूर्य, वाल्मीकि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, जटायु और शबरी के मंदिर भी शामिल हैं। इनमें से वाल्मीकि, वशिष्ठ, जटायु और शबरी को भारत की कई पिछड़ी जातियां और जनजातियां अपने पूर्वज मानती हैं। हनुमान, जिन्हें कुछ जनजातियां अपना पूर्वज मानती हैं, उनकी भक्ति सभी वर्गों के लोग करते हैं। राम मंदिर सभी हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा है लेकिन साथी ही यह हिन्दू धर्म की विविधता का समावेशी भी है।
तीसरा, जातियों की पारंपारिक विविधता को ध्यान में रखने के साथ ही यह मंदिर निर्माण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए जातियों के वर्गीकरण का भी प्रतिनिधित्व करता है। मोदी ने कहा है कि उनके लिए और उनकी सरकार के लिए चार जातियां महत्त्वपूर्ण हैं। ये जातियां हैं ग़रीब, किसान, महिलाएं और युवा। राम मंदिर का निर्माण होने के साथ साथ अयोध्या के बुनियादी ढाँचे का भी काफ़ी विकास हुआ है जिनमें रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा भी शामिल हैं। राम मंदिर की वजह से अब अयोध्या भारत के प्रमुख तीर्थस्थान के तौर पर उभरा है जिससे पर्यटन को लगातार बढ़ावा मिलेगा। पर्यटन को बढ़ावा मिलने से अयोध्या और उसके आस पास के इलाक़ों में छोटे-बड़े उद्योगों को भी बढ़ावा मिलेगा। इसमें होटल, रेस्तरां, ट्रांसपोर्ट, मिठाई की दुकान, पूजा सामग्री की दुकान, फूल की दूकान इत्यादि शामिल हैं। इन उद्योगों को बढ़ावा मिलने से ग़रीब, किसान, महिलाएं और युवाओं को रोज़गार के नए अवसर प्राप्त होंगे। इससे मोदी ने अपनी प्राथमिकता में जिन जातियों का ज़िक्र किया है उनका फायदा होगा।
विपक्षी पार्टियां, विशेषतः क्षेत्रीय दल, अपनी राजनीति के लिए जाती या वर्ग विशेष पर निर्भर रहती हैं जैसे पिछड़ी जातियां और ग़रीब। लेकिन राम मंदिर के निर्माण से अब विपक्ष के इस वोट बैंक पर ज़बरदस्त सेंध लगी है जो उनकी नाराज़गी की असली वजह है। राम मंदिर का निर्माण पुरानी व्यवस्था को चुनौती है। राजनीतिक दल संकुचित नज़रिए से जातियों का विकास करने की बजाए उनका चुनाव जीतने के लिए इस्तेमाल करते थे। राम मंदिर से जहां एक तरफ़ करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं का सम्मान हो रहा है, वहीं भारत की राजनीति भी बदल रही है। राम मंदिर से दो महत्त्वपूर्ण संदेश जाते हैं। एक तो हिन्दू धर्म का अभिमान होना उसकी विविधताओं को नकारना है। दूसरा, आस्था का सम्मान करने का मतलब विकास को नज़रअंदाज़ करना नहीं होता। राम मंदिर यह साबित करता है कि आस्था और विकास एक दूसरे से जुड़े हैं। इसीलिए राम मंदिर का निर्माण पूरे देश के लिए एक नई शुरुआत है।
-निरंजन मार्जनी