कुर्सियों की बातें (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Dec 20, 2024

पिछले दिनों दुनिया की महाशक्तिशाली कुर्सी ने, उचित अवसर देखकर अपनी पुत्र कुर्सी को माफी उपहार में दी। कारण स्पष्ट है, मौक़ा मिला और दस्तूर भी था। उस कुर्सी की ताक़त और मनमानी कुछ दिनों बाद नहीं रहेगी। इत्तफ़ाक से भाग्यशाली पुत्र कुर्सी का नाम हंटर है। स्वाभाविक है उसने मनचाहा शिकार किया होगा। राजनीतिक क्षेत्र में गंभीर आरोपों की बात, पुष्टि तक पहुंचना छोटी सी घटना है असली खेल तो बाद में खेला जाता है। ऐसा माना जाना चाहिए कि महाकुर्सी ने माफी देने जैसा मानवीय कार्य हमारी कार्यसंस्कृति से सीख कर किया। हमारी शक्तिशाली कुर्सियां भी बहुत कुछ माफ़ कर सकती हैं और करती भी हैं। कुछ प्रभावशाली कुर्सियां सुनिश्चित करती हैं कि उनका एक सुन्दर चित्र रोजाना अधिकांश अखबारों में छपना ही चाहिए। बेचारे हो चुके अखबारों की क्या हिम्मत जो उनका चित्र न छापें, अपने आप को रोजाना माफ़ करते हुए उनका चित्र छापकर धन्य होते रहते हैं।  


जैसी कुर्सी वैसी बात करती है। मुख्य कुर्सी को यह बताना बार बार याद रहता है कि एक्सप्रेस वे का सफ़र, हवाई जहाज से बेहतर होगा मगर उन्हें यह कभी याद नहीं रहता कि धार्मिक, अध्यात्मिक और प्राचीन स्थलों पर भी गैंगरेप की घटनाएं होने लगी हैं। उन्हें यह भी मालूम नहीं कि कई जगह तो पुलिस स्टेशन भी पड़ोस में रहता है।  एक और स्वस्थ और ज़िम्मेदार कुर्सी ने समझाया कि बरसों नहीं दशकों हो गए पीते पीते, अब खाद्य सुरक्षा और जानक प्राधिकरण ने बोतल बंद पानी और मिनरल वाटर को अत्याधिक जोखिम वाले खाद्य पदार्थों की क्लास में शामिल किया है। यह इसलिए किया ताकि सोए हुए, कुछ न कर सकने वाले उपभोक्ताओं के गुणवत्ता व सुरक्षा मानक सुधरें। पता नहीं चला कौन से देश के वासियों की बात हो रही है। कौन सुधारेगा और कौन सुधरेगा। क्या वाकई कोई सुधरना चाहता है।  

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एक और सख्त नियमों वाली कुर्सी ने कहा, थर्ड पार्टी ऑडिट किया जाएगा। यह नई सी बात लगी। ऑडिट करवाने में हमें अथाह अनुभव और यश प्राप्त है और सुविधाओं की बहार भी है। धार्मिक कार्य या पूजा करवाने से पुरानी गुस्ताखियां खत्म हो जाती हैं यानी नई करतूतों के लिए ताज़ा हवा का इंतजाम। निरंतर उपदेश देने वाली सुन्दर कुर्सियां कहती हैं कि संवेदनशील भूस्खलन बढ़ता है तो चिंता के मलबे के सिवा कुछ नहीं फैलता।  हंगामा हमारी समृद्ध राजनीतिक परम्परा है। दोनों सदनों का न चल पाना सिर्फ दुर्भाग्य है। 


धरती पर खेती चाहे जो रंग बदल ले, अन्तरिक्ष में सलाद की खेती की जा रही है। दुनिया के महान तोपचियों ने पर्यावरण पर कोई दया नहीं की। बड़ी बड़ी कुर्सियां अपने अपने स्वार्थ संभाल कर रखती हैं। कुर्सी पर बैठने वाला बदलता है तो आस पास ही नहीं दूर तक माहौल बदलने की आहट होने लगती है। कुर्सियों की बातें निराली हैं।


- संतोष उत्सुक

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