By डॉ रमेश ठाकुर | Dec 23, 2021
समाजसेवा के क्षेत्र में एक निशक्त व्यक्ति का असाधरण काम प्रदेश में ही नहीं, बल्कि देशभर में सराहा जा रहा है। निर्धनों को जरूरत की वस्तुएं मुहैया कराना, सर्दी में अलाप जलाना, हेलमेट बांटना, गरीब बच्चों के व्याह करवाने के अलावा प्रत्येक सामाजिक कार्य उनके द्वारा किए जा रहे हैं। एक एक्सीडेंट के बाद शरीर में दर्जनों आपॅरेशन हुए, खुद के बल पैरों पर खड़े होने से भी असमर्थन हुए, बावजूद इसके उन्होंने अपने निस्वार्थ सामाजिक कार्यों से ऐसी मिशाल पेश की हैं जो दूसरों के लिए प्रेरणा देती है। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से ताल्लुक रखने वाले समाजसेवी संदीप खंडेलवाल की अद्भुत और असाधारण कहानी, उन्हीं की जुबानी से पत्रकार डॉ रमेश ठाकुर ने विस्तृत रूप से जानी।
प्रश्नः शारीरिक कठिनाइयों के बावजूद भी निरंतर समाज सेवा में लगे रहने की ऊर्जा कहां से मिलती है?
किसी की भलाई में सहभागिता के लिए उर्जा की जरूरत नहीं पड़ती। ईच्छाशक्ति और आत्मविश्वास का होना जरूरी होता है। कुछ अलग करने और सामाजिक भावनाओं का जज्बा होना चाहिए। ये गुण प्रत्येक व्यक्ति में विधमान होते हैं। पर, जब हमारे भीतर स्वार्थ पनपने लगता है तो वह स्वाथ हमें अच्छा करने से रोकता है। मैं बिना छड़ी के चल नहीं सकता, छड़ी का सहारा लेना पड़ता। बावजूद मैं करता हूं। चाहे सर्दी हो, बारिश हो या किसी भी तरह की रुकावट आए, मैं औरों की भलाई करने से खुद को रोक नहीं पाता।
प्रश्नः इंडिया गेट पर भी आपने जागरूकता कार्यक्रम किया था?
जी हां। यातायात को लेकर मैंने एक मुहिम छेड़ी थी जिसमें लोगों को यातायात के प्रति जागरूक करना था। सड़क घटनाओं से सालाना हजारों की संख्या में लोग असमय मौत के शिकार होते हैं, उनमें यातायात के नियम को ना मानने वाले ज्यादा होते हैं। मैं लोगों से सदैव अपील करता आया हूं, अगर हम सड़क नियम-कानूनों का पालन करें, तो घटनाएं काफी हद तक कम हो सकती हैं।
प्रश्नः सर्दी के दिनों में आपको जगह-जगह अलाप जलाते भी देखा हैं?
रेलवे स्टेशनों, अस्पतालों के आसपास व आदि सार्वजनिक स्थानों पर उन लोगों के लिए अलाप जलाने का काम करता जो जाड़े से ठिठुरते हैं। सर्दी की मार गरीबों पर सबसे ज्यादा पड़ती है। गरीबों के पास उतने गर्म कपड़े नहीं होते जिससे कड़ाकी की ठंड से बच सकें। मैंने देखा है ठंड में अस्पतालों के बाहर तीमारदार इधर-उधर भटकते हैं। तभी मेरे मन में आया कि क्यों न इनके लिए अलाव की व्यवस्था की जाए। ये काम शुरू कर दिया है। शुरुआत हास्य कलाकार राजपाल यादव द्वारा पिछले सप्ताह हुई। ये सिलसिला होली के आसपास तक चलता रहेगा।
प्रश्नः लोगों को हेलमेट बांटना, गरीब बच्चों की शादियां करवाना आदि भी आप करते हैं?
जी हां। प्रत्येक वर्ष हम कन्यादान के रूप में सामुहिक शादी करवाने का कार्य करते हैं जिसमें कई प्रदेशों के जोड़े आकर व्याह रचाते हैं। उनको हम बाकायदा गृहस्थी के प्रयोग का सामान भेंट करते हैं। ये सिलसिला कई सालों से चल रहा है। इसमें जिला प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधि भी भरपूर सहयोग करते हैं।
प्रश्नः समाजसेवा के नाम पर आजकल लोग मात्र दर्जनभर केला बांटकर भी ड्रामा करते हैं?
ऐसे लोगों की भरमार है। दरअसल वे ऐसा करके निर्धनों का उपहास उड़ाते हैं। राजनीति की चाह रखने वाले ऐसा ज्यादा करते हैं। केले बांटना या एकाध दर्जन आटा-दाल बांटकर स्वंभू समाज सेवक अधिकारियों के बीच में पैठ बनाना, राजनेताओं की नजरों में भले बनना, आम लोगों की झूठी सहानुभूति लूटते है। उसके बाद उनका मुख्य मकसद चुनाव लड़ना या सियासी दलों का हिस्सा बनना होता है। ऐसे समाज सेवकों की तादाद अब ज्यादा बढ़ गई है। हालांकि लोग ऐसों से परिचित हो चुके हैं। सेवा दिल से की जानी चाहिए और वह भी निस्वार्थ?
प्रश्नः समाज सेवा पर आप सालाना लाखों खर्च हो, कहीं से कोई अनुदान भी लेते हैं क्या?
देखिए, मैंने कभी कोई अनुमान नहीं लगाया कि मैं कितना खर्च करता हूं। अपना व्यवसाय भी है। आमदनी को मैं समाज सेवा में लगा देता हूं। रही बात कहीं से कोई सहायता लेने की तो उसकी मुझे जरूरत नहीं पड़ती। मेरे से जितना बन पड़ता है मैं करता हूं।
- डॉ रमेश ठाकुर