हुजूर आते−आते बहुत देर कर दी..। यूं तो गुजरे जमाने में यह गाना बेहद लोकप्रिय रहा, लेकिन यहां यह पंक्तियां एक दशक के कार्यकाल के अंतिम दिन उप राष्ट्रपति डॉ. हामिद अंसारी पर पूरी तरह लागू होती हैं। केवल गाने के शब्दों में थोड़ा फेरबदल करना होगा। हुजूर बोलते−बोलते बहुत देर कर दी...। हामिद अंसारी ने जाते जाते ऐसा बड़ा बयान दे दिया है, जिससे देश में नया बखेड़ा और बहस शुरू हो गयी है। उन्होंने कहा कि देश के मुसलमान डरे हुए हैं। वे खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। ये बातें निवर्तमान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने राज्यसभा टीवी चैनल को दिये साक्षात्कार में कही हैं। यह अनुसंधान का विषय है कि दस वर्षों तक उपराष्ट्रपति के पद पर विराजित रहे हामिद अंसारी साहब को यकायक यह ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ कि देश में असहिष्णुता बढ़ गयी है। उपराष्ट्रपति के बयान से पूर्वाग्रह और राजनीति की बू आ रही है।
विदाई की बेला पर उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने 'स्वीकार्यता के माहौल' को खतरे में बताया है। अंसारी का बयान इसलिये खास और संवेदनशील हो जाता है क्योंकि यह बयान ऐसे समय में आया है जब असहनशीलता और कथित गोरक्षकों की कई घटनाएं देशभर में सामने आयी हैं। देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के बयान को हलके में नहीं लिया जा सकता है। असहिष्णुता को लेकर बहस मोदी सरकार बनने के बाद से ही देश में शुरू हुई है। असल में सहिष्णुता और असहिष्णुता का इस्तेमाल राजनीतिक दल और अहम पदों पर बैठे महानुभाव अपनी−अपनी सुविधा, नफे और नुकसान के हिसाब करते रहे हैं। हामिद साहब संवैधानिक पद पर आसीन रहे। जिस संविधान ने उन्हें देश के प्रतिष्ठित और उच्च पद तक पहुंचाया उसकी छाया में बैठकर किसी राजनेता की भांति सरकार को कटघरे में खड़ा करने वाला बयान देकर आखिरकर हामिद साहब क्या साबित करना चाहते हैं। सवाल यह भी है कि यूपीए सरकार के शासन काल में यह सवाल हामिद साहब ने क्यों नहीं उठाए। उनका मुंह किसने बंद किया था। क्या हादिम अंसारी की प्रतिबद्धता संविधान के प्रति थी या किसी राजनीतिक दल के प्रति। अगर वो संविधान के प्रति प्रतिबद्ध थे तो उन्हें इस गंभीर मुद्दे को काफी पहले उठाना चाहिए था। यूपी में मुजफ्फरनगर दंगा तो ताजा मामला है। दस साल तक राज भोगने के बाद विदाई के समय हामिद अंसारी ने हलका बयान देकर पद की गरिमा और प्रतिष्ठा को धूमिल करने का काम किया है।
देश में असहिष्णुता के मुद्दे को लेकर बहस पिछले तीन वर्षों में तेज हुई, जब से मोदी सरकार सत्ता में आयी है। कई बड़े कलाकारों, कवियों और लेखकों ने अवार्ड वापसी का अभियान चलाया। इसके बाद नवंबर 2015 में बॉलीवुड के सुपर स्टार शाहरूख खान और आमिर खान ने असहिष्णुता संबंधी बयान देकर बवाल पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शाहरुख खान ने अपने जन्मदिन पर आयोजित एक समारोह में कहा कि इस देश में बहुत ही ज्यादा असहिष्णुता है। शाहरुख ने कहा कि लोग बिना सोचे−समझे कुछ भी बोल रहे हैं। शाहरूख के बयान के बाद मिस्टर परफेक्ट आमिर खान ने आठवें रामनाथ गोयनका अवॉर्ड्स फंक्शन में न्यू मीडिया (इंडियन एक्सप्रेस) के पूर्णकालिक निदेशक और प्रमुख अनंत गोयनका के साथ बातचीत में कहा कि, 'पिछले 6−8 महीने से 'असुरक्षा' और डर की भावना समाज में बढ़ी है। यहां तक कि मेरा परिवार भी ऐसा ही महसूस कर रहा है। मैं और पत्नी किरण ने पूरी जिंदगी भारत में जी है, लेकिन पहली बार उन्होंने मुझसे देश छोड़ने की बात कही। यह बहुत ही खौफनाक और बड़ी बात थी, जो उन्होंने मुझसे कही।
शाहरूख के बाद आमिर खान के बयान से देशभर में असहिष्णुता पर चर्चा का नया दौर शुरू हो गया। देश छोड़ने के बयान पर आमिर के खिलाफ ऐसी कितनी ही प्रतिक्रियाएं आईं और उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी हुए। आमिर अपने बयान पर सफाई भी दे चुके हैं, लेकिन जिस तरह कमान से निकला तीर वापिस नहीं आता उसी तरह से जुबां से निकली बात माफी के बाद भी भुलाई नहीं जा सकती। बीते जून को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक ईद समारोह में कहा, मुझे पता है कि असहिष्णुता के माहौल ने इस देश को बेहद दर्द दिया है। हम यहां सबके लिए हैं। हम एकजुट हैं। देश में असहिष्णुता का माहौल है। उन्होंने लोगों से एकजुट रहने की अपील की।
वास्तव में जिस दिन से मोदी सरकार ने देश की सत्ता संभाली है उस दिन से सोची समझी रणनीति और षड्यंत्र के तहत असहिष्णुता के मुद्दे को समय−समय पर गर्माने का कोशिशें जारी हैं। अवार्ड वापसी के बाद बॉलीवुड के बड़े सितारों की बयानबाजी भी इसी कड़ी का हिस्सा थी। 2013 में यूपीए सरकार के रहने के दौरान मुजफ्फरनगर दंगा हुआ था। सिर्फ इसी दंगे में 65 लोगों की जान चली गई थी। तब देश में असहिष्णुता की बात नहीं हुई। असल में तब केंद्र और उत्तर प्रदेश में गैर भाजपाई सरकारों का राज था। मोदी की सरकार के सत्ता में आने के बाद भारत को असहिष्णु बताने की जो जबर्दस्त कोशिश हो रही है। उसमें पक्षपाती आंकड़ों का बड़ा योगदान है। क्योंकि, इन आंकड़ों पर तो बात होती है कि देश में कुल कितनी घटनाएं हुईं। और उस समय केंद्र में किसकी सरकार थी। लेकिन, सच्चाई ये भी है कि केंद्र में चाहे यूपीए की सरकार रही हो या फिर एनडीए की। कानून व्यवस्था राज्यों का ही मसला है। इसलिए कानून व्यवस्था के साथ सांप्रदायिक हिंसा पर बात करते हुए भी राज्यों की सरकारों पर बात किए बिना बात अधूरी ही रह जाती है। वास्तविकता है कि असहिष्णुता को सुविधा और समय के साथ दिमाग लगाकर सरकार की छवि खराब करने का हथियार बनाया जाता है।
असहिष्णुता पर पक्षपाती दृष्टिकोण कर्नाटक की कांग्रेस सरकार में हुई हत्या को केंद्र में नरेंद्र मोदी के सिर मढ़ने की कोशिश करता है। यही पक्षपाती दृष्टिकोण 2013 में हुई नरेंद्र दाभोलकर की हत्या को भी भारतीय जनता पार्टी और उसके नेता नरेंद्र मोदी पर थोपने की कोशिश करता है। असहिष्णुता की बहस में ज्यादातर मंचों पर गला फाड़ने वाले भूल ही जाते हैं कि 20 अगस्त 2013 को जब दाभोलकर की हत्या की गई तो उस समय केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए की सरकार थी। और महाराष्ट्र में भी कांग्रेस और एनसीपी की साझा सरकार थी। लेकिन, ये तय दृष्टिकोण असहिष्णुता के मामले सिर्फ भारतीय जनता पार्टी की सरकार में खोजता है। असल में जब आंखों पर पूर्वाग्रह का चश्मा चढ़ा हो तो सच्चाई दिखना थोड़ा मुश्किल तो हो ही जाता है।
असहिष्णुता और अल्पसंख्यकों के प्रति असुरक्षा की भावना की बात करने वाले ये भूल जाते हैं कि इस तरह की एकांगी बहस ने ही देश के उन नौजवानों को भी भारतीय जनता पार्टी को चुनने के लिये मानसिक तौर पर तैयार किया। जो इससे पहले कभी भारतीय जनता पार्टी के साथ नहीं थे। असहिष्णुता इस समय देश में सबसे ज्यादा है। इस पर बहस की कोई वजह नहीं दिखती। क्योंकि, एक ऐसे व्यक्ति के प्रधानमंत्री बन जाने से हर मसले को उस व्यक्ति के खिलाफ वजह बताने की ऐसी असहिष्णुता देश में शायद ही कभी देखने को मिली हो।
इस बात में कोई दो राय नहीं की असहिष्णुता शायद ही इस देश में पहले कभी किसी प्रधानमंत्री के खिलाफ इस कदर रही होगी। असहिष्णुता पर बहस करने वाले कह रहे हैं कि मोदी राज में भारत में लोगों के खाने−पहनने−बोलने पर रोक लग गई है। यहां तक कि एक साहब ने तो लंदन के अखबार में भारत में हिंदू तालिबान का राज बता दिया। असहिष्णुता इस समय देश में किस कदर है। इसके ढेर सारे उदाहरण हैं। देश के सबसे बड़े आलोचकों में शुमार नामवर सिंह जब कहते हैं कि पुरस्कार लौटाना ठीक नहीं है तो सोचिए सहिष्णुता के पक्षधर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं। वो प्रतिक्रिया देते हैं कि संघी हो गया है नामवर सिंह। मुनव्वर राणा का नाम ऐसे शायरों में शामिल है। जिनको हर कोई पसंद करता है। लेकिन, जैसे ही मुनव्वर कहते हैं कि जो पुरस्कार लौटा रहे हैं उनके कलम की स्याही सूख गई है। वो थक गए हैं। पूरी तथाकथित सहिष्णु जमात मुनव्वर को असहिष्णु साबित कर देती है। इस कदर कि सहिष्णु बने रहने के लिए वो एक टीवी चैनल पर नाटकीय अंदाज में अपना सम्मान वापस करते हैं। फिर कहते हैं कि वापस नहीं करूंगा। इस तरह की असहिष्णुता देश ने कभी नहीं देखी है। ये असहिष्णुता कैसे है। समझने की जरूरत है।
गोरक्षकों के नाम पर हो रही कथित गुंडागर्दी को लेकर पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कड़ी चेतावनी दी थी। यूपी के मुख्यमंत्री भी इसी दिशा में काम कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लग रहा है कि देश में कोई भी मोदी सरकार के खिलाफ बोले, तो उसे पाकिस्तान भेजने की धमकी दी जाती है। राष्ट्रद्रोही घोषित कर दिया जाता है। इस तरह का व्यवहार करने वाले भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और नरेंद्र मोदी को लगाम लगानी ही होगी।
ऐसे समय में जब देश की मौजूदा सरकार देश के अल्पसंख्यकों से कदम ताल करने की कोशिशें पूरी संजीदगी से कर रही है। दस साल के कार्यकाल में एक नहीं अनेक ऐसे मामले देशभर में सामने आये जब हामिद साहब आपको बैचेन हो जाना चाहिए था। लेकिन तब आप चुप रहे। देश और वो लोग जिनकी चिंता आपको विदाई के समय सता रही है वो कभी आपको माफ नहीं करेंगे। हैरानी इस बात की भी है कि एक दशक तक उपराष्ट्रपति रहे हमारे हामिद अंसारी साहब को भी यकायक ज्ञान प्राप्त हो ही गया कि इस देश मे मुसलमान खतरे मे है। देश के मुसलमान खतरे मे हैं या नहीं, इसका निर्णय तो समय करेगा लेकिन यह देश हमेशा शर्मिंदा रहेगा कि उपराष्ट्रपति जैसे गरिमापूर्ण संवैधानिक पद पर आप जैसे लोग भी विराजमान रहे हैं। जिन्होंने एक राजनीतिक दल को खुश करने और दूसरे को नीचा दिखाने के फेर में अपनी विदाई के अंतिम क्षणों में पद की गरिमा को ही तार−तार कर दिया। देश के आम आदमी की भागीदारी इस पूरी बहस में कहीं दिखाई नहीं देती है। लोकतंत्र के फलने−फूलने, देश के विकास और नागरिकों के खुशहाली के लिये जरूरी है कि असहिष्णुता का नाटक और प्रलाप बंद किया जाए। देश को सहिष्णु बनाए जाने की बड़ी जरूरत है।
- आशीष वशिष्ठ