हिन्दुस्तान की राजनीति में कभी मोदी के ‘गुजरात मॉडल’ ने बड़ा फरेबदल किया था। आठ वर्ष पूर्व 2014 में इसी गुजरात मॉडल के सहारे नरेन्द्र मोदी ने अहमदाबाद से दिल्ली तक की दूरी पूरी की थी। वह गुजरात के मुख्यमंत्री से देश के प्रधानमंत्री बन गए थे। पहली बार देश में बीजेपी की प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनी थी। इसका पूरा श्रेय मोदी और उनके गुजरात के विकास मॉडल को दिया गया था, जिसको (गुजरात मॉडल) आम चुनाव में मोदी ने बड़ा मुद्दा बनाया था। उन्होंने अपनी सभी जनसभाओं में गुजरात मॉडल की चर्चा करते हुए दावा किया था कि यदि केन्द्र में उनकी सरकार बनी तो जैसे गुजरात का विकास किया गया है, उसी तर्ज पर वह पूरे देश का विकास करेंगे। मतदाताओं ने, जो तत्कालीन मनमोहन सरकार के दस साल के कार्यकाल से काफी नाखुश थे, मोदी की बातों पर विश्वास किया और मोदी की सरकार बनी तो कांग्रेस चारो खाने चित हो गई।
मोदी को पीएम बने आठ वर्ष से अधिक का समय हो चुका है, इस दौरान देश का विकास के क्षेत्र में आगे भी बढ़ रहा है, लेकिन अब कहीं भी गुजरात मॉडल की चर्चा नहीं सुनाई देती है। गुजरात मॉडल नेपथ्य में चला गया है। अब तो पूरे देश में योगी मॉडल ही छाया हुआ है। दिल्ली सहित कई राज्यों की जनता योगी के कामकाज के तौर-तरीकों से काफी प्रभावित नजर आती है। योगी के काम करने के तरीके ने लोगों को योगी का कायल बना दिया है। देश के किसी भी हिस्से में अपराधी या साम्प्रदायिक ताकतें सिर उठाती हैं तो एक ही आवाज सुनाई देती है, देश या प्रदेश का माहौल बिगाड़ने वालों से निपटने के लिए वही तरीका अपनाया जाए जो उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अपराधियों या अराजक तत्वों के साथ अपनाती है। सवाल यह है कि योगी मॉडल है क्या ? तो इसको समझने के लिए किसी रॉकेट सांइस समझने जैसी जरूरत नहीं है।
योगी सरकार का एक ही फलसफा है कि कोई भी अपराधी या दंगाई सामने आकर या पर्दे के पीछे से प्रदेश को माहौल बिगाड़ने की कोशिश करे तो जैसे सांप के फन को कुचला जाता है, वैसे ही अपराधियों को ’कुचल’ दिया जाए। कोर्ट-कहचरी में मामला जाए, वहां बहस में उलझें इससे पहले योगी का बुलडोजर गरजने लगता है, जो भी कोई प्रदेश का अमन-चौन बिगाड़ने की कोशिश करता है, सबसे पहले योगी सरकार द्वारा उसकी 'कुंडली’ बनाने और खंगालने का काम शुरू किया जाता है। एक बार कुंडली सामने आने के बाद अपराधियों और दंगाइयों के खिलाफ योगी का बुलडोजर और पुलिस महकमा मैदान में कूद पड़ता है। अपराध करने वाला कभी तख्ती हाथ में लेकर आत्मसमर्पण के लिए थाने पहुंच जाता है तो कभी अपनी जमानत रद्द कराकर जेल की सलाखों के पीछे वापस चला जाता है। कई अपराधी डर के मारे यूपी से भाग खड़े होते हैं। प्रयागराज और कानपुर में दंगाइयों से जिस तरह से योगी सरकार निपटी, वह प्रदेश के इतिहास में एक मिसाल बन गई।
इसी प्रकार सीएए का विरोध कर रहे आंदोलनकारियों ने आगजनी और सरकारी-पब्लिक की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया तो योगी सरकार ने ऐसे लोगों की संपत्ति की कुर्की का फरमान जारी करते हुए उनके पोस्टर-बैनर चौराहों पर लगा दिए। जिसकी चर्चा पूरे देश में हुई। योगी सरकार का लोग गुणगान करने लगे। अब तो कहीं किसी भी राज्य में दंगा फ़साद होता है तो वहां की जनता योगी सरकार की तरह अपराधियों और दंगाइयों पर कार्रवाई की मांग करने लगती है। बिहार में जब नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ कर लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के साथ महागठबंधन की सरकार बनाई तो जनता के बीच चर्चा छिड़ गई कि अब बीजेपी इस महागठबंधन का मुकाबला कैसे करेगी तो फिर योगी का चेहरा और उनका बुलडोजर मॉडल चर्चा में आ गया। बिहार में कानून व्यवस्था का बुरा हाल है। जानकार कह रहे हैं कि अगले कुछ समय में बिहार की कानून व्यवस्था काफी प्रभावित हो सकती है। अपराध का ग्राफ भी बढ़ सकता है। ऐसे में अगला चुनाव कानून व्यवस्था के मुद्दे पर ही लड़ा जाता है तो योगी का चेहरा आगे करके बीजेपी जनता के बीच यह मैसेज दे सकती है कि जिस तर्ज पर योगी ने यूपी को अपराध मुक्त बनाया है, उसी तरह से बिहार को भी अपराध मुक्त बनाया जाएगा। बीजेपी का जनता से किया यह वायदा उसके लिए बिहार में ‘मील का पत्थर’ साबित हो सकता है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सियासी रूसख की बात की जाए तो देखने में यही आता है की देश में कहीं भी कोई चुनाव होता है तो मोदी के बाद योगी की डिमांड सबसे अधिक होती है। योगी जहां चुनाव प्रचार को जाते हैं, वहां बीजेपी प्रत्याशी की जीत की सम्भवना 70 फीसदी बढ़ जाती है। कर्नाटक में बीते दिनों भारतीय जनता युवा मोर्चा के एक नेता की हत्या के बाद अपनी ही पार्टी संगठन के तीखे सवालों से घिरे मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के खिलाफ भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने ही उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के बुलडोजर मॉडल की चर्चा शुरू कर दी। दक्षिण कर्नाटक में बीजेपी नेता प्रवीण नेट्टारु की हत्या के मामले में दो अभियुक्त ज़ाकिर और शफ़ीक़ गिरफ़्तार हो चुके हैं। लेकिन अपने ही कार्यकर्ता बोम्मई सरकार से ख़फ़ा हैं। इनका आरोप है कि सरकार अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं की सुरक्षा करने में नाकाम है। इस वर्ग की मांग है कि कर्नाटक में यूपी का योगी मॉडल लागू हो। इस पर सीएम बोम्मई कहते हैं उत्तर प्रदेश में हालात यहां से बहुत अलग हैं। वहां के लिए योगी जी बिल्कुल फिट हैं। कर्नाटक में हालात काबू करने के लिए हम हर तरीका अपना रहे हैं। अगर ज़रूरत पड़ी तो यहां भी हम गवर्नेंस का योगी मॉडल अपना सकते हैं।
बहरहाल, राजनीति में समय बहुत मायने रखता है। बोम्मई का ये बयान भी ऐसे समय में आया है जब इसी साल मार्च में योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। बता दें कि 2014 के बाद से बीजेपी ने देश में हर चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द ही लड़ा है। अब तक पार्टी ने गुजरात मॉडल का हवाला देते हुए जन-जन तक ये संदेश पहुँचाया कि मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात में कितना विकास हुआ। 2017 का यूपी चुनाव भी मोदी के चेहरे पर ही लड़ा गया और जीत मिलने के बाद योगी आदित्यनाथ को सीएम की ज़िम्मेदारी दी गई। इस मौक़े को योगी ने खूब भुनाया।
उत्तर प्रदेश में 37 साल बाद ऐसा हुआ जब कोई दल फिर से सत्ता में आया। मार्च 2022 में हुए चुनाव में उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने अपने दम पर 255 सीटें हासिल कीं। इस चुनाव के ठीक बाद रामपुर और आज़मगढ़ की लोकसभा सीटों के लिए उपचुनाव में भी बीजेपी जीती, जबकि दोनों सीटों को समाजवादी पार्टी का गढ़ समझा जाता था। राजनीति के जानकारों ने इस भारी जीत के लिए पीएम मोदी के साथ ही योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व को भी बड़ी वजह माना।
कर्नाटक हो या मध्य प्रदेश या अन्य कोई राज्य। देश की मौजूदा स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि सभी जगह योगी मॉडल का ज़िक्र अपराधी या दंगाइयों के खिलाफ़ सरकार की सख्ती के तौर पर हो रहा है। जब सवाल ये उठता है कि योगी मॉडल है क्या ? इस पर मिलीजुली प्रतिकिया सामने आती है। जब भी कोई सीएम योगी मॉडल की बात करता है तो उनका इशारा बुलडोज़र की ओर होता है। जहां पूरी ताकत के साथ बुलडोजर अपराधियों और अराजक तत्वों के खिलाफ गरजता है।
क्या योगी प्रशासन की सख्ती सभी समुदाय के लोगों पर एक जैसी होती है? इस सवाल पर योगी आदित्यनाथ की सफलता यही है कि उन्होंने एक तरफ उपद्रवियों की नकेल कस दी है तो दूसरी तरफ महिला का अपमान करने वाले नोएडा के उस श्रीकांत त्यागी को भी सबक सिखा दिया है जो अपने आप को बीजेपी का नेता कहता है। योगी ने कानून व्यवस्था काफी कड़ी कर दी है। अपने पहले कार्यकाल में भी योगी आदित्यनाथ ने दंगाइयों और अपराधियों के घरों पर ठीक वैसे ही बुलडोज़र चलाया था, जैसा अब चल रहा है, जिसकी आलोचना भी कम नहीं हुई थी।
समाजवादी पार्टी के मुखिया अख़िलेश यादव ने विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान एक सभा में योगी पर तंज़ करते हुए उन्हें बुलडोज़र बाबा कहा तो सपा पर यह दांव उलटा पड़ गया। इसके बाद बुलडोज़र बीजेपी के प्रचार अभियान का एक अहम हिस्सा बन गया। यहाँ तक कि यूपी की मजबूरी है, बुलडोज़र ज़रूरी है और बाबा का बुलडोज़र जैसे नारे भी गूंजे। सीएम योगी के पिछले कार्यकाल में सबसे पहली बार कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के अभियुक्त विकास दुबे के घर पर बुलडोज़र चलाया गया था। इसके बाद बुलडोजर किसी पीड़ित को इंसाफ दिलाने का उदाहरण बन गया। इसी प्रकार हाल ही में बीजेपी की पूर्व नेता नूपुर शर्मा की पैग़ंबर मोहम्मद पर दी गई विवादित टिप्पणी के बाद यूपी के प्रयागराज में छिड़ी हिंसा के कथित मास्टरमाइंड जावेद पंप के घर को बुलडोज़र से ढहा दिया गया। प्रशासन की ओर से पंप के घर को अवैध निर्माण बताया गया था। जानकारों की नज़र में बुलडोज़र एक्शन दरअसल अपराधियों और अभियुक्तों को दंड देने की प्रक्रिया भर नहीं है। इसके पीछे पूरे प्रदेश और अब देश भर में अपराधियों और दंगाइयों को मज़बूती के साथ यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि कानून का खिलावाड़ करने वालों को कोई बचा नहीं सकता है। योगी की पहचान ऐसे प्रशासक के तौर पर हो रही है, जो अपराध के ख़िलाफ़ फ़ौरन कार्रवाई करते हैं। योगी सरकार की इस त्वरित कार्रवाई वाले फॉर्मूले पर चलते हुए हाल में मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार और असम की हिमंत बिस्वा सरमा सरकार भी अभियुक्तों पर बुलडोज़र वाला एक्शन ले चुकी है।
उधर, योगी सरकार के कामकाज के तरीकों पर सवाल उठाते हुए उनके विरोधी कहते हैं, बिना नोटिस दिए किसी के जीवनभर की कमाई से बने घर को ढहा दिया जाता हैं, वो भी सरकार की ओर से ऐसा किया जाए तो ये हमारे देश के लिए बहुत नई और खतरनाक चीज़ है। कानूनी प्रक्रिया को नज़रअंदाज़ करते हुए अभियुक्तों पर झटपट कार्रवाई को लेकर योगी सरकार की आलोचनाओं के बावजूद ऐसा क्या है जो उनको बाकी बीजेपी राज्यों के लिए मिसाल बना रहा है। ख़ासतौर पर कर्नाटक जैसे राज्य में जो शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा जैसे कई बुनियादी स्तरों पर उत्तर प्रदेश से आगे है।
दशकों से यूपी की राजनीति को करीब से देखने वालीं वरिष्ठ पत्रकार सुनीता एरॉन कहती हैं, 'योगी मॉडल की जब बात होती है तो उसका मतलब हिंसा के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस से है। चाहे सीएए को लेकर विरोध प्रदर्शन हो, जुमे की नमाज़ के बाद हुई हिंसा हो, इन सब मामलों में ज़ीरो टॉलरेंस रखा गया। केवल एफ़आईआर या गिरफ़्तारी ही नहीं बल्कि अभियुक्तों की तस्वीरें लगाकर उन्हें सार्वजनिक किया, ख़ासतौर पर जिन्होंने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया। इसका समाजिक चेतना पर बहुत असर पड़ता है। कोई भी विध्वंसक प्रवृत्ति के लोगों के साथ नहीं दिखना चाहता।
बेहतर कानून व्यवस्था को ही योगी मॉडल बताते हुए बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि यूपी की पिछली सरकारों में आपराधिक गिरोह सत्ता के समानांतर एक नेटवर्क चलाया करते थे। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कानून व्यवस्था का मुद्दा गले की हड्डी बन जाया करता था। मुलायम सिंह के शासन काल में अमिताभ बच्चन से कहलवाना पड़ा कि यूपी में दम है क्योंकि जुर्म यहाँ कम है। लेकिन जनता ने इसको खारिज कर दिया। बीते पाँच सालों में हमने जितने माफ़ियाओं और दंगाइयों पर ठोस कार्रवाई की है, वो बीते 15 सालों में नहीं हुई। यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने ख़ुद आदेश दिया था कि किसी भी धार्मिक स्थल के लाउडस्पीकर की आवाज़ परिसर से बाहर नहीं जानी चाहिए। इस अभियान के तहत एक सप्ताह में यूपी सरकार ने सफलतापूर्वक 54000 लाउडस्पीकर हटवाने का दावा किया था।
सुनीता एरॉन धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाए जाने के बावजूद विरोध न होने के लिए योगी सरकार के प्रबंधन की तारीफ़ करती हैं। उन्होंने कहा, 'योगी सरकार ने सबसे पहले मथुरा के मंदिर से लाउडस्पीकर हटाया। इसके बाद मुसलमानों पर भी लाउडस्पीकर हटाने का नैतिक दबाव बना। इसी तरह से सड़क की बजाय केवल मस्जिद के अंदर जुमे की नमाज़ का मामला भी शांति से संभाला। हिंदू हो या मुसलमान सबको ये बताया गया है कि कानून का पालन करना होगा। इस साल चुनावों से पहले अपनी सरकार की उपलब्धि गिनाते हुए ख़ुद योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 2017 के बाद अपराधी राज्य छोड़कर जा रहे हैं, जनता नहीं।
हालाँकि, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में वर्ष 2019 की तुलना में 2020 में 28 फ़ीसदी अपराध बढ़ गए। इसके अलावा सबसे ज़्यादा हत्या और अपहरण के मामले भी उत्तर प्रदेश में ही दर्ज किए गए। लेकिन 2020 के आंकड़ों के ज़रिए सरकार ने ये भी दावा किया कि राज्य में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध घटे हैं। खैर, इन सब बातों से बेफिक्र योगी मिशन 2024 में लगे हैं ताकि एक बार फिर से मोदी का पीएम बनाया जा सके।
- अजय कुमार