17 सितंबर का दिन रहने वाला है बहुत खास, चुनाव बाद भी केजरीवाल के लिए CM बनना संभव तभी, जब...

By अभिनय आकाश | Sep 16, 2024

शतरंज एक ऐसा खेल होता है जहां पर बहुत दिमाग से चाल चलनी होती है। कब घोड़ की चाल चलनी है और कब सिपाही की और राजा को कैसे बचाना है। ये सोच समझ कर चाल चलनी होती है। राजनीति में भी इसी तरीके का खेल खेलना होता है। ये खेल खेलने में अरविंद केजरीवाल बहुत माहिर हैं। दिल्ली की कुर्सी पर बैठे उन्हें पिछले एक दशक से ज्यादा का वक्त हो गया है। इस दौरान उन्होंने ऐसा खेल खेला है कि उनके विरोधी परेशान रहने लगे हैं। जून के महीने में अरविंद केजरीवाल जब चुनाव प्रचार के लिए जेल से बाहर आए तो उन्होंने 17 सितंबर को लेकर एक बड़ा बयान दिया। ऐसा बयान कि बीजेपी को तुरंत प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सफाई देनी पड़ गई। उस दिन अरविंद केजरीवाल ने कह दिया कि मोदी 75 साल का होने पर पद छोड़ देंगे और अमित शाह पीएम बनेंगे। वो इसलिए अपने लिए नहीं अमित शाह को पीएम बनाने के लिए वोट मांग रहे हैं। आज अरविंद केजरीवाल ने कहा कि वो जनता की अदालत में जाएंगे और उन्हें फिर से चुने जाने के बाद वो सीएम की कुर्सी पर बैठेंगे।लेकिन इसमें भी कई पेंच है जिसका कि कोई जिक्र भी नहीं कर रहा है। 

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कोई मजबूरी है या फिर गेम प्लान

तिहाड़ जेल से रिहाई के बाद पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अऱविंद केजरीवाल ने बड़ा ऐलान कर दिया। अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफे का ऐलान किया। 15 सितंबर को इस्तीफा नहीं दिया कहा कि दो दिन बाद देंगे। केजरीवाल ने कहा कि वो दो दिन बाद सीएम पद से इस्तीफा देने जा रहे हैं। इसके साथ ही मनीष सिसोदिया भी कोई पद नहीं ले रहे हैं। मनीष सिसोदिया ने भी पद लेने से मना कर दिया है और संघर्ष का रास्ता चुनने का ऐलान किया है। मेरी जगह कोई और मुख्यमंत्री बनेगा। आगे कहा कि वो दिल्ली में समय से पहले चुनाव कराने की मांग करेंगे। अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में भी चुनाव झारखंड और महाराष्ट्र के साथ कराए जाए। वैसे फरवरी में चुनाव होने हैं। लेकिन उन्होंने ये भी कह दिया कि नया नेता विधायक दल की बैठक में चुना जाएगा। अब ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि इतने दिनों से जेल से ही सरकार चलाने की जिद पर अड़े अरविंद केजरीवाल बाहर आने के बाद इस्तीफा क्यों देने जा रहे हैं। क्या ये अरविंद केजरीवाल की कोई मजबूरी है या फिर गेम प्लान?

17 सितंबर का दिन क्यों है खास

दो दिन बाद 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में होंगे। उस दिन उनकी पार्टी उनका जन्मदिन मना रही होगी। लेकिन केजरीवाल ने इस्तीफे का वो दिन चुनकर जन्मदिन के रंग में कुछ सुर्खियां खुद भी बटोरने की सोची। भारत की राजनीति में आज भी इस्तीफे का अपना नैतिक महत्व है। उसकी ताकत कई बार तमाम जनादेशों और साजिशों पर भारी पड़ जाती है। टाइमिंग की ताकत पर मोदी की महारत मानी जाती थी। प्राइम टाइम के समय अचानक टीवी पर आ जाना नोटबंदी का ऐलान कर देना। लॉकडाउन की घोषणा करना। राष्ट्र के नाम संबोधन उनकी रणनीति का अहम हिस्सा माना जाता रहा है। लेकिन 17 सितंबर भारत की राजनीति का एक दिलचस्प दिन होता जा रहा है। नियती का खेल देखिए जब मोदी अपना जन्मदिन मना रहे होंगे केजरीवाल उसी 17 सितंबर को इस्तीफा देकर सत्ता छोड़ रहे होंगे। 

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जीतकर भी CM वाली पॉवर नहीं पा सकेंगे केजरीवाल

सीएम केजरीवाल मुख्यमंत्री ऑफिस और दिल्ली सचिवालय नहीं जाएंगे। दिल्ली के सीएम अपनी ओर से दिए गए इस कथन से बाध्य हैं कि वह सरकारी फाइलों पर तब तक हस्ताक्षर नहीं करेंगे जब तक कि ऐसा करना आवश्यक न हो और दिल्ली के उपराज्यपाल की मंजूरी/अनुमोदन प्राप्त करने के लिए आवश्यक हो। ऐसे में चुनाव जीत जाने पर क्या ये बंदिशें खत्म हो जाएंगी। इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। सारी मीडिया का ध्यान केजरीवाल जो बोल रहे हैं उसी पर है सिर्फ। सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि आप सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठ सकते। लेकिन फिर भी आप कह रहे हैं कि जनता की अदालत में जाऊंगा। कट्टर इमानदार हूं तो फिर से मुख्यमंत्री बन जाऊंगा। लेकिन वो फिर से भी सीएम नहीं बन सकते। सुप्रीम कोर्ट जब तक इन शर्तों को बदलेगा नहीं तब तक सब वैसा ही रहने वाला है।  

क्या सुप्रीम कोर्ट ने निकाल दी हवा

केजरीवाल ने कहा कि हमारे वकीलों ने कहा कि इसमें 15 साल लग जाएंगे। लेकिन शायद वो भूल गए कि एमपीएमएलए कोर्ट में तय सीमा में केस का निवारण होने का नया कानून बना है। बेल लेने की जब बात आती है तो रोज उन्हें तारीख भी मिल जाती है। अभिषेक मनु सिंघवी की मदद से तो सीधा सुप्रीम कोर्ट में हर दो दिन पर तारीख मिल जा रही थी। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल की सारी हवा निकाल कर रख दी है। आप इसकी कल्पना कीजिए कि वो मुख्यमंत्री जिसे सीएम ऑफिस में घुसने की भी अनुमति न हो। आप एक घर के मालिक है और आपकी घर में एंट्री बैन कर दे तो कैसा लगेगा। लेकिन इसमें टेक्निकल मुद्दा ये आ गया कि सीएम कोई काम ही नहीं कर सकता तो कोई कैबिनेट मीटिंग भी नहीं बुला सकता। 

लिए जा सकेंगे बड़े फैसले

केजरीवाल का इस्तीफा बंद रास्तों को खोलने का काम करेगा। चुनाव से पहले केजरीवाल दिल्ली में कुछ बड़ी योजनाएं लागू करना चाहते हैं। इनमें महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपये की सम्मान राशि देने की योजना सबसे अहम है। पिछले बजट में सरकार ने इसकी घोषणा तो कर दी थी, लेकिन इसे कैबिनेट की मंजूरी मिलने से पहले ही केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत की जो शर्तें लगाई हैं, उनकी वजह से केजरीवाल के लिए कैबिनेट बैठक बुलाना मुश्किल होगा। कोई नया सीएम बनता है, कैबिनेट की बैठक बुला योजनाओं को पास कराना की तो आसान हो जाएगा। उसके बाद पार्टी चुनाव में यह कह सकती है कि उसने योजना पास कर दी है और सरकार बनते ही उसे लगा करेगी। 

नवंबर में चुनाव कराना कितना प्रैक्टिकल 

कार्यालय के अफसरों के अनुसार 6 महीने पहले चुनाव की तैयारियां शुरू हो जाती है। चार महीने पहले सेक्टर अफसर की नियुक्ति करने का प्रावधान है। इस हिसाब से अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियां तो शुरू हो गई है, लेकिन ये अभी अधूरी है। अभी तक वोटर लिस्ट तैयार नहीं हो पाई है। लोकसभा चुनाव के 5 महीने हो चुके हैं। इस दौरान हजारों नए वोटर्स को लिस्ट में शामिल करना है। स्पेशल समरी रीविजन की घोषणा की गई है, जो अगले महीने से शुरू होगा। किसी भी चुनाव के लिए वोटर लिस्ट का तैयार करना सबसे महत्वपूर्ण काम है।

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