भाषा विवाद के बीच DMK सांसद का बयान, हिंदी भाषी राज्य देश के विकसित प्रदेश नहीं हैं

By अंकित सिंह | Jun 06, 2022

देश में हिंदी को लेकर लगातार विवाद होता रहता है। दक्षिण भारत के राज्यों में अक्सर हिंदी का विरोध देखने को भी मिल जाता है। इन सबके बीच डीएमके नेता और राज्यसभा सांसद टीकेएस एलनगोवन ने हिंदी को लेकर विवादित बयान दे दिया है। अपने बयान में डीएमके सांसद ने साफ तौर पर कहा कि तमिलों का दर्जा घटाकर हिंदी शूद्र कर देगी। इसके साथ ही उन्होंने दावा किया कि हिंदी भाषी राज्य देश के विकसित प्रदेश नहीं है। उन्होंने कहा कि जिन राज्यों की मातृ ज़बान स्थानीय है, वह अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। अपने बयान में उन्होंने साफ तौर पर कहा कि हिंदी को लादकर मनुवादी विचार थोपने की कोशिश की जा रही है। फिलहाल डीएमके सांसद का यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। 

 

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डीएमके सांसद ने हिंदी की पैरवी करने के लिए गृह मंत्री अमित शाह के भी आलोचना कर दर दी। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि हिंदी क्या करेगी, सिर्फ हमें ‘शूद्र’ बनाएगी। इससे हमें कोई फायदा नहीं होगा। आपको बता दें कि तथाकथित वर्ण व्यवस्था में ‘शूद्र’ शब्द का इस्तेमाल सबसे निचले वर्ण के लिए किया जाता है। यह पहला मौका नहीं है जब डीएमके के किसी नेता की ओर से हिंदी भाषी को लेकर विवादित बयान दिया गया है। इससे पहले तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री के पोनमुडी ने तंज कसा था। उन्होंने कहा था कि हिंदी भाषी लोग राज्य में ‘पानी पुरी’ बेचते हैं। उनकी यह टिप्पणी इस दावे के जवाब में आई थी कि हिंदी सीखने से अधिक नौकरियां मिलेंगी। बाद में हालांकि उन्होंने अपने इस विवादास्पद टिप्पणी से इंकार किया था।

 

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एलनगोवन ने कहा कि तमिल गौरव 2000 साल पुराना है और इसकी संस्कृति हमेशा समानता का पालन करने वाली रही है। उन्होंने कहा कि वे संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं और हिंदी के जरिए मनुवादी विचार थोपने की कोशिश कर रहे हैं…. इसकी इजाज़त नहीं देनी चाहिए… अगर हमने दी तो हम गुलाम होंगे, शूद्र होंगे। सांसद ने कहा कि अनेकता में एकता देश की पहचान रही है और इसकी प्रगति के लिए सभी भाषाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में हिंदी को कथित रूप से थोपना एक संवेदनशील मसला है और द्रमुक ने 1960 के दशक में जनता का समर्थन जुटाने के लिए इस मुद्दे का इस्तेमाल किया था और उसे कामयाबी मिली थी।

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