By डॉ. आशीष वशिष्ठ | Dec 03, 2023
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था। खासकर हिंदी पट्टी के तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजों पर देशभर की आंखें टिकी हुई थीं। इन तीन राज्यों में जिस तरह भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को पछाड़ा है, वो काबिलेतारीफ है। वास्तव, में कांग्रेस को इस बात का भरोसा था कि वो छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार बरकरार रखेगी और मध्य प्रदेश को भाजपा से छीन लेगी। राजस्थान को लेकर उसकी राय यह थी कि यहां कांटें की टक्कर होगी और हो सकता है कि अशोक गहलोत अपनी सरकार बचा पाने में सफल रहेंगे। लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकारों के सारे अनुमान धरे के धरे रह गए। भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश में ऐतिहासिक जीत दर्ज की ही, वहीं उसने कांग्रेस से राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे दो अहम राज्य छीन लिए। भाजपा राजस्थान और मध्य प्रदेश को लेकर आश्वस्त थी, छत्तीसगढ़ तो बोनस की तरह उसकी झोली में आ गया है।
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा की 519 और लोकसभ की 65 सीटें आती हैं। अगर हिंदी पट्टी के राज्यों- जम्मू कश्मीर, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, दिल्ली, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और केंद्र शासित चंडीगढ़ एवं लेह लद्दाख में कुल 245 लोकसभा की सीटें आती हैं। वर्तमान में कांग्रेस के पास हिंदी पट्टी में मात्र 14 लोकसभा सांसद हैं। वर्तमान लोकसभा में कांग्रेस के कुल 51 सांसद हैं और हिंदी पट्टी के एकमात्र राज्य हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। केंद्र में किसकी सरकार बनेगी यह तय करने में हिंदी पट्टी के राज्य बड़ी भूमिका निभाते हैं। ताजा चुनाव नतीजों से कांग्रेस की लोकसभा चुनाव तैयारियों को बड़ा झटका लगना तय है।
अगर हिन्दी पट्टी के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो यहां कांग्रेस की हालत किसी से छिपी नहीं है। पिछले तीन दशकों से पार्टी यूपी में अपनी जमीन तलाश रही है। यूपी में सारी रणनीति और पैंतरेबाजी के बावजूद वो ठीक से खड़ी नहीं हो पा रही है। साल 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का अब तक सबसे खराब प्रदर्शन दिखा। कांग्रेस को दो सीटों पर जीत हासिल हुई। इस चुनाव में देश की सबसे पुरानी पार्टी कई प्रधानमंत्री देने वाले राज्य में अब निराशाजनक प्रदर्शन के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई। वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके लड़ा था। और उसे 7 सीटों पर जीत मिली थी।
असल में कांग्रेस की यूपी में खराब हालत 1985 से ही जारी है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस तब से 50 सीटें भी नहीं जीत पाई है। कांग्रेस 1985 के बाद से अब तक 50 का आंकड़ा नहीं पार कर पाई। इस चुनाव में इतिहास का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन दिख रहा है। कांग्रेस को वर्ष 2012 में विधानसभा चुनाव में 28, वर्ष 2007 में 22 और वर्ष 2002 में 25 सीटें मिली थीं। यूपी में पिछले चार लोकसभा चुनाव के नतीजों पर गौर किया जाएगा तो कांग्रेस का सबसे बेहतर प्रदर्शन 2009 में ही रहा था। आज सिर्फ एक सीट वाली कांग्रेस ने 2009 में 21 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2009 के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को जबरदस्त झटका लगा और कांग्रेस सिर्फ अपनी दो परंपरागत सीटों रायबरेली व अमेठी में ही जीत हासिल कर सकी। 2019 के चुनाव में कांग्रेस की सिर्फ एक सीट ही रह गई। इन चुनावों में सपा-बसपा के गठबंधन की वजह से कांग्रेस ने कई सीटों पर अपने प्रत्याशी नहीं उतारे, जबकि कई सीटों पर कांग्रेस तीसरे नबंर पर रही। 2019 में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी को यूपी की अमेठी सीट के साथ केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ने को मजबूर होना पड़ा। अमेठी में राहुल गांधी को बीजेपी की तेजतर्रार नेता स्मृति ईरानी से शिकस्त दी।
विधानसभा चुनाव को लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था, ऐसे में कांग्रेस ने चुनाव जीतने के लिए हर पैंतरे का प्रयोग किया। प्रधानमंत्री मोदी पर सीधे हमले के साथ ही, जाति जनगणना और जनता को लुभाने के लिए वायदे भी जमकर किये गये। बावजूद इसके पार्टी हिंदी पट्टी में बुरी तरह हार गई। खासकर मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। लेकिन वहां बीजेपी 18 साल के अपने शासन को बरकरार रखने में सफल रही। बीजेपी ने 2018 के विधानसभा चुनाव से बड़ी जीत दर्ज की है। जो अपने आप में ऐतिहासिक है।
मध्य प्रदेश में जहां बीजेपी 18 साल के शासन के बाद सरकार बचाने में सफल रही, वहीं कांग्रेस राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपने पांच साल के कार्यकाल के बाद ही भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण, वायदाखिलाफी और अकुशल प्रशासन के चलते सत्ता से बाहर हो गई। छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने वर्ष 2003 से 2018 तक 15 साल शाासन किया था। उसके बाद 2018 में कांग्रेस की सत्ता स्थापित हुई। लेकिन प्रदेश की जनता ने पांच साल में ही उसे सत्ता से बेदखल कर दिया। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में शराबबंदी का वायदा किया था। लेकिन पांच साल में उसने यह वायदा पूरा नहीं किया। उलटा बघेल सरकार पर शराब घोटाले के आरोप लगे। सीमेंट घोटाला और महादेव बैटिंग एप्प के आरोपों में भी बघेल सरकार घिरती दिखाई दी। तमाम आरोपों के बावजूद कांग्रेस को इस बात की पूरी उम्मीद थी कि प्रदेश में बीजेपी कमजोर स्थिति में है, ऐसे में वो सरकार बनाने में कामयाब रहेगी। वहीं छत्तीसगढ़ को लेकर बीजेपी को भी कोई ज्यादा उम्मीद नहीं थी। लेकिन प्रदेश की जनता ने सारे समीकरणों और अनुमानों को धता बताते हुए समझदारी दिखाई और सारे विश्लेषणों को फेल करते हुए बीजेपी के हक में अपना फैसला सुनाकर सबको चौंका दिया।
ताजा चुनाव नतीजों में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का एक साथ हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में हार से उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरेगा। राहत की बात यह है कि दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार बन रही है। तीन अहम राज्यों में हार से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व पर भी सवालिया निशान लग गया है। विधानसभा चुनाव में हार से देशभर में ये संदेश जाएगा कि राहुल और प्रियंका दोनों मिलकर भी पार्टी को खड़ा करने की क्षमता नहीं रखते हैं।
वहीं विधानसभा चुनाव के दौरान नये नवेले इंडिया गठबंधन के सहयोगियों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर जो तीखी बयानबाजी और खींचतान सामने आई थी, उससे अब इंडिया गठबंधन के भविष्य पर भी बड़ा प्रश्न चिन्ह लग गया है। इंडिया गठबंधन की कुल जमा चार बैठकों के बाद सारी गतिविधियां ठप हो गई थीं। विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आगामी 6 दिसंबर को इंडिया गठबंधन की बैठक बुलाई है। जिस पर इंडिया गठबंधन के सहयोगियों की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। जानकारों के मुताबिक इस पराजय के बाद इंडिया गठबंधन में भी कांग्रेस की ताकत और नेतृत्व कमजोर होगा। हो सकता है इंडिया गठबंधन नये रंग रूप में नजर आए या फिर तीसरा मोर्चा भी बन सकता है।
कुल मिलाकर हिंदी पट्टी के तीन राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत और तेंलगाना में सीटों में वृद्धि से भाजपा का मनोबल बढ़ेगा। वो दोगुनी तैयारी के साथ लोकसभा चुनाव में उतरेगी। चूंकि विधानसभा चुनाव स्थानीय नेतृत्व के स्थान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़े गए ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी फिर एक बार बड़े और मजबूत चेहरे के साथ विपक्ष के सामने होंगे। विधानसभा चुनाव के नतीजों से भविष्य की राजनीति और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में क्या होने वाला है, इसका संकेत देखा जा सकता है।
-डॉ. आशीष वशिष्ठ
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)