क्या उत्तराखंड में भी कांग्रेस खेलेगी दलित कार्ड की राजनीति? हरीश रावत के बयान के मायने समझिए

By अंकित सिंह | Sep 27, 2021

पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को सत्ता की कमान सौंपने के बाद कांग्रेस की ओर से इस बात को जबरदस्त तरीके से कहा जा रहा है कि उनकी पार्टी ने एक दलित को मुख्यमंत्री बनाया है। इसके बाद दलित मुख्यमंत्री को लेकर राजनीति तेज हो गई है। कांग्रेस जहां दलितों को सम्मान देने का दावा कर रही है तो वहीं भाजपा से यह भी सवाल कर रही है कि उसने किसी दलित को मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया? इन सबके बीच इस बात को लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि क्या पंजाब के बाद अब उत्तराखंड में भी दलित नेता को मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस आगे कर सकती है या फिर चुनाव बाद दलित को सत्ता सौंपने का वादा कर सकती है? इस बात की चर्चा इसलिए भी शुरू हुई है क्योंकि इस तरह की आवाज पार्टी के भीतर ही उठनी शुरू हो गई। इसको लेकर सबसे पहले मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे हरीश रावत ने अपनी राय रखी।

 

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रावत का बयान

उत्तराखंड में कांग्रेस के प्रचार अभियान प्रभारी हरीश रावत ने कहा कि वह एक दलित को राज्य के मुख्यमंत्री के पद पर देखना चाहते हैं और उनकी पार्टी इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए काम करेगी। रावत ने कहा कि कांग्रेस ने पंजाब में एक दलित को मुख्यमंत्री बनाकर इतिहास रचा है। रावत ने कहा, “आजीवन गाय के गोबर से कंडे बनाने वाली महिला के बेटे को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने ना केवल पंजाब में बल्कि पूरे उत्तर भारत में इतिहास रचा है।” पंजाब कांग्रेस के एआईसीसी प्रभारी रावत ने कहा, “जब पंजाब के नए मुख्यमंत्री एक संवाददाता सम्मेलन में अपने गरीब परिवार के बारे में बता रहे थे तो हम सबकी आंखों में आंसू आ गए।” उन्होंने दलित के बेटे को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाने के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी को धन्यवाद दिया और कहा कि इतिहास में ऐसे मौके बेहद कम देखने को मिले हैं जब ऐसी नजीर पेश की गई। रावत ने कहा, “मैं भगवान और मां गंगा से प्रार्थना करता हूं कि मुझे मेरे जीते जी एक दलित के बेटे को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर देखने का अवसर मिले। हम इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए काम करेंगे।

 

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रावत के बयान के मायने

रावत का यह बयान भी अपने आप में इसलिए मायने रखता है क्योंकि पंजाब में जो भी घटनाक्रम हुआ उसमें हरीश रावत की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्हीं की उपस्थिति में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री चुना गया। हरीश रावत पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हैं। इसलिए हरीश रावत दलित राजनीति के नफा-नुकसान को समझते हैं और इसका आकलन करके आलाकमान को ही बता सकते हैं। कांग्रेस के अंदर रावत की सलाह को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। पार्टी के कई नेता रावत के पक्ष में है तो कई इस पर अंतिम फैसला आलाकमान को लेने की बाद कह रहे हैं।

 

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उत्तराखंड में दलित राजनीति

उत्तराखंड को सवारने प्रभुत्व वाला राज्य माना जाता है। यही कारण है कि वहां अब तक सभी मुख्यमंत्री सवर्ण वर्ग से ही हुए हैं चाहे वह बीजेपी के रहे हैं या फिर कांग्रेस के। लेकिन राज्य में दलित आबादी भी कम नहीं है। आंकड़ों की माने तो राज्य में 18.50% दलितों की आबादी है। 2002, 2007, 2012 के चुनाव में बसपा 11 से 12% वोट हासिल करती रही। इसका मतलब है कि वहा दलितों की आबादी अच्छी खासी है। हालांकि 2017 के चुनाव में दलित वोटर्स का बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ चला गया है। दूसरी ओर राज्य में कांग्रेस के पास इस वक्त सबसे बड़ा दलित चेहरा प्रदीप टम्टा हैं। वह फिलहाल राज्यसभा के सदस्य हैं। इसके अलावा राज्य के कार्यकारी अध्यक्ष डॉक्टर जीतराम भी दलित है। टम्टा को हरीश रावत का करीबी माना जाता है। 

 

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