चुनाव नजदीक लेकिन वीरभद्र के चलते कांग्रेस मुश्किल में

By विजय शर्मा | Jul 20, 2017

हिमाचल प्रदेश में चुनावी हलचल शुरू होने से पहले ही मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं। हिमाचल में चुनावी हलचल जोरों पर है और वीरभद्र सिंह की उलझन दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। एक तरफ जहां वह कोर्ट में अपने और अपने परिवार का बचाव करने में जुटे हैं तो दूसरी तरफ पार्टी में बिखराव बढ़ता जा रहा है। साथ ही शिमला के कोटखाई में एक 15 वर्षीय लड़की की दुष्कर्म के बाद हत्या से पूरे प्रदेश में सरकार विरोधी धरना-प्रदर्शन चालू हैं और 8 दिन बाद भी पुलिस खाली हाथ है। हालांकि अब सरकार ने जनता के बढ़ते दबाव के चलते मामले को सीबीआई को सौंपने की घोषणा कर दी है लेकिन मामला शांत नहीं हुआ है। पुलिस ने संदेह के आधार पर दो युवकों को हिरासत में लिया था लेकिन डीएनए टेस्ट के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया है।

 

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर उनकी पार्टी के ही कई नेता माहौल बिगाड़ने का आरोप लगा रहे हैं और उनके आधिकारिक फेसबुक पेज पर आरोपियों के फोटो डालने और हटाने से विवाद बढ़ने को जिम्मेदार मानते हैं। मामला इतना बढ़ गया है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सारे मामले की जानकारी प्रदेश अध्यक्ष से हासिल की। पार्टी के कई नेता मुखर होकर वीरभद्र सिंह की आलोचना कर रहे हैं और कांग्रेस आलाकमान दबाव में है। कांग्रेस के ही कई नेता दबे स्वर में मुख्यमंत्री को हटाने पर जोर दे रहे हैं ताकि इसी साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में भ्रष्टाचार और सरकार विरोधी लहर से बचा जा सके। कांग्रेस आलाकमान किसी युवा चेहरे को सामने रखकर चुनाव लड़ना चाहती है, क्योंकि वीरभद्र सिंह 85 वर्ष के हो गये हैं और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं लेकिन उसके पास प्रदेश स्तर पर ऐसा कोई नेता नहीं है जो वीरभद्र सिंह के कद का हो और यही कारण है कि भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करने और जमानत पर होने के बावजूद वह मुख्यमंत्री बने हुए हैं।

 

उधर अकसर विवादों में रहने वाले कांग्रेसी नेता मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने चुनाव पूर्व वीरभद्र सिंह पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। हालांकि उनके यह आरोप नए नहीं हैं। इससे पहले भी वह कई बार ऐसे आरोप लगा चुके हैं और चुनाव हारे हुए हैं। वीरभद्र सिंह ने उनको पर्यटन विकास निगम का चेयरमैन बना दिया था। असल में विजय सिंह मनकोटिया अवसरवादी राजनीति करते आये हैं। पर्यटन विकास निगम का चेयरमैन रहते हुए उन्होंने सभी सुविधाओं व भत्तों का उपभोग किया और अंत में उस नाव में छेद करने पर उतारू हैं, जिसमें वह बैठे हैं। इसी तरह वर्ष 1998 में वह बसपा में शामिल हो गये थे। पूरे प्रदेश में उसके लिए प्रचार किया, पर वह खुद भी चुनाव हारे और पार्टी के लिए भी कोई सीट नहीं दिला सके। कुछ समय के लिए मनकोटिया चुपचाप रहे और उसके बाद फिर कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने चुनाव भी लड़ा, लेकिन भाजपा के हाथों उन्हें हार मिली। यह सब होने के बावजूद वीरभद्र सिंह ने उन्हें पर्यटन विकास निगम का चेयरमैन बनाया और उन्हें उपभोग के लिए सभी सुविधाएं व विशेषाधिकार दिए। शायद यह दोनों के बीच चुनाव पूर्व समझौता था, लेकिन लोगों को वह दिन भी याद है जब उन्होंने सीडी जारी करके वीरभद्र सिंह पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाये थे।

 

हालांकि वीरभद्र सिंह द्वारा उनको पर्यटन विकास निगम के चेयरमैन पद से हटाने के बाद उनके अपने क्षेत्र तक में खुशी मनाई गई। यह सब वीरभद्र सिंह के समर्थकों ने किया। लेकिन मेजर मनकोटिया ने वीरभद्र सिंह को सड़ा हुआ सेब तक कह दिया और वह पार्टी में बने हुए हैं। वह सुर्खियों में रहने के लिए ऐसा करते हैं या फिर वीरभद्र सिंह के ही विरोधी गुट का मोहरा बने हैं। हालांकि प्रदेश की जनता उन्हें गंभीरता से नहीं लेती। लेकिन वीरभद्र सिंह की मजबूरी समझ नहीं आती, जिन्होंने गंभीर आरोप लगाने वाले और चुनाव हारे हुए विजय सिंह मनकोटिया को पर्यटन विकास निगम का चेयरमैन बनाकर पूरी सुख-सुविधाओं से नवाजा था। उनके इस प्रकार के आरोपों से पार्टी का प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है। कांग्रेस इस समय संकट के दौर से गुजर रही है। परिवहन मंत्री जीएस बाली दिल्ली के नेताओं के सम्पर्क से ही नेता और फिर मंत्री बने हैं और अपने दिल्ली सम्पर्कों के जरिए वह पहले भी मुख्यमंत्री के लिए अपना नाम चलाते रहे हैं लेकिन प्रादेशिक नेताओं ने उन्हें तरजीह नहीं दी बल्कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता कौल सिंह ठाकुर को पार्टी का वफादार सिपाही होने के नाते हमेशा सरकार में नम्बर दो माना जाता रहा है।

 

आरोपों और मुकदमेबाजी में जब भी वीरभद्र सिंह के हटाने की चर्चा चली तो मुख्यमंत्री के लिए हमेशा कौल सिंह ठाकुर का नाम ही सामने आया है। जी.एस. बाली की विजय सिंह मनकोटिया से नजदीकी जगजाहिर है। मेजर विजय सिंह मनकोटिया को हटाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, जबकि दो मंत्रियों ठाकुर सिंह भरमौरी तथा सुधीर शर्मा स्पष्ट रूप से वीरभद्र सिंह के पक्ष में उतर आए हैं। हिमाचल कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू से भी वीरभद्र सिंह खुश नहीं हैं और उन्हें हटवाना चाहते हैं। मीडिया ने जब मनकोटिया को पार्टी से निकालने के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसा कोई निर्देश नहीं है। हिमाचल कांग्रेस दो खेमों में बंटती जा रही है, ऊपरी हिमाचल एवं नया हिमाचल। ऊपरी हिमाचल की कांग्रेस वीरभद्र सिंह के साथ है जबकि निचले हिमाचल मसलन ऊना, कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर के कांग्रेसी खेमे में हलचल है और वे वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ने पर नुकसान की आशंकाओं के चलते नेतृत्व बदलने पर जोर दे रहे हैं।

 

वहीं भाजपा ने अपनी परिवर्तन यात्रा का समापन कर दिया है और प्रदेश के माहौल को भांपने की कोशिश की है। बड़े-बड़े केन्द्रीय नेताओं सहित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस परिवर्तन यात्रा में शामिल होकर यह संदेश दे चुके हैं कि भाजपा इस बार पूरी तरह से संगठित होकर चुनाव मैदान में उतरेगी। भाजपा जहां पहले 50+ का टारगेट लेकर चल रही थी इस परिवर्तन यात्रा के बाद उसका मनोबल बढ़ गया है। पार्टी 60+ के साथ परिवर्तन का नारा दे रही है। इस परिवर्तन यात्रा के दौरान एक बात साफ हो गई है कि सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता और मुख्यमंत्री पद के लिए प्रेम कुमार धूमल ही नेताओं और जनता की पसंद हैं और शायद स्थिति को भांपकर ही केन्द्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा को यह बयान देना पड़ा कि वह केन्द्र में ही खुश हैं। हालांकि गाहे-बगाहे पार्टी कार्यकर्ता और स्वयं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री उनको भाजपा का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बताने से नहीं चूकते थे और इसके पीछे उनकी मंशा प्रदेश भाजपा को लड़ाना और विरोधी गुट को उकसाने की रही है। वीरभद्र सिंह कभी भी मुखरता से जे.पी. नडडा को नहीं कोसते थे लेकिन पिछले दिनों जब नड्डा ने उन पर भ्रष्टाचार के मामले में हमला बोला, तो उन्होंने नड्डा को बदतमीज लड़का कहा था। वीरभद्र सिंह नड्डा को धूमल का प्रतिद्वंद्वी मानते हैं, इसलिए उनको उकसा कर वीरभद्र सिंह की मंशा धूमल को नीचा दिखाने की होती है लेकिन इस बार नड्डा वीरभद्र सिंह को बता गये कि वो भाजपाई हैं।

 

वहीं भाजपा ने उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में चुनावी जीत के तुरंत बाद ही हिमाचल फतह के लिए कमर कस ली थी। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार पार्टी कार्यकर्ताओं को चुनाव के लिए तैयार करने की फूलप्रूफ रणनीति बनाई गई है। पहले प्रदेश के विभिन्न जिलों में त्रिदेव सम्मेलन आयोजित कर फील्ड की जानकारी ली गई। इसी दरम्यान नगर निगम शिमला के चुनाव की भी तैयारी साथ-साथ की गई और 30 वर्ष में पहली बार शिमला नगर निगम में भाजपा काबिज हुई है।

 

ऐसा नहीं है कि भाजपा की राह में कांटे नहीं हैं। पार्टी ने किसी को भी चुनावी चेहरा घोषित नहीं किया है। जेपी नड्डा की सक्रियता पार्टी में अंदरखाने कार्यकर्ताओं को परेशान कर रही है। हालांकि परिवर्तन यात्रा के तुरंत बाद नड्डा का बयान आया है कि वह केन्द्र की सेवा में ही खुश हैं। भाजपा में सार्वजनिक रूप से कोई किसी से नाराजगी व्यक्त नहीं कर रहा या फिर धड़ेबंदी को प्रोत्साहित नहीं कर रहा है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने गुटबाजी करने वालों के खिलाफ सख्ती करने की चेतावनी दी है। मुख्यमंत्री कौन होगा, यह पार्टी हाईकमान तय करेगा और अभी तक किसी को भी चेहरा न बनाने का फैसला पार्टी ने सोची-समझी रणनीति के तहत लिया है ताकि कार्यकर्ता गुटबाजी में न उलझें। लेकिन परिवर्तन यात्रा के बाद पार्टी रणनीति बदलने पर विचार कर रही है और 60+ का आंकड़ा पार करना चाहती है। शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श के बाद पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को ही मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाने का ऐलान कर सकती है। असल में प्रेम कुमार धूमल की सरल जीवनशैली और कर्मठ कार्यशीलता के सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही कायल नहीं हैं बल्कि संघ के नेताओं की भी वह पसंद हैं और यही कारण है कि प्रादेशिक नेताओं और कार्यकर्ताओं से विचार-विमर्श के बाद यह साफ हो गया है कि धूमल ही सबकी पसंद हैं और उन्हें उम्मीदवार घोषित करने से पार्टी को लाभ होगा।

 

हिमाचल भाजपा चुनावी साल में पार्टी के बड़े नेताओं को राज्य में उतार चुकी है। परिवर्तन यात्रा के समापन अवसर पर पार्टी मुखिया अमित शाह, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, छत्तीसगढ़ के सीएम रमन सिंह व मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान कांग्रेस सरकार के खिलाफ हल्ला बोलकर गये लेकिन एक बात जो संयुक्त थी वह यह कि सभी मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को जमानत पर चल रहा मुख्यमंत्री जरूर बताते रहे, जो सच्चाई है। सबका कहना है कि यदि सरकार के मुखिया पर ही भ्रष्टाचार के आरोप हैं, चार्जशीट तक हो चुकी है तो निचले मंत्रियों और अधिकारियों की हालत समझ सकते हैं। भाजपा की एक टीम पर्दे के पीछे काम कर रही है, जो जनसभाओं, रैलियों, नुक्कड़ सभाओं, पंफलेट बांटने से लेकर आम जनता के बीच नरेंद्र मोदी के विजन को लेकर जा रही है। खुद अमित शाह नियमित फीडबैक लेते हैं। भाजपा ने हिमाचल में 68 में से 60 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है।

 

 

-विजय शर्मा 

 

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