चाणक्य का डबल रोल बीजेपी को पड़ा भारी, झारखंड-दिल्ली के चुनाव में बिगड़ सकता है गणित

By अभिनय आकाश | Oct 26, 2019

राजनीति में परिणाम सफलता और असफलता को परखने का पैमाना माना जाता है। वहीं राजनीति में सबसे बड़े सबक चुनावों में ही मिलते हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिले प्रचंड जनादेश के पांच महीने बाद महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनाव परिणाम आए। दोनों ही राज्यों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी गठबंधन व सहयोगियों के सहारे सरकार बनाने की दिशा में कदम भी बढ़ा रही है। लेकिन महाराष्ट्र में लगभग 20 सीटों का घटना और हरियाणा में त्रिशंकु नतीजों के बाद इस पर चर्चा करना तो लाजिमी है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि लोकसभा चुनाव के बाद अजेय माने जाने वाली बीजेपी की चुनावी मैनेजमेंट पर अपने भी सवाल उठाने लगे हैं। दोनों राज्यों में आशा अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाना वो भी ऐसे वक्त में कि 2-3 महीने में अन्य राज्यों (दिल्ली, झारखंड) के चुनाव होने हैं। 

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जून की तपती गरमी में पहली तारीख को राष्ट्रपति भवन की लाल कालीन से नरेंद्र मोदी के साथी, सहयोगी और सारथी अमित शाह ने सरकार पार्ट 2 में एक अहम जिम्मेदारी संभाली। शाह को गृह मंत्रालय का जिम्मा मिला तो बीजेपी के गृह यानी पार्टी की कमान कौन संभालेगा इसको लेकर तमाम अटकलें चलती रहीं। तमाम तैरते नामों के बीच जगत प्रकाश नड्डा को बीजेपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। साथ ही बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में अगले कुछ महीने तक अमित शाह के बीजेपी अध्यक्ष बने रहने को लेकर भी निर्णय किया गया। गृह मंत्री होने की वजह से अमित शाह को हिस्से के 24 घंटे का एक बड़ा भाग सरकारी कामकाज में देना पड़ता है। गृह मंत्रालय जैसे अहम विभाग संभालने के कारण अमित शाह पार्टी को उतना समय नहीं दे पाए जिसका असर चुनाव परिणामों पर भी दिखता प्रतीत हो रहा है। कहने को तो जेपी नड्डा कार्यकारी अध्यक्ष जरूर हैं, लेकिन बड़े फैसलों के वक्त अमित शाह की उपस्थिति और सक्रियता जरूर होती है। कहीं ये डबल रोल बीजेपी को भारी तो नहीं पड़ने लगा है? इन पांच महीनों में जैसे मौसम में बदलाव आ गया है और हल्की ठंड ने दस्तक दे दी है, क्या कुछ ऐसे ही असर को परिणामों के आधार पर बीजेपी में भी महसूस कर सकते हैं। 

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हरियाणा में अबकी बार 75 पार और महाराष्ट्र में अपने बल पर बहुमत लाने का मंसूबा रखने वाली बीजेपी जहां महाराष्ट्र की 288 सीटों में 105 सीटें हासिल कर सकी वहीं हरियाणा की बात की जाए तो बीजेपी 40 सीटों पर सिमट कर रह गई है।  इन दोनों ही राज्यों में भले ही बीजेपी नंबर एक पर हो लेकिन वह अपने बलबूते सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाई। इतना ही नहीं बीजेपी को पिछली बार के मुकाबले भी इस बार कम सीटें मिली हैं। पिछली बार विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र में बीजेपी को 122 सीटें मिली थीं। वहीं इस बार बीजेपी को केवल 105 सीटें मिली हैं। वहीं हरियाणा में पिछले चुनाव में बीजेपी को 47 सीटें मिली थीं और अपने दम पर बीजेपी ने सरकार बनाई थी, वहीं इस बार यह आंकड़ा 40 पर ही सिमट कर रह गया। वैसे तो महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावी नतीजें दोनों ही दलों (बीजेपी और कांग्रेस) के लिए सबक है।

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जहां महाराष्ट्र में एक क्षेत्र तक प्रभाव रखने और पार्टी के अस्तित्व पर उठते सवालों को धता बताते हुए एनसीपी ने कांग्रेस के सामने डटकर लड़ने की नजीर पेश की। वहीं बीजेपी को आम चुनावों की तर्ज पर राष्ट्रवाद का मुद्दा उठाना और स्थानीय मुद्दों को दरकिनार करना भारी पड़ा है। गृह मंत्री अमित शाह द्वारा चुनावों से ठीक पहले जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करना निसंदेह एक ऐतिहासिक फैसला था। ये तो नहीं कहा जा सकता कि लोगों ने इसे पूरी तरह खारिज कर दिया लेकिन उसे चुनावों में भुनाने की कवायद संपूर्ण रूप से परवान नहीं चढ़ सका। शाह और नड्डा की कार्यशैली में काफी फर्क है। अमित शाह खुद चुनावों से ऐन पहले पार्टी संगठन से जुड़े लोगों से कई दौर में बातचीत करते थे। बूथ लेवेल कार्यकर्ताओं से संवाद करते रहे हैं। स्थानीय स्तर से लेकर हेडक्वार्टर लेवल तक रणनीति बनाकर उम्मीदवारों का चयन और उन्हें चुनावी मैदान में उतारते रहे हैं लेकिन इस बार नड्डा के नेतृत्व में ऐसी रणनीति की कमी दिखी। संभवत: इसका भी खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा है।