उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण पूजन में क्यों जुटे हैं राजनीतिक दल ? सत्ता के लिए क्यों जरूरी है ब्राह्मणों का आशीर्वाद ?

By नीरज कुमार दुबे | Jul 20, 2021

हमारे देश की जाति व्यवस्था में ब्राह्मण को गुरु, पूज्य और यहाँ तक कि तीर्थस्वरूप माना गया है। कोई भी शुभ कार्य करना हो, ब्राह्मण ही उसे संपन्न कराता है। पौराणिक ग्रंथों को देखेंगे तो उल्लेख मिलेगा कि ब्राह्मण को कभी निराश नहीं करना चाहिए और ब्राह्मणों को दिये जाने वाला दान-दक्षिणा जन्म जन्मांतरों तक अक्षय फल प्रदान करता है। लेकिन आज की राजनीति की बात करें तो नेता भले चुनावों में जीत का आशीर्वाद लेने ब्राह्मण के पास आते हों लेकिन सत्ता में भागीदारी के मामले में ब्राह्मणों को उनका असल हक नहीं दिया जाता। लेकिन ब्राह्मणों का इतिहास है कि उन्होंने कभी विद्रोह नहीं किया ना ही अपने हक के लिए कोई बड़ी लड़ाई लड़ी है। ब्राह्मण का प्रयास रहता है कि समाज में शांति और समृद्धि बनी रही जिससे उसका भी काम चलता रहे। आमतौर पर ब्राह्मण को काम पड़ने पर ही याद किया जाता है और अब चूँकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक आ गये हैं तो प्रदेश में वोटों के लिहाज से बड़ा महत्व रखने वाले इस समुदाय को लुभाने की कवायद भी तेज हो गयी है।

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सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से साल 2007 में उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बना चुकी बसपा ने फिर से ब्राह्मण सम्मेलन शुरू करने की बात कही है तो भाजपा ब्राह्मण नेताओं को पार्टी में शामिल कराने का अभियान चलाये हुए है और आने वाली गुरु पूर्णिमा पर भाजपा नेता और जनप्रतिनिधि मठों और मंदिरों में दस्तक देने की तैयारी में हैं। यही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपनी मंत्रिपरिषद का जो विस्तार और फेरबदल किया है उसमें उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरणों को देखते हुए ब्राह्मण नेता को भी जगह दी है। मोदी सरकार में देखें तो कुल मिलाकर 11 ब्राह्मण मंत्री हैं। इस तरह की भी चर्चाएं हैं कि योगी सरकार के संभावित विस्तार में कांग्रेस से भाजपा में आये ब्राह्मण नेता जितिन प्रसाद को जगह दी जा सकती है। योगी सरकार में इसके अलावा पहले से ब्रजेश पाठक जैसे बड़े ब्राह्मण नेता कैबिनेट मंत्री हैं ही।


क्यों और कितना महत्व रखते हैं ब्राह्मण मतदाता?


उत्तर प्रदेश में आबादी के लिहाज से नजर डालें तो भले ब्राह्मणों की संख्या 13 प्रतिशत के आसपास ही है लेकिन कई विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ ब्राह्मण मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। पिछले विधानसभा चुनावों की ही बात करें तो 56 सीटों पर ब्राह्मण उम्मीदवार विजयी हुए थे। इन 56 में से 44 तो भाजपा के ही विधायक थे। यानि ब्राह्मण मतदाताओं ने भाजपा को दिल खोल कर वोट दिया था। एक और बड़ा आंकड़ा यह है कि पिछले तीन विधानसभा चुनावों में जिसके पास सबसे ज्यादा ब्राह्मण विधायक रहे उसी पार्टी की ही उत्तर प्रदेश में सरकार बनी। वर्तमान की बात करें तो भाजपा ने भी योगी सरकार बनने पर दिनेश शर्मा के रूप में ब्राह्मण नेता को उपमुख्यमंत्री पद दिया और कुल मिलाकर योगी सरकार में इस वर्ग के 8 विधायकों को मंत्री पद दिये गये। लेकिन यह सभी ब्राह्मण मंत्री अपने समुदाय के बीच योगी सरकार के कामकाज को सही से प्रचारित भी नहीं कर पाये और ना ही अपने समुदाय के बीच यह मंत्री कोई खास पैठ बना पाये। आप आसान से उदाहरण से समझिये। योगी सरकार में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की जितनी पिछड़ों के बीच पैठ है क्या उतनी पैठ दिनेश शर्मा की ब्राह्मणों के बीच है? उत्तर होगा नहीं। 

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क्या ब्राह्मण योगी सरकार से नाराज हैं?


देखा जाये तो ब्राह्मणों के बारे में अफवाहें फैलाना भी आसान है क्योंकि वह कभी इसका खंडन करने आगे नहीं आते। जो चल रहा होता है उसे चलने देते हैं, यह सोच कर कि एक दिन प्रभु कृपा से सच सामने आ ही जायेगा। उत्तर प्रदेश में गैंगस्टर विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ, उसके कई और साथी भी मारे गये तो मीडिया के एक वर्ग ने खबरें चला दीं कि ब्राह्मण योगी सरकार से नाराज हो गया है क्योंकि कई ब्राह्मणों का एनकाउंटर करवा दिया गया। इस प्रकार की खबरें इतनी ज्यादा चलीं कि शायद योगी सरकार को भी लगने लगा होगा कि इसी कारण से ब्राह्मण उससे नाराज है। लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया कि पौराणिक ग्रंथों का नित वाचन करने वाले और उसमें उल्लिखित संदेशों से सभी को अवगत कराने वाला ब्राह्मण आदिकाल से ही जागरूक है और जानता है कि अपराधी या आतंकवादी का अपना कोई धर्म या जाति नहीं होती और यदि कोई अपराधी या आतंकवादी है तो उसके खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई होनी ही चाहिए और कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए। वैसे ब्राह्मण यदि सरकार से नाराज है तो अपने साथ होने वाले भेदभाव से नाराज है, अपने बच्चों के शिक्षा और नौकरियों के खोते अवसरों से नाराज है। भाजपा को पता है कि ब्राह्मण नाराज रहे तो हिंदुत्व कार्ड खेलने में परेशानी होगी इसलिए उन्हें मनाने में जुटी हुई है।


बहनजी को ब्राह्मण क्यों याद आये ?


दूसरी ओर मायावती को 14 साल बाद यदि ब्राह्मणों की याद आई है तो यकीनन कुछ तो इस समुदाय की ताकत होगी। माना जा रहा है कि विधानसभा चुनावों में मायावती 50 से ज्यादा टिकट ब्राह्मणों को दे सकती हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या ब्राह्मण मतदाता बसपा की ओर फिर झुकेंगे। साल 2009 के लोकसभा चुनावों के बाद से हुए सभी चुनावों के आंकड़े तो यही दर्शाते हैं कि इस वर्ग ने बसपा से लगभग किनारा कर लिया है। मायावती तो यहाँ तक ऐलान कर चुकी हैं कि यदि वह सत्ता में आती हैं तो भगवान परशुराम की सपा से भी ऊँची मूर्तियां लगवाएंगी और भगवान परशुराम के नाम पर पार्कों तथा अस्पतालों के नाम भी रखे जाएंगे। बहरहाल, मायावती ने जिन सतीश चंद्र मिश्र को ब्राह्मण सम्मेलनों के आयोजन की जिम्मेदारी सौंपी है वह आम ब्राह्मणों का तो नहीं लेकिन अपने परिवार के ब्राह्मणों का राजनीतिक भला करने में जरूर कामयाब रहे हैं। सतीश चंद्र मिश्र भले बसपा के साथ बने रहे लेकिन पार्टी के कई बड़े ब्राह्मण नेता मायावती का साथ छोड़ चुके हैं। ऐसे में अयोध्या से शुरू होने वाले बसपा के ब्राह्मण सम्मेलन कितना प्रभाव डाल पाएंगे यह देखने वाली बात होगी। खासतौर पर ब्राह्मण यह भी देख रहे हैं कि चुनावों से छह महीने पहले ही मायावती ने ब्राह्मणों की सुध ली है।

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सपा की क्या योजना है?


ब्राह्मण समुदाय को लुभाने की कोशिश में समाजवादी पार्टी प्रदेश में भगवान परशुराम की मूर्तियाँ लगवाने का ऐलान कर चुकी है। लखनऊ में तो 108 फुट ऊंची भगवान परशुराम की प्रतिमा लगाई भी जा रही है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने पार्टी के तीन ब्राह्मण नेताओं- अभिषेक मिश्र, माता प्रसाद पांडे और मनोज पांडे को जिम्मेदारी सौंपी है कि ब्राह्मणों को सपा के पक्ष में एकजुट किया जाये। सपा दिवंगत जनेश्वर मिश्र के नाम पर भी ब्राह्मणों को लुभाने का प्रयास करती रहती है।


क्या कांग्रेस के पास कोई ब्राह्मण नेता बचा है ?


वहीं जितिन प्रसाद के जाने के बाद कांग्रेस के पास अब प्रमोद तिवारी, राजीव शुक्ला और ललितेशपति त्रिपाठी जैसे बड़े ब्राह्मण नेता ही बचे हैं लेकिन इनका कितना बड़ा जनाधार है यह सब जानते हैं। कांग्रेस की योजना गांधी परिवार को ही उत्तर प्रदेश में सबसे बड़े ब्राह्मण परिवार के रूप में प्रचारित करने की है। कांग्रेस का यह भी कहना है कि वही एकमात्र पार्टी है जिसने प्रदेश को ब्राह्मण मुख्यमंत्री दिये। उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद से 1989 तक उत्तर प्रदेश में छह बार ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने। प्रदेश के अंतिम ब्राह्मण मुख्यमंत्री कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी थे जिन्होंने तीन बार प्रदेश की कमान सँभाली थी।


बहरहाल, जहाँ तक मायावती का यह कहना है कि वर्तमान शासन में ब्राह्मण समाज बहुत ज्यादा दुखी है और उसे अब भाजपा को तिलांजलि दे देनी चाहिए, इस पर यही कहा जा सकता है कि ब्राह्मण को बरगलाया या खरीदा नहीं जा सकता वह देश और समाज हित में सही निर्णय लेने का शुरू से ही आदी रहा है। ब्राह्मण सभी नेताओं की बात और राजनीतिक दलों के वादे सुनता जरूर है लेकिन करता वही है जो शास्त्र सम्मत होता है।


-नीरज कुमार दुबे

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