ठाकरे के CM वाले सपने को हवा करने वाले अजित ने चाचा के 41 साल पुराने इतिहास को दोहराया

By अभिनय आकाश | Nov 23, 2019

महाराष्ट्र की राजनीति में बीते कुछ दिनों से दो नामों की चर्चा चारो ओर थी। एक तो बाला साहेब का सपना पूरा करने के दावे कर सीएम पद की चाह लिए उद्धव ठाकरे और दूसरे राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाने शरद पवार और उनके स्टैंड की वजह से सुर्खियों में थे। लेकिन अचानक से एक नाम जिसने राजनीति के पैंतरें तो अपने चाचा से ही सीखी और मात भी शरद पवार को ही दिया। वो मान है अजित पवार का जिन्होंने एक झटके में शिवसेना के सीएम पद की उम्मीदों को हवा कर दिया। महाराष्ट्र की बारामती सीट से पिछले 52 साल में यहां से विधायक की कुर्सी पर सिर्फ दो ही लोग बैठे हैं और वो दोनों ही पवार परिवार से हैं। अजित पवार इनमें से एक हैं।

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देवेंद्र फडणवीस एक बार फिर सीएम बने हैं और अजित पवार ने डिप्टी सीएम के पद की शपथ ली है। अजित पवार एनसीपी विधायक दल के नेता हैं। ऐसे में विधायक दलों के हस्ताक्षर वाला समर्थन पत्र भी उन्हीं के पास था। ऐसे में उन्होंने शरद पवार सहित तमाम एनसीपी नेताओं को पीछे छोड़ते हुए बीजेपी को समर्थन देने का फैसला किया है। बता दें कि आधिकारिक तौर पर विधायक दल के नेता का समर्थन पत्र ही मान्य होता है। अजित पवार के इस दांव से महाराष्ट्र में नया उलटफेर देखने  को मिला है। अजीत के इस दांव से शरद पवार और उनका परिवार भी अचरज में है। शरद पवार ने बीजेपी को समर्थन देने के अजित के फैसले को उनका निजी फैसला करार दिया है। शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने कहा है कि जिंदगी में अब किसका भरोसा करें, इस तरह कभी धोखा नहीं मिला। राजनीति के इतिहास को टटोले तो अजीत पवार का यह सियासी दांव उनके चाचा द्वारा इतिहास में किए गए उलटफेर को दोहराता नजर आ रहा है।

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वर्ष 1977 में लोकसभा होते हैं और जनता पार्टी की लहर में इंदिरा गांधी को पराजय हासिल होती है। महाराष्‍ट्र में भी कांग्रेस पार्टी को कई सीटें गंवानी पड़ती है। हार से आहत शंकर राव चव्‍हाण नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्‍यमंत्रीपद से इस्‍तीफा दे देते हैं। वसंतदादा पाटिल को उनकी जगह सीएम पद की कुर्सी मिलती है। आगे चलकर कांग्रेस में टूट हो जाती है और पार्टी दो खेमों यानी कांग्रेस (यू) और कांग्रेस (आई) में बंट जाती है। इस दौरान शरद पवार के गुरु कहे जाने वाले यशवंत राव पाटिल कांग्रेस (यू) में शामिल हो जाते हैं वहीं उनके साथ शरद पवार भी कांग्रेस (यू) का हिस्सा हो जाते हैं। वर्ष 1978 में महाराष्‍ट्र में विधानसभा चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस के दोनों विभाजित धड़ों ने अपना भाग्य आजमाया।

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जनता पार्टी को सत्‍ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस यू और कांग्रेस आई म‍िलकर सरकार बना लेते हैं और वसंतदादा पाटिल सूबे के मुखिया बनते हैं। इस सरकार में शरद पवार उद्योग और श्रम मंत्री बनाए जाते हैं। लेकिन फिर अचानक जुलाई 1978 में शरद पवार कांग्रेस (यू) से अलग होकर जनता पार्टी से मिल जाते हैं और महज 38 साल की उम्र मेंराज्‍य के सबसे युवा मुख्‍यमंत्री बन जाते हैं। वर्तमान में अजित पवार ने अपने चाचा और गुरु शरद पवार के नेतृत्‍व वाली एनसीपी विधायकों में सेंधमारी कर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई है। बताया जा रहा है कि एनसीपी के कुल 54 विधायकों में से अजित पवार के साथ 30-35 विधायक हैं। 

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