श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत जरूर करना चाहिए, जानिये पर्व की तिथि
श्रीकृष्णजन्माष्टमी पर्व इस वर्ष 2 और तीन सितम्बर को मनाया जायेगा। दरअसल इस बार अष्टमी तिथि 2 सितम्बर को रात 8.47 बजे शुरू हो रही है और 3 सितम्बर 2018 को 7.19 मिनट पर खत्म हो रही है इसलिए यह पर्व दो दिन का हो गया है।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव है श्रीकृष्णजन्माष्टमी पर्व। इस वर्ष यह पर्व 2 और तीन सितम्बर को मनाया जायेगा। दरअसल इस बार अष्टमी तिथि 2 सितम्बर को रात 8.47 बजे शुरू हो रही है और 3 सितम्बर 2018 को 7.19 मिनट पर खत्म हो रही है इसलिए यह पर्व दो दिन का हो गया है। महाराष्ट्र में मनाया जाने वाला दही हांडी उत्सव भी 3 सितम्बर को मनाया जायेगा जिसके लिए बड़े जोरोशोरों से तैयारियां शुरू भी हो गयी हैं।
पर्व का महत्व
भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस का संहार करने के लिए मथुरा के कारागार में मध्यरात्रि को जन्म लिया था। देश विदेश में बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाए जाने वाले इस पर्व की छटा मथुरा वृंदावन में विशेष रूप से देखने को मिलती है। इस दिन देश भर के मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है और श्रीकृष्ण के जन्म से जुड़ी घटनाओं की झांकियां सजाई जाती हैं। भविष्यपुराण में कहा गया है कि जहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर व्रतोत्सव किया जाता है, वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। श्रीकृष्णजन्माष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं।
रासलीला का आयोजन
जन्माष्टमी के अवसर पर पुरूष व औरतें उपवास व प्रार्थना करते हैं। मन्दिरों व घरों को सुन्दर ढंग से सजाया जाता है। श्रीकृष्ण की जीवन की घटनाओं की याद को ताजा करने व राधा जी के साथ उनके प्रेम का स्मरण करने के लिए रास लीला का जगह जगह आयोजन किया जाता है। इस त्यौहार को कृष्णाष्टमी अथवा गोकुलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व पर पूरे दिन व्रत रखकर नर-नारी तथा बच्चे रात्रि 12 बजे मन्दिरों में अभिषेक होने पर पंचामृत ग्रहण कर व्रत खोलते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है। इस पावन अवसर पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु मथुरा पहुंचते हैं।
दही हांडी उत्सव की धूम
इस पर्व के दिन उत्तर भारत में उत्सव के दौरान भजन गाए जाते हैं व नृत्य किया जाता है तो महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के दौरान, कृष्ण के द्वारा बचपन में लटके हुए छींकों (मिट्टी की मटकियों), जो कि उसकी पहुंच से दूर होती थीं, से दही व मक्खन चुराने की कोशिशों करने का उल्लासपूर्ण अभिनय किया जाता है। इन वस्तुओं से भरा एक मटका अथवा पात्र जमीन से ऊपर लटका दिया जाता है, तथा युवक व बालक इस तक पहुंचने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं और अन्तत: इसे फोड़ डालते हैं।
जन्माष्टमी का व्रत जरूर करना चाहिए
जन्माष्टमी के व्रत को करना अनिवार्य माना जाता है और विभिन्न धर्मग्रंथों में कहा गया है कि जब तक उत्सव सम्पन्न न हो जाए तब तक भोजन कदापि न करें। व्रत के दौरान फलाहार लेने में कोई मनाही नहीं है। इस दिन घर में भी भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम का दूध, दही, शहद, यमुनाजल आदि से अभिषेक कर उसे अच्छे से सजाएं। इसके बाद श्रीविग्रह का षोडशोपचार विधि से पूजन करें। रात को बारह बजे शंख तथा घंटों की आवाज से श्रीकृष्ण के जन्म की खबरों से जब चारों दिशाएं गूंज उठें तो भगवान श्रीकृष्ण की आरती उतार कर प्रसाद ग्रहण करें। इस प्रसाद को ग्रहण करके ही व्रत खोला जाता है।
श्रीकृष्णजन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि भी कहा गया है। मान्यता है कि इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है। श्रीकृष्णजन्माष्टमी के त्यौहार में भगवान विष्णु की, श्री कृष्ण के रूप में भी पूजा की जाती है। भगवान श्रीकृष्ण विष्णुजी के आठवें अवतार माने जाते हैं। यह श्रीविष्णु का सोलह कलाओं से पूर्ण भव्यतम अवतार है। श्रीराम तो राजा दशरथ के यहां राजकुमार के रूप में अवतरित हुए थे, जबकि श्रीकृष्ण का प्राकट्य अत्याचारी कंस के कारागार में हुआ था। कंस ने अपनी मृत्यु के भय से अपनी बहन देवकी और वासुदेव को कारागार में कैद किया हुआ था।
पर्व से जुड़ी कथा
पुराणों में कहा गया है कि बालक कृष्ण के जन्म के समय भारी वर्षा हो रही थी और चारों ओर घना अंधकार छाया हुआ था। जब भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ तो उनके माता पिता की बेड़ियां खुल गईं और पहरेदारों को गहरी निद्रा आ गयी। इसके बाद वासुदेव बड़ी मुश्किलों से यमुना के वेग को पार करते हुए श्रीकृष्ण को अपने मित्र नंद गोप के घर छोड़ आए और नंद की पत्नी ने जिस कन्या को जन्म दिया था उसे अपने साथ ले आये। कंस ने उस कन्या को पटक कर मार डालना चाहा। किन्तु वह असफल ही रहा। श्रीकृष्ण का लालन–पालन यशोदा व नंद ने किया। श्रीकृष्ण ने बाल्यकाल में अपने मामा के द्वारा भेजे गए अनेक राक्षसों को मार डाला और बाद में कंस का भी अंत कर मथुरा वासियों को उसके जुल्मों से आजाद करा दिया।
-शुभा दुबे
अन्य न्यूज़