14 सितम्बर को ही क्यों मनाया जाता है हिन्दी दिवस?
14 सितम्बर 1953 को जब हिन्दी भाषा को राजभाषा के रूप में लागू कर दिया गया तो गैर-हिन्दी भाषी राज्यों के लोगों ने इसका पुरजोर विरोध शुरू कर दिया और ब्रिटिश शासनकाल के दौरान मनोमस्तिष्क में रच-बस गई अंग्रेजी भाषा की वकालत करने लगे।
आधुनिकता की ओर तेजी से अग्रसर कुछ भारतीय ही आज भले ही अंग्रेजी बोलने में अपनी आन, बान और शान समझतें हों परन्तु सच यही है कि हिन्दी ऐसी भाषा है, जिसे आज दुनिया के अनेक देशों में भी सम्मानजनक दर्जा मिल रहा है और हमारी राजभाषा हिन्दी प्रत्येक भारतीय को वैश्विक स्तर पर सम्मान दिला रही है। हिन्दी विश्व की प्राचीन, समृद्ध एवं सरल भाषा है, जो न केवल भारत में बल्कि दुनिया के कई देशों में बोली जाती है। हिन्दी भाषा को और ज्यादा समृद्ध बनाने के लिए ही प्रतिवर्ष 14 सितम्बर का दिन ‘हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है और अगले 15 दिनों तक हिन्दी पखवाड़े का आयोजन किया जाता है। अब प्रश्न यह है कि हिन्दी दिवस प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को ही क्यों मनाया जाता है और इसे मनाए जाने की शुरूआत कब हुई?
दरअसल भारत बहुत लंबे समय तक अंग्रेजों का गुलाम रहा और उस दौरान हमारे यहां की भाषाओं पर भी अंग्रेजी दासता का बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। यही कारण रहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिन्दी को ‘जनमानस की भाषा’ बताते हुए वर्ष 1918 में आयोजित ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ में इसे भारत की राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था। सही मायने में तभी से हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के प्रयास शुरू हो गए थे। जब देश आजाद हुआ तो सर्वप्रथम 12 सितम्बर 1947 को संविधान सभा में हिन्दी को राजभाषा बनाने के प्रावधान का प्रस्ताव गोपालस्वामी आयंगर ने रखा था, जो स्वयं एक अहिन्दीभाषी दूरदर्शी नेता थे। सभा की 12 से 14 सितम्बर तक चली तीनदिवसीय बहस में कुल 71 लोगों ने हिस्सा लिया था। लंबे विचार-विमर्श के बाद 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। उसके बाद भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 (1) में हिन्दी को राजभाषा बनाए जाने के संदर्भ में अंकित कर दिया गया, ‘‘संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।’’ इस महत्वपूर्ण निर्णय के बाद हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर 1953 से देशभर में 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
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प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस 14 सितम्बर को ही मनाए जाने के लिए इसी दिन का चयन इसीलिए किया गया क्योंकि हिन्दी को भारत की राजभाषा का दर्जा देने के लिए पहली बार 14 सितम्बर 1949 को ही संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया था, इसलिए इस दिवस के आयोजन के लिए इसी तारीख को श्रेष्ठ माना गया। 14 सितम्बर 1953 को जब हिन्दी भाषा को राजभाषा के रूप में लागू कर दिया गया तो गैर-हिन्दी भाषी राज्यों के लोगों ने इसका पुरजोर विरोध शुरू कर दिया और ब्रिटिश शासनकाल के दौरान मनोमस्तिष्क में रच-बस गई अंग्रेजी भाषा की वकालत करने लगे। उस विरोध को देखते हुए तब अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी जनसम्पर्क के लिए हिन्दी को ही सबसे उपयोगी भाषा मानते थे। वर्ष 1917 का ऐसा एक किस्सा सामने आता है, जब कलकत्ता में कांग्रेस अधिवेशन के मौके पर बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रभाषा प्रचार संबंधी कांफ्रैंस में अंग्रेजी में भाषण दिया था और गांधी जी ने उनका वह भाषण सुनने के पश्चात् उन्हें हिन्दी का महत्व समझाते हुए कहा था कि वह ऐसा कोई कारण नहीं समझते कि हम अपने देशवासियों के साथ अपनी ही भाषा में बात न करें। गांधी जी ने कहा था कि अपने लोगों के दिलों तक हम वास्तव में अपनी ही भाषा के जरिये पहुंच सकते हैं। दरअसल हिन्दी ऐसी भाषा है, जो प्रत्येक भारतीय को वैश्विक स्तर पर सम्मान दिलाती है।
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हिन्दी भाषा की चुनौतियों के बारे में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त वरिष्ठ साहित्यकार मृदुला गर्ग कहती हैं कि हिन्दी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यही है कि अब बड़ा युवा वर्ग अंग्रेजी की ओर जा रहा है क्योंकि उन्हें लगता है कि अंग्रेजी में ही रोजगार के अवसर हैं और इसलिए वही इस समय की भाषा बन गई है। इसी प्रकार महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अशोक वाजपेयी कहते हैं कि संख्याबल के आधार पर हिन्दी अवश्य विश्वभाषा बन सकती है किन्तु हमें यह याद रखना होगा कि कोई भी भाषा बिना साहित्य, विचार, आर्थिकी के ऐसा दर्जा हासिल नहीं कर सकती और हिन्दी में इस तरह की तमाम आवाजाही बीते वर्षों में लगातार घटती गई है। देखा जाए तो हिन्दी का करीब 1.2 लाख शब्दों का विशाल समृद्ध भाषा कोष होने के बावजूद अधिकांश लोग हिन्दी लिखते और बोलते समय अंग्रेजी भाषा के शब्दों का भी धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं। भारतीय समाज में बहुत से लोगों की मानसिकता ऐसी हो गई है कि हिन्दी बोलने वालों को वे पिछड़ा और अंग्रेजी में अपनी बात कहने वालों को आधुनिक का दर्जा देते हैं। ऐसे में प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस मनाने का उद्देश्य यही है कि इसके माध्यम से लोगों को हिन्दी भाषा के विकास, हिन्दी के उपयोग के लाभ तथा उपयोग न करने पर हानि के बारे में समझाया जा सके। लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किया जाए कि हिन्दी उनकी राजभाषा है, जिसका सम्मान और प्रचार-प्रसार करना उनका कर्त्तव्य है और जब तक सभी लोग इसका उपयोग नहीं करेंगे, इस भाषा का विकास नहीं होगा।
- योगेश कुमार गोयल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा हिन्दी भाषी कुछ चर्चित पुस्तकों के लेखक हैं)
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