हिन्दू नववर्ष- गौरवशाली भारतीय संस्कृति के परिचायक का पर्व

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प्रकृति और धरती का एक चक्र पूरा हो जाता है, धरती के अपनी धूरी पर घुमने और धरती के सूर्य का एक चक्कर लगाने लेने के बाद जब दूसरा चक्र प्रारंभ होता है, असल में वही नूतन नववर्ष होता है, वैज्ञानिक भी मानते है कि इसी दिन से धरती पर प्राकृतिक रूप से नववर्ष प्रारंभ होता है।

दुनिया में "वसुधैव कुटुंबकम्" के सिद्धांत को मानने वाले सबसे प्राचीन गौरवशाली सनातन धर्म व संस्कृति का आम जनमानस के बीच अपना एक बेहद महत्वपूर्ण और विशेष सम्मानजनक स्थान हमेशा से रहा है। आज के दिखावे वाले व्यवसायिक दौर में जब पैसे व बाजार की ताकत के बलबूते दुनिया में पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण करने वाला बहुत तेजी से प्रायोजित माहौल बनाया जा रहा हो, उस वक्त भी देश में सनातन संस्कृति हम लोगों को एकजुट करके अपने रिश्ते-नाते व संस्कारों की प्राचीन जड़ों से बांधकर रखें हुए हैं। हालांकि देश में पिछले कुछ समय से युवा वर्ग के बीच धर्म-कर्म व संस्कृति  मूल्यों में गिरावट बहुत तेजी के साथ आयी थी, बाजारवाद से प्रभावित पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध में होकर कुछ लोगों ने हिन्दू नववर्ष, नवरात्रि, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, करवा चौथ, अहोई अष्टमी, दीपावली, दशहरा, महाशिवरात्रि, होली आदि जैसे पावन पर्व के अवसरों तक को भी भूलना शुरू कर दिया था, लेकिन देश में हाल के वर्षों में बहुत तेजी से बढ़ते हुए पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण व मज़हबी उन्माद ने सनातन धर्म के अनुयायियों को भी एकजुट होने के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया है, जिसका परिणाम यह हुआ कि पश्चिमी चकाचौंध में भटके हुए लोगों को फिर से एकजुट करके कुछ लोगों के द्वारा अपनी प्राचीन जड़ों की तरफ पुनः वापस लाने का कार्य करना शुरू कर दिया गया है, जिसके फलस्वरूप अब देश में महान सनातन धर्म व गौरवशाली संस्कृति का अनुसरण करके उस पर पूर्ण आस्था व निष्ठा से चलने वाले लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन तेजी के साथ बढ़ती जा रही है। आज दुनिया के हर भाग में महान सनातन धर्म की धर्म ध्वजा अपने सकारात्मक जनहित के सिद्धांतों व "सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय" के विचारों के  बलबूते स्वेच्छा से फहराई जा रही है। हमारा महान सनातन धर्म व संस्कृति सभी लोगों को समान रूप से पूर्ण स्वतंत्रता के साथ फलने-फूलने का भरपूर अवसर प्रदान कर रहा है।

वैसे भी हम ध्यान दें तो सनातन धर्म में प्रत्येक त्यौहार मनाने के पीछे धार्मिक व वैज्ञानिक आधार दोनों ही होते हैं, खुले मन से देखें तो हिन्दू नववर्ष को भी मनाने के पीछे भी विभिन्न धार्मिक कारण के साथ साथ पूर्णतया वैज्ञानिक आधार स्वयं प्रकृति में ही मौजूद हैं‌। उन सबसे प्रभावित होकर ही देश-दुनिया में प्राचीन सनातन धर्म व संस्कृति के अनुयाई और इसमें रुचि रखने वाले लोग हमेशा दिल से हिन्दू नववर्ष या नवसंवत्सर का स्वागत करते हैं, मैं भी आप सभी सम्मानित पाठकों व समस्त देशवासियों को हिन्दू नववर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं। वैसे भी देखा जाये तो चैत्र माह अंग्रेजी कैलेंडर के मार्च माह और अप्रैल माह के मध्य में आता है और वैज्ञानिकों के अनुसार 21 मार्च को पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूर्ण कर लेती है, ‍उस वक्त दिन और रात बराबर के होते हैं।

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प्रकृति और धरती का एक चक्र पूरा हो जाता है, धरती के अपनी धूरी पर घुमने और धरती के सूर्य का एक चक्कर लगाने लेने के बाद जब दूसरा चक्र प्रारंभ होता है, असल में वही नूतन नववर्ष होता है, वैज्ञानिक भी मानते है कि इसी दिन से धरती पर प्राकृतिक रूप से नववर्ष प्रारंभ होता है। हिन्दू नववर्ष में नए सिरे से प्रकृति में जीवन की शुरुआत होती है। वसंत ऋतु की धरती पर अद्भुत मनमोहक बहार आती है, वसंत ऋतु के चलते प्रकृति भी वृक्षों पर नव कोंपलों के साथ अपने पूर्ण नव यौवन के साथ "हिन्दू नववर्ष" का स्वागत करती है, अपने अथाह ऊर्जा से परिपूर्ण प्रकाश के द्वारा सम्पूर्ण दुनिया को जीवन देने वाले भगवान भास्कर सूर्य देव भी सर्दियों के बाद गर्मियों के मौसम लाने वाली नव किरणों के साथ हिन्दू नववर्ष का स्वागत करते हैं। दुनिया की बेहद प्राचीन महान सभ्यता सनातन भारतीय संस्कृति के हिसाब से "हिन्दू नववर्ष" हम हर वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाते हैं। इसी पावन दिन से हम चैत्र माह में शक्तिरूपा आदिशक्ति माँ दुर्गा की उपासना के पावन पर्व नवरात्रि में नवदुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा को धूमधाम से प्रारम्भ करते हैं। माँ दुर्गा की पूजा के द्वारा हम सनातन संस्कृति में मातृशक्ति के विशिष्ट स्थान को दर्शातें हैं। दुनिया को बताते हैं कि सनातनी परंपरा में मां दुर्गा समाज के रक्षण-पोषण और संस्कार की महत्वपूर्ण प्रतीक है, वह हम लोगों की जीवनदायिनी मातृशक्ति है और अनेक देवी-देवताओं की संगठित शक्ति के पुँज का बहुत बड़ा प्रतीक है। मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की आराधना का यह पर्व पूरे देश में नौ दिन तक चलने वाला एक बड़ा पर्व है, जिसकी धूमधाम से शुरुआत नवसंवत्सर यानी हिन्दू नववर्ष के साथ ही होती है।

इस बार यह पावन दिन 02 अप्रैल शनिवार को है, इस दिन नए हिन्दू नवसंवत्सर विक्रम सम्वत् 2079 की शुरुआत भी हो रही है। हमारे देश के प्रत्येक हिन्दू पंचांग के अनुसार जीवन के प्रत्येक महत्वपूर्ण कार्य के लिए, रोजमर्रा के सभी शुभ कार्यो व ज्योतिष शास्त्र आधारित सभी सटीक गणनाओं के विश्लेषण के लिए भारतीय काल गणना में ‘विक्रम संवत’ का एक बहुत बड़ा महत्व है। सूर्य, चंद्र व नक्षत्रों की गति पर आधारित इन ज्योतिष शास्त्र की गणनाओं का आज के आधुनिक वैज्ञानिक युग में भी कोई सटीक विकल्प मौजूद नहीं है, इसके समय की गणना में  विक्रम सम्वत् नवसंवत्सर यानी हिन्दू नववर्ष एक मूल आधार है।

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हिन्दू नववर्ष को देश के हिन्दी भाषी कुछ राज्यों में गुड़ी पड़वा और नवसंवत्सर के नाम से भी जाना जाता है, वहीं दूसरे अन्य राज्यों में होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाडी, चेटीचंड, चित्रैय तिरुविजा आदि नामों से भी जाना जाता है। वैसे भी आज के दौर में जब देश की युवा पीढ़ी का एक बड़ा वर्ग अंधानुकरण व बाजारवाद के प्रभाव के चलते प्रायोजित पश्चिमी संस्कृति की चकाचौंध में प्राचीन महान सनातन धर्म व गौरवशाली संस्कृति की अनदेखी करने का बार-बार दुस्साहस कर रहा है, इसलिए अब वह समय आ गया है कि जब सनातन धर्म के विद्वान सनातन धर्म की अनदेखी करने वाले वर्ग के लोगों को अपने पवित्र महान धर्मग्रंथों व वेदों के संदेश, प्राचीन विज्ञान, गौरवशाली अध्यात्म और पूर्णतः वैज्ञानिक आधार पर आधारित प्राचीन ज्ञान-विज्ञान का सही ढंग से परिचय करवा कर, उन लोगों को दुनिया की प्राचीन गौरवशाली सनातन संस्कृति से रूबरू करवा कर, सनातन धर्म व संस्कृति की पताका को लहराते हुए, देश को वसुधैव कुटुंबकम् के सिद्धांत पर अमल करते हुए एकबार फिर से विश्व गुरु बनाएं, श्रेष्ठ जनों का श्रेष्ठ भारत बनाएं ।।

- दीपक कुमार त्यागी / हस्तक्षेप

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

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