सामाजिक पत्रकारिता के पुरोधा थे डॉ. भीमराव अम्बेडकर
डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अछूत समाज के विकास को ध्यान में रखते हुए अछूत दंश की मुक्ति के लिए सेवाभाव से पत्रकारिता को औज़ार बनाकर अपने एवं समाज के विचारों को आगे बढ़ाया और समाज की भलाई के लिए इस माध्यम का पुरजोर इस्तेमाल किया।
डॉ. अंबेडकर के जन्मदिवस पर हमें उनके पत्रकारीय चिंतन को स्मरण करने की भी आवश्यकता है। डॉ. अंबेडकर ने कई दशक तक पत्रकार के रूप में कार्य करने के साथ-साथ कई समाचारपत्रों का संपादन एवं प्रकाशन का कार्य किया। आजादी के पहले जब भारत में पत्रकारिता अपने शैशव काल में थी, पत्रकारिता एक मिशन के रूप में थी स्वतंत्रता आंदोलन की मिशनरी पत्रकारिता की आड़ में लोग अपने हितों को साध रहे थे, उसी समय डॉ. अंबेडकर ने पत्रकारिता की नैतिक अवधारणा को प्रस्तुत किया। डॉ. अंबेडकर का वर्ष 1920 का ‘मूकनायक’ पाक्षिक पत्र कहीं न कहीं पत्रकारिता के वैकल्पिक प्रतिमान को स्थापित करने एवं अछूत वर्ग में एक नई चेतना जगाने का कार्य कर रहा था। डॉ. अंबेडकर ने जिन समाचार पत्रों का प्रकाशन अथवा संपादन किया, वे पत्र अपने समय में अछूत वर्ग एवं खुली मानसिकता वाले व्यक्तियों में सर्वाधिक लोकप्रिय पत्रों में माने गए हैं। डॉ. अंबेडकर की पत्रकारिता उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से अविच्छिन्न रूप से जुड़ी रही है।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अछूत समाज के विकास को ध्यान में रखते हुए अछूत दंश की मुक्ति के लिए सेवाभाव से पत्रकारिता को औज़ार बनाकर अपने एवं समाज के विचारों को आगे बढ़ाया और समाज की भलाई के लिए इस माध्यम का पुरजोर इस्तेमाल किया। उनकी पहचान समाज सुधारक, समाज चिंतक, संविधानशिल्पी के रूप के साथ-साथ एक निर्भीक एवं मिशनरी पत्रकार के रूप में भी कुछ हद तक सारी दुनिया में है। हिन्दी पत्रकारिता में भी उपेक्षित वर्ग (आज का दलित वर्ग) का अपना एक अलग स्थान रहा है तथा उपेक्षित वर्ग ने भी पत्रकारिता के माध्यम से अपने विभिन्न लक्ष्यों को पूरा किया है। डॉ. अंबेडकर पत्रकारिता को ‘पंसारी की दुकान’ कहते थे तथा कामोत्तेजक विज्ञापन छापकर समाज को लूटने और युवा पीढ़ी को गुमराह करने के लिए इन्हें समाज के अपराधी मानते थे।
डॉ. अंबेडकर ने वर्ष 1920 में ‘मूकनायक’ के माध्यम से पत्रकारिता के क्षेत्र में पर्दापण किया। यह पत्र उपेक्षित समाज का पहला पाक्षिक पत्र माना जाता है। इस पत्र ने प्रबोधन, शिक्षण, जागृति और दलित पत्रकारिता के मार्ग को प्रशस्त करने का कार्य किया। 3 अप्रैल 1927 को डॉ. अंबेडकर के संपादन में मराठी पाक्षिक पत्रिका ‘बहिष्कृत भारत’ का प्रकाशन हुआ। ‘बहिष्कृत भारत’ की पत्रकारिता विचारपक्ष को समग्रता में जीवित रखने, विरोधी पक्ष के साथ बौद्धिक, तार्किक व प्रमाणिक संवाद स्थापित करने और प्रतिक्रियाओं का संतुलित विवेक से उत्तर देने का ऐतिहासिक दस्तावेज है।
4 सितम्बर 1927 को डॉ. अंबेडकर ने समाज समता संघ के मुख्यपत्र ‘समता’ का सम्पादन किया। इस पत्रिका के माध्यम से वे मानव अधिकार और समता का प्रचार करते रहे। यही पत्र बाद में ‘जनता’ और ‘प्रबुद्ध भारत’ के रूप में संपादित हुआ। 24 नवम्बर, 1930 को ‘जनता’ नामक साप्ताहिक पत्र की शुरुआत हुई। इस पत्र के प्रधान सम्पादक देवराज विष्णु नाईक थे। ‘जनता’ का प्रकाशन काल डॉ. अंबेडकर के जीवन की सर्वाधिक जिम्मेदारियों का काल रहा है। इन सभी पत्रों के माध्यम से डॉ. अंबेडकर ने सामाजिकता के विभिन्न स्तर में अलख जगाने का प्रयास किया। उनका पत्रकारीय योगदान समाज को दिशा देने एवं उनकी चेतना को उभारने के लिए प्रयासरत रहा है। अंबेडकर की समूची पत्रकारिता को हम वैकल्पिक पत्रकारिता के रूप में देख सकते हैं। ‘बहिष्कृत भारत’ पत्र में अंबेडकर जी की निर्भीक एवं साहसी पत्रकारिता, वैकल्पिक पत्रकारिता के प्रतिमान को स्थापित करती है। ‘बहिष्कृत भारत’ पत्र में संपादक के रूप में डॉ. अंबेडकर जी की पत्रकारीय चेतना को देखा जा सकता है।
- डॉ रामशंकर
लेखक आईआईएमटी कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।
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