खुशियों और भाईचारे का पैगाम देता बकरीद का त्योहार
इस्लाम धर्म में मनुष्यों के लिए पांच कर्तव्य बताए गए हैं, हज उनमें से अंतिम कर्तव्य माना गया है। सभी मुसलमानों के लिए जीवन में एक बार हज करना आवश्यक माना गया है। हज भली-भांति सम्पन्न होने की खुशी में बकरीद मनाया जाता है।
बाजारों के रौनक बकरीद आने की ओर इशारा करने लगती है। बाजार में कपड़े, गहनों, मिठाइयां और पकवान की चमक त्यौहार के पहले से ही दिखाई देती है। बड़ी ईद के नाम से जाना जाने वाला यह त्यौहार खुशियों और भाईचारे का पैगाम देता है। तो आइए हम आपको बकरीद के बारे में कुछ रोचक जानकारी देते हैं।
तीन तरह की होती है ईद
जश्न और खुशी का त्यौहार बकरीद इस बार 12 अगस्त को पड़ रही है। इस्लामी साल में यूं तो दो तरह की ईद मनायी जाती है। उनमें एक है बकरीद या ईद-उल-उजहा कहा जाता है। दूसरी ईद को छोटी ईद, मीठी ईद या ईद-उल-फितर कहा जाता है। तीसरी ईद को ईद मिलाद्दुनबी कहा जाता है। यह ईद सबसे खास होती है क्योंकि इस ईद पर ही मुहम्मद साहब का जन्मदिन होता है। तीन ईद त्याग, समर्पण, भाईचारे और मानवता और भाईचारे का संकेत देती हैं। साथ ही यह संदेश आपस में मिलजुल कर रहने की शिक्षा देता है।
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हज की समाप्ति पर मनाया जाता है बकरीद
इस्लाम धर्म में मनुष्यों के लिए पांच कर्तव्य बताए गए हैं, हज उनमें से अंतिम कर्तव्य माना गया है। सभी मुसलमानों के लिए जीवन में एक बार हज करना आवश्यक माना गया है। हज भली-भांति सम्पन्न होने की खुशी में बकरीद मनाया जाता है। इस्लाम में त्याग की बहुत महत्ता है। ऐसी मान्यता है अल्लाह की राह में खर्च करो। यहां खर्च का मतलब भलाई और नेकी के काम से है। बकरीद में गरीब और दुखी लोगों का खास ख्याल रखा जाता है। इस त्यौहार में कुर्बानी के सामान को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक हिस्से को अपने पास रखकर बाकी हिस्सों को जरूरतमंद लोगों को दिया जाता है।
जश्न का दिन है बकरीद
बकरीद का त्यौहार जश्न का दिन माना जाता है। इस दिन बाजार नए कपड़े, सेवइयों, गहनों, खजूर, चप्पलों और सजावट के सामान से भरे रहते हैं। यही बाजार में बलि के लिए तरह-तरह के जानवर भी दिखाई देते हैं। बकरीद में इस नियम का पालन किया जाता है कि पहले अपना कर्ज उतारें, हज करें और फिर जश्न यानि बकरीद मनाएं। इस्लाम व्यक्ति को समाज के प्रति अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिए प्रेरित करता है। बकरीद के दिन सभी मुसलमान सजधज कर नए कपड़े पहन कर मस्जिद में नमाज पढ़ते हैं। लेकिन महिलाएं घर में ही नमाज पढ़ती है। नमाज के बाद ही जानवरों की कुर्बानी दी जाती है।
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बकरीद का चांद है खास
बकरीद में चांद को खास महत्व दिया जाता है। ईद उल अजहा का चांद जिस दिन दिखाई देता है उसके ठीक 10 वें दिन यह त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है।
बकरीद के हैं कई नाम
बकरीद को ईद अजहा के अलावा नमकीन ईद के नाम से भी जाना जाता है। यही नहीं बकरीद को बड़ी ईद के नाम से भी मनाया जाता है। बकरीद के दिन नमकीन पकवानों की भरमार होने के कारण नमकीन ईद कहा जाता है। जबकि ईद-उल-फितर को मीठी ईद कहा जाता है। साथ ही ईद अजहा को ईदे कुरबां भी कहा जाता है। ईदे कुरबां शब्द में कुरबां का अर्थ है बलिदान की भावना। यही नहीं अरबी में कर्ब का अर्थ होता है इंसान का भगवान के समीप रहना। इसके अलावा बच्चे इसे बकरा ईद भी कहते हैं।
खास तरीके से बकरीद मनाते थे बादशाह जहांगीर
भारत में मुगल बादशाह बकरीद का त्यौहार खास तरीके से मनाते थे। वह बकरीद अपनी प्रजा के साथ मनाते थे। उनके साम्राज्य में बकरीद के हिन्दू वैष्णव लोग खान बनाते थे ताकि किसी हिन्दू की भावनाओं को ठेस न लगे और सभी खुश रहें। इसलिए ईद भारत में भाई-चारे का प्रतीक है। हमारे देश में ईद को मिलजुल मनाना हिन्दू संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का परिचायक है।
- प्रज्ञा पाण्डेय
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