बेजोड़ है राजस्थान की संस्कृति और वीर गाथाओं से भरा है यहां का इतिहास

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प्रीटी । Nov 27 2020 3:18PM

सामान्य बोलचाल की भाषा में राजस्थान के लोग इसे रजवाड़ा कहकर पुकारते थे जबकि कुछ शिक्षित और आधुनिक लोग इसे राजस्थान कहते थे। अंग्रेजों ने इसे 'राजपूताना' कहा। परन्तु इसका शुद्ध और सार्थक नाम राजस्थान ही है।

वैसे तो लगभग सभी राज्यों की संस्कृति अलग−अलग है और प्रत्येक राज्य का अपना एक अलग ऐतिहासिक महत्व है। लेकिन भारत के पश्चिमी राज्यों में शुमार राजस्थान की बात ही अलग है। राजस्थान की संस्कृति सबसे अलग तो है ही साथ ही इस राज्य का साहित्य और वास्तुकला के क्षेत्र में भी खासा योगदान रहा है। इसी प्रदेश में अनेक वीर राजा भी हुए हैं जो आज भी अपनी वीरता और शौर्य के लिए याद किए जाते हैं।

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दरअसल राजस्थान का उल्लेख सर्वप्रथम प्रागैतिहासिक काल में प्रथम बार उभर कर सामने आया था। ईसा पूर्व 2000 और 9000 के बीच के समय में यहां की संस्कृति सिन्धु घाटी की सभ्यता जैसी थी। प्राचीन काल में राजस्थान छोटी−छोटी रियासतों में विभाजित था, जहां भिन्न−भिन्न राजाओं का शासन था। इन छोटी−छोटी रियासतों के अलग−अलग नाम थे, जिन्हें राजस्थान नहीं कहा जाता था, किन्तु यह सत्य है कि राजस्थान में सदैव आर्य जाति के लोगों का राज रहा है। 

सामान्य बोलचाल की भाषा में राजस्थान के लोग इसे रजवाड़ा कहकर पुकारते थे जबकि कुछ शिक्षित और आधुनिक लोग इसे राजस्थान कहते थे। अंग्रेजों ने इसे 'राजपूताना' कहा। परन्तु इसका शुद्ध और सार्थक नाम राजस्थान ही है। देश भर के इतिहास में राजस्थान का इतिहास विशिष्ट स्थान रखता है, जहां बहुत प्राचीन काल में ही आकर आर्य जातियां बस गई थीं। वर्तमान श्रीगंगानगर जिले के कालीबंगा नामक स्थान पर इससे भी पूर्व विस्तृत सिन्धु घाटी सभ्यता के ऐसे चिन्हों का पता लगा है जिनकी सत्यता को आधुनिक काल के इतिहासकारों ने पुष्ट किया है। जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर में भी प्राचीन सभ्यता के जो अवशेष और चिन्ह पाये गये हैं, उनसे भी इस तथ्य की पुष्टि होती है कि यहां विकसित सभ्यता किसी भी प्रकार सिन्धु घाटी की सभ्यता से कम नहीं थी। जयपुर जिले के बैराठ नामक स्थान पर हुई खुदाई से प्राप्त चिन्हों से भी राजस्थान के प्राचीन इतिहास और यहां कि विस्तृत प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का पता चलता है। सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया चीनी यात्री हवेनसांग राजस्थान के 'भीनभाल' नामक स्थान पर भी गया था, जिससे राजस्थान के इतिहास और संस्कृति की प्राचीनता का पता चलता है।

यहां के शासकों और राजाओं की अद्भुत वीरता, अदम्य साहस, असाधारण पराक्रम और अतुलनीय बलिदान जैसी कहानियां राजस्थान के इतिहास में मिलती हैं। भारत के अन्य राज्यों के इतिहास में वीरता, साहस, पराक्रम और बलिदान के उदाहरण राजस्थान की अपेक्षा काफी कम मिलते हैं। राजस्थान के इतिहास में राणा सांगा, महाराणा प्रताप, जयमल व पत्ता, वीर दुर्गादास, हांड़ा रानी, पृथ्वीराज चौहान तथा महारानी पद्मिनी ने अपनी वीरता, शौर्य और बलिदान के जो उदाहरण पेश किये, जिस प्रकार अपनी आन पर मर मिटे, उससे राजस्थान की श्रेष्ठता और महानता में चार−चांद लग गये। रानी पद्मिनी का जौहर, उदय सिंह को बनवीर से बचाने के लिए पन्नाबाई द्वारा अपने पुत्र चन्दन का बलिदान, कृष्ण दीवानी मीराबाई का राजभय से मुक्त धर्म प्रचार आदि ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जिनमें यहां की स्त्रियों की महानता और चरित्र बल झलकता है और जिसने राजस्थान के नाम को गरिमा प्रदान की है।

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पवित्र राजस्थान की मरूभूमि जहां वीर भामाशाह जैसे महापुरूष पैदा हुए, वहीं गुलाबी नगरी जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह भी अपनी कलाप्रियता और श्रेष्ठता के लिए विश्व विख्यात हैं। प्राचीन इतिहास की बात छोड़कर आधुनिक काल की बात करें, तो भी राजस्थान की इस महान घाटी ने अर्जुन लाल सेठी, ठाकुर केसर सिंह, जय नारायण व्यास, जमना लाल बजाज, विजय सिंह 'पथिक' आदि ऐसे महान स्वतंत्रता सैनानियों को जन्म दिया है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में जिनकी महानता की अपनी एक चारित्रिक विशेषता है। साहित्य और कला के क्षेत्र में राजस्थान का भक्ति साहित्य बहुत प्रसिद्ध है। कृष्ण−भक्ति पर प्रेम दीवानी मीरा की रचनाओं ने जहां राजस्थान में भक्ति संगीत की धारा प्रवाहित की वहीं दूसरी ओर राजस्थान के निर्गुण कवि दादू और सुन्दरदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से निर्गुण ब्रह्म का गुणगान किया। 

वीर गाथा काल में यहां पृथ्वीराज रासो, खुमाण रासो, वीसल देवरासो और हमीर रासो जैसी वीर रस पर आधारित रचनाओं की प्रमुखता रही। बिहारी की बिहारी सतसई श्रृंगार रस की प्रमुख रचना है, जबकि महाकवि पद्माकर ने यहां 'जगत विनोद' नामक रचना लिखी। शिशुपाल वध महाकवि माघ की और ब्रह्मगुप्त की ब्रह्म स्फुट सिद्धांत ऐसी रचनाएं हैं, जिन्होंने राजस्थान के संस्कृत साहित्य को समृद्ध बनाया है।

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साहित्य की तरह संगीत के क्षेत्र में भी राजस्थान का उल्लेखनीय योगदान रहा है। उदयपुर के राजा कुम्भा की संगीत राज और संगीत मीमांसा नामक रचनाएं, जयपुर के महाराजा प्रताप सिंह की संगीत सार और राग मंजरी नामक पुस्तकें अनूप संगीत विलास तथा अनूप रत्नाकर नामक ग्रंथ संगीत के क्षेत्र में राजस्थान के योगदान के अद्वितीय उदाहरण हैं। स्थापत्य और चित्रकला की दृष्टि से भी राजस्थान का ऐतिहासिक पक्ष काफी धनी है। आबू के दिलवाड़ा के जैन मंदिरों की स्थापत्य कला बहुत उच्चकोटि की है। चित्तौड़, रणथम्भौर और भरतपुर के किलों की तो आज भी कोई सानी नहीं है। हींग, बीकानेर, जैसलमेर, जयपुर और आमेर के राजमहल भी अपनी श्रेष्ठ स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। 

बाड़ोली और रणकपुर के मंदिर अपनी मूर्तिकला हेतु विख्यात हैं। किशनगढ़ और बूंदी शैली की चित्रकला तो अपनी मौलिकता और श्रेष्ठता के लिए जगजाहिर है। गुलाबी शहर जयपुर में बना सिटी पैलेस आज विश्व को किसी आश्चर्य से कम नहीं है। राजस्थान का इतिहास अपनी अनगिनत विशेषताओं के कारण भारत के अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय एवं बेजोड़ है। 

-प्रीटी

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