पड़ोसी देशों को भी वैक्सीन दे रहा है भारत

Coronavirus Vaccine

भारत को वैसे भी दुनिया की फार्मेसी कहा जाता है। जेनेरिक दवाओं के मामले में भारत का दबदबा पूरे विश्व में है। यही बात विभिन्न रोग-प्रतिरोधी टीकों के बारे में भी कही जा सकती है। दुनिया में बच्चों को लगाए जाने वाले 65 प्रतिशत टीके भारत में ही बनते हैं।

इस कठिन समय में जब पूरी दुनिया एक अनजान, अदृश्य और अबूझ वायरस COVID-19 से सहमी हुई है, भारत विश्व समुदाय को उसकी काट उपलब्ध कराने में तत्परता से जुटा हुआ है। कोरोना की वैक्सीन बना चुका भारत आज विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चला रहा है। यही नहीं, भारतीयों को कोरोना का टीका लगाने के साथ साथ भारत कई अन्य देशों को भी वैक्सीन उपलब्ध कराने का काम कर रहा है।

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भारत की मदद पाने वालों में अधिकांश उसके पड़ोसी और ऐसे देश हैं जो वैक्सीन का भारी खर्च उठाने में अपेक्षाकृत उतने सक्षम नहीं हैं। वैक्सीन प्राप्त करने वाले देश खुले दिल से भारत की प्रशंसा में जुटे हैं वहीं संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ जैसी संस्थाओं ने भी भारत के इस कदम को सराहा है।

कोविड-19 के कारण आम जनजीवन और सामान्य गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। जीवन का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र है जो इस वायरस से अप्रभावित बचा हो। दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति माने जाने वाले अमेरिका और साधन-संपन्न यूरोपीय देशों का स्वास्थ्य ढांचा भी इस आपदा के आगे चरमरा कर रह गया। कोरोरना वायरस के संक्रमण की तेज रफ्तार और कोई इलाज न होने के कारणसमूचा विश्व इसके समक्ष लाचार दिख रहा था। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान था कि कोरोरना का कारगर टीका आने में कम से कम 2 वर्ष लग सकते हैं परंतु वैज्ञानिकों ने अपने अनथक प्रयासों से उसे एक वर्ष से कम अवधि में ही संभव कर दिखाया।

सबसे पहले, सफलता मिली अमेरिकी दिग्गज दवा कंपनियों फाइजर और मॉडर्ना को। फाइजर के टीके के सुरक्षित भण्डारण के लिए माइनस 70 डिग्री तोमॉडर्ना के लिए माइनस 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता बताई गई। भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में जहां वैक्सीन की भारी मात्रा में आवश्यकता हो वहां इतने तापमान के भण्डारण की व्यवस्था करना एक चुनौती थी। वैक्सीन की ऊंची कीमत भी इसको सबकी पहुँच में लाने में एक बड़ी रुकावट थी। ऐसे में भारत एक बार फिर दुनिया के लिए उम्मीदों की किरण का केंद्र बनकर उभरा है क्योंकि यहां बनने वाली वैक्सीन प्रभावी होने के साथ-साथ कीमत और भंडारण के दृष्टिकोण से विकासशील और विकसित देशों के लिए यह सर्वथा अनुकूल है।

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विगत 20 जनवरी को एक लाख कोरोना टीकों की खेप लेकर एयर इंडिया का विशेष विमान मालदीव के माले अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचा जिसके आगमन पर मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने भारत का धन्यवाद व्यक्त किया। इसी प्रकार नेपाल के प्रधानमंत्री के पीएस ओली ने भी भारत द्वारा भेजे गए वैक्सीन के उपहार पर आभार प्रकट किया। स्पष्ट है कि भारत की यह वैक्सीन मैत्री मित्र देशों को रास आ रही है। भारत न केवल इन देशों में लोगों की जान बचाने में मददगार सिद्ध हो रहा है, बल्कि उन पर इसका आर्थिक बोझ भी नहीं डाल रहा है। शुरुआती दौर में भारत ने सेशेल्स को 50,000 टीके पहुंचाने की व्यवस्था की है तो वहीं मालदीव और मॉरीशस को एक-एक लाख, भूटान को डेढ़ लाख, नेपाल को 10 लाख, म्यांमार को 15 लाख और बांग्लादेश को 20 लाख टीके उपलब्ध कराने की तैयारी की है। इसी कड़ी में गुरुवार 28 जनवरी को पांच लाख टीकों की खेप श्रीलंका भी पहुंच गई, जिन्हें स्वीकार करते हुए राष्ट्रपति गोताबायराजपक्षे ने ट्विटर पर भारत के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।

भारत को वैसे भी दुनिया की फार्मेसी कहा जाता है। जेनेरिक दवाओं के मामले में भारत का दबदबा पूरे विश्व में है। यही बात विभिन्न रोग-प्रतिरोधी टीकों के बारे में भी कही जा सकती है। दुनिया में बच्चों को लगाए जाने वाले 65 प्रतिशत टीके भारत में ही बनते हैं। कोरोना के मामले में भी भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा ऑक्सफोर्ड- एस्ट्राजेनेका का विकसित कोविशील्ड और भारत बायोटेक का कोवैक्सीन खरा साबित हो रहा है। इसी विश्वास का प्रतीक है कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका ने अपने टीकों की सबसे बड़ी खेप तैयार करने का अनुबंध सीरम को ही दिया है। दूसरी ओर को वैक्सीन पूरी तरह से भारत में विकसित देसी वैक्सीन है। ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन से यह सिद्ध हुआ है कि कोवैक्सीन कोरोना के नए स्ट्रेन पर भी प्रभावी सिद्ध हो रही है। 

(इंडियासाइंसवायर)

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