सौर ऊर्जा द्वारा स्वच्छ हाइड्रोजन और अमोनिया उत्पादन की राह हुई आसान

Clean hydrogen

शोधकर्ताओं ने इन दोनों रसायनों के उत्पादन में जिस तकनीक का उपयोग किया है, उसे फोटोकैटलिसिस के नाम से जाना जाता है। उनका कहना है कि फोटोकैटलिसिस से न केवल ऊर्जा और लागत की बचत होगी, बल्कि पर्यावरण को भी लाभ हो सकता है।

हाइड्रोजन स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत है और अमोनिया उर्वरक उद्योग का आधार है। यही कारण है कि हाइड्रोजन एवं अमोनिया के उत्पादन में उपयोग होने वाली फोटोकैटलिटिक प्रक्रियाओं की क्षमता बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। हाइड्रोजन और अमोनिया दोनों के उत्पादन में बड़ी मात्रा में ऊष्मीय ऊर्जा की खपत होती है और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी होता है। भारतीय शोधकर्ताओं को अकार्बनिक उत्प्रेरक में एक विशिष्ट संरचना विकसित करके सौर ऊर्जा से कम लागत में हाइड्रोजन और अमोनिया उत्पादन की क्षमता विकसित करने में सफलता मिली है।

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शोधकर्ताओं ने इन दोनों रसायनों के उत्पादन में जिस तकनीक का उपयोग किया है, उसे फोटोकैटलिसिस के नाम से जाना जाता है। उनका कहना है कि फोटोकैटलिसिस से न केवल ऊर्जा और लागत की बचत होगी, बल्कि पर्यावरण को भी लाभ हो सकता है। फोटोकैटलिसिस से तात्पर्य किसी उत्प्रेरक की उपस्थिति में होने वाली फोटोरिएक्शन प्रक्रिया में होने वाली वृद्धि से है। वहीं, फोटोरिएक्शन एक ऐसी रासायनिक प्रतिक्रिया है, जिसमें कणों की ऊर्जा बढ़ाने के लिए प्रकाश या अन्य विद्युत चुम्बकीय विकिरण शामिल होते हैं। यह अध्ययन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मंडी और योगी वेमना विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। 

अर्मेनिया के एक अग्रणी रसायन विज्ञानी जियाकोमो सियामिशियन ने बहुत पहले  वर्ष 1921 में अपने एक शोध पत्र ‘द फोटोकैमिस्ट्री ऑफ द फ्यूचर’ में उस दौर के वैज्ञानिकों के सामने रसायनों के उत्पादन में सूरज की रोशनी का उपयोग करने की परिकल्पना पेश की, जैसा कि प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में पौधे करते हैं। इस दिशा में कुछ सफलता 1970 के दशक में मिली, जब शोधकर्ताओं ने फोटोकैटलिस्ट्स नामक विशेष प्रकाश-सक्रिय सामग्री का उपयोग करके सूरज की रोशनी का लाभ लेकर रसायनों के उत्पादन की संभावना सामने रखी। इस तरह एक नये युग की शुरुआत हुई, जिसे अब फोटोकैटलिसिस युग कहते हैं। इस दौर में, कई फोटोकैटलिस्ट्स की खोज की गई है, ताकि विभिन्न उद्देश्यों से प्रकाश-सक्षम प्रतिक्रियाओं को सफलतापूर्वक किया जाए। नये फोटोकैटलिस्ट्स की खोज के लिए आज भी फोटोकेमिकल संश्लेषण के कई क्षेत्रों में अध्ययन किए जा रहे हैं। 

शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन में फोटोकैटलिसिस के मुख्य व्यवधानों को दूर किया गया है। इसमें प्रकाश ग्रहण करने की सीमित क्षमता, फोटोजेनरेटेड चार्ज का पुनर्संयोजन और रासायनिक प्रतिक्रियाएं जारी रखने के लिए सूर्य प्रकाश के प्रभावी उपयोग हेतु उत्प्रेरक सक्रिय साइट की आवश्यकता शामिल है। उन्होंने ‘डिफेक्ट इंजीनियरिंग’ नामक प्रक्रिया से कम लागत वाले फोटोकैटलिस्ट, कैल्शियम टाइटेनेट के गुणों में सुधार किया है और दो प्रकाश-चालित प्रतिक्रियाओं के माध्यम से स्वच्छ हाइड्रोजन और अमोनिया के उत्पादन में उनके प्रभावी होने का प्रदर्शन है। डिफेक्ट इंजीनियरिंग के लिए नियंत्रण के साथ ऑक्सीजन वैकेंसीज़ को शामिल किया गया। ये ऑक्सीजन वैकेंसीज़ सतह की प्रतिक्रियाओं को बढ़ावा देने के लिए बतौर उत्प्रेरक सक्रिय साइट का कार्य करती हैं और इस तरह फोटोकैटलिटिक का कार्य प्रदर्शन बढ़ता है।

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यह अध्ययन डॉ. वेंकट कृष्णन, एसोसिएट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज, आईआईटी, मंडी के नेतृत्व में किया गया है। उन्होंने बताया कि “हमने पत्तियों द्वारा रोशनी ग्रहण करने की क्षमता से प्रेरित होकर यह अध्ययन किया है। हमने कैल्शियम टाइटेनेट में पीपल के पत्ते की सतह और आंतरिक त्रिआयामी सूक्ष्म संरचनाएं बनायी हैं, जिससे प्रकाश संचय का गुण बढ़ाया जा सके।” इस तरह प्रकाश ग्रहण करने की क्षमता बढ़ायी गई है। इसके अलावा, ऑक्सीजन वैकेंसीज़ के रूप में ‘डिफेक्ट’ के समावेश से फोटोजेनरेटेड चार्ज के पुनर्संयोजन की समस्या के समाधान में मदद मिली है। 

वैज्ञानिकों ने डिफेक्ट इंजीनियर्ड फोटोकैटलिस्ट की संरचना और स्वरूप की स्थिरता का अध्ययन किया है और यह दिखाया है किया कि उनके फोटोकैटलिस्ट में उत्कृष्ट संरचनात्मक स्थिरता थी, क्योंकि पुनर्चक्रण अध्ययन के बाद भी इंजीनियर्ड ऑक्सीजन वैकेंसीज़ डिफेक्ट्स अच्छी तरह बरकरार थे। उन्होंने पानी से हाइड्रोजन और नाइट्रोजन से अमोनिया बनाने के लिए उत्प्रेरक का उपयोग किया। इसके लिए सूर्य की किरणों का उपयोग परिवेशी तापमान और दबाव पर उत्प्रेरक के रूप में किया गया है।

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डॉ. वेंकट कृष्णन का कहना है कि यह शोध डिफेक्ट-इंजीनियर्ड त्रिआयामी फोटोकैटलिस्ट के स्मार्ट डिजाइन को दिशा देगा, जो स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण अनुकूल उपयोगों के लिए आवश्यक है।

यह अध्ययन शोध पत्रिका ‘जर्नल ऑफ मैटेरियल्स केमिस्ट्री’ में प्रकाशित किया गया है। डॉ. वेंकट कृष्णन के अलावा, इस अध्ययन में आईआईटी, मंडी के शोधकर्ता डॉ. आशीष कुमार और आईआईटी, दिल्ली के डॉ. शाश्वत भट्टाचार्य एवं मनीष कुमार और योगी वेमना विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश के डॉ. नवकोटेश्वर राव तथा प्रोफेसर एम.वी. शंकर शामिल हैं। 

(इंडिया साइंस वायर)

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