UP में प्रियंका गांधी की सक्रियता से परेशान हैं मायावती, बसपा ने बनाई नई रणनीति
2019 में हुए लोकसभा चुनाव के समय जब सपा−बसपा में गठबंधन हुआ था, तो उस गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल होना चाह रही थी। सपा प्रमुख अखिलेश यादव इसके लिए तैयार भी हो गए थे, परंतु मायावती की हठधर्मी के चलते यह संभव नहीं हो पाया था।
उत्तर प्रदेश में तीन दशकों से हासिये पर चली रही कांग्रेस एक बार फिर मुस्लिम−दलित वोटों के सहारे अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में लग गई है। गौरतलब है कि मुस्लिम−दलित वोट बैंक के सहारे कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में लम्बे समय तक राज किया था, लेकिन जबसे मुस्लिमों ने समाजवादी पार्टी और दलितों ने बसपा का दामन थामा तब से कांग्रेस को यहां कोई पूछने वाला नहीं रहा। इसी वोट बैंक को साधने के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा मुस्लिम दंगाइयों के घरों में जाकर उन्हें जख्मों पर मरहम लगाने की नौटंकी कर रही हैं तो दूसरी तरफ दलित वोट बैंक के चक्कर में भीम आर्मी से पार्टी की नजदीकियां बढ़ा रही हैं ताकि बसपा सुप्रीमो मायावती को सबक सिखाया जा सके।
दरअसल, लोकसभा चुनाव के समय जब सपा−बसपा में गठबंधन हुआ था, तो उस गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल होना चाह रही थी। सपा प्रमुख अखिलेश यादव इसके लिए तैयार भी हो गए थे, परंतु मायावती की हठधर्मी के चलते यह संभव नहीं हो पाया था। कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ी और उसे बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस का प्रियंका कार्ड (जिसे पार्टी अपना ट्रम्प कार्ड कहती थी) पूरी तरह से विफल हो गया था। कांग्रेस की सीटें दो से एक पर सिमट गई थी। सिर्फ सोनिया गांधी रायबरेली से जीत पाईं थी, राहुल गांधी तक को अमेठी गंवाना पड़ गया था। इस निराशाजनक प्रदर्शन के बाद ही बसपा सुप्रीमो मायावती, कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा की आंख की किरकिरी बनी हुई हैं।
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खैर, देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की सियासत हमेशा से बेहद पेचीदा रही है। सबसे अधिक सांसद देने वाले यूपी की विधान सभा के सदस्यों की संख्या भी अन्य राज्यों की विधान सभाओं के मुकाबले काफी अधिक है। इसीलिए केन्द्र की सियासत करने वालों को यहां सियासत करना बेहद रास आता है। यहां जिस पार्टी का परचम लहराता है, वह केन्द्र की सियासत में भी अनायास महत्वपूर्ण हो जाता है, जब तक कांग्रेस उत्तर प्रदेश में मजबूत रही, तब तक केन्द्र में भी उसे मजबूती मिली रही, लेकिन जब यहां कमजोर हुई तो उसे केन्द्र की सत्ता हासिल करने के लिए अन्य दलों का सहारा लेना पड़ा। पिछले दो आम चुनावों से यूपी में भारतीय जनता पार्टी झंडा गाड़े हुए है तो केन्द्र में मोदी राज चल रहा है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने केन्द्र की सत्ता पर लम्बे समय तक राज भले किया हो, लेकिन पिछले तीन दशकों में जब प्रदेश की सत्ता किसी दल को सौंपने की होती तो जनता को सपा−बसपा ज्यादा रास आती थीं। जब प्रदेश की जनता का राष्ट्रीय दलों से मोहभंग हुआ तो उसकी भरपाई करने के लिए क्षेत्रीय क्षत्रपों मुलायम सिंह यादव और मायवती ने अपना डंडा और झंडा लेकर सियासी मैदान मारने में चूक नहीं की। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का यूपी की राजनीति में उभार होना और लम्बे समय तक प्रदेश की सियासत में अपनी धाक−धमक जमाए रखना इस बात का प्रमाण है। प्रदेश में सपा−बसपा की आठ बार सरकारें भी बनीं, लेकिन केन्द्र की सियासत में यह क्षेत्रीय क्षत्रप अधिकांश समय कांग्रेस और कभी−कभी भाजपा के पिछलग्गू ही बने रहे। हाँ, जब मौका मिला तो इन दलों को धता बताने से भी नहीं चूके। सोनिया गांधी को तो आज तक इस बात का मलाल होगा कि मुलायम की वजह से उनका प्रधानमंत्री बनने का सपना अधूरा रह गया था।
दरअसल, समाजवादी पार्टी हो या फिर बहुजन समाज पार्टी, दोनों केन्द्र की राजनीति करते समय तो कांग्रेस−भाजपा को तवज्जो देते थे, लेकिन जब कभी केन्द्र की सियासत करते−करते कांग्रेस और भाजपा, क्षेत्रीय दलों सपा−बसपा के वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश करते तो इन दलों के क्षत्रप नाराज हो जाते हैं। ऐसा ही आजकल कांग्रेस और बसपा नेताओं के बीच देखने को मिल रहा है, जब से कांग्रेस ने 2022 में यूपी में अपनी सरकार बनाने का सपना पूरा करने के लिए पार्टी महासचिव प्रियंका वाड्रा को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया है, तब से कांग्रेस बसपा सुप्रीमो मायावती के निशाने पर आ गई है। प्रियंका वाड्रा जिस तरह से बसपा से दूरी बनाकर उसके प्रबल प्रति़द्वंद्वी भीम आर्मी के प्रति नरम रूख अख्तियार किए हुए हैं, उससे मायावती के प्रियंका वाड्रा के खिलाफ तेवर तीखे हो गए हैं। मायावती को लग रहा है कि भीम आर्मी के सहारे कांग्रेस उसके दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। इसीलिए तो बसपा सुप्रीमो मायावती, प्रियंका पर निशाना साधते हुए कहती हैं कि अगर एनआरसी, एनपीआर गैरजरूरी है तो कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार इस प्रस्ताव को लाई ही क्यों थी ?
बसपा प्रमुख कहती हैं कि कांग्रेस ने दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों व अल्पसंख्यकों का सही संवैधानिक संरक्षण किया होता तो उसे सत्ता से बाहर न होना पड़ता। मायावती इससे पहले महाराष्ट्र में शिवसेना से गठबंधन को लेकर भी कांग्रेस को कोस चुकी हैं। वह मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार को भी दलित विरोधी बता चुकी हैं।
बात मायावती की कि जाए तो बसपा सुप्रीमो, कांग्रेस पर तो अक्सर ही हमला करती रहती हैं, परंतु भीम आर्मी के प्रति प्रियंका वाड्रा के नरम रवैये को देखकर मायावती के प्रियंका पर हमले तीखे हो गए हैं। बसपा को लगता है कि उसे कमजोर करने के लिए ही कांग्रेस द्वारा भीम आर्मी को बढ़ावा दिया जा रहा है। कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए बसपा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव पूरी ताकत के साथ लड़ने का फैसला लिया है। बसपा को लगता है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में भले ही वह कुछ एक सीटों पर मजबूती से चुनाव लड़ पाएगी, परंतु उसके चुनावी मैदान में उतरने से कांग्रेस को बड़ा नुकसान हो सकता है। इसके अलावा बसपा सुप्रीमो यह भी नहीं चाहती हैं कि उनके मैदान में नहीं होने के कारण दलित वोटर कांग्रेस की तरफ जाने को मजबूर हो जाए।
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बात यूपी की ही कि जाए तो कांग्रेस महासचिव व उत्तर प्रदेश की पार्टी प्रभारी प्रियंका गांधी मिशन 2022 पूरा करने के लिए बसपा−सपा को दरकिनार करके योगी सरकार पर लगातार हमलावर हैं। सोनभद्र में जमीन मामले को लेकर हुए नरसंहार के मामले से लेकर उन्नाव में रेप पीड़िता को जलाने तक का मामला हो या फिर सीएए के खिलाफ प्रदर्शन में पुलिसिया कार्रवाई में पीड़ितों की आवाज उठाने का मामला, प्रियंका गांधी इन तीनों मुद्दों पर विपक्षी दलों से आगे निकल गयीं। यही वजह है कि योगी सरकार और बीजेपी नेताओं से लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती तक प्रियंका गांधी को निशाने पर ले रहे हैं। वहीं, प्रियंका सिर्फ योगी सरकार पर ही तेवर सख्त किए हुए हैं और मायावती के हमलों को नजरअंदाज कर रही हैं। इसके पीछे कांग्रेस की सोची समझी रणनीति मानी जा रही है, जिसके तहत वो बसपा से दो−दो हाथ करने के बजाय योगी बनाम प्रियंका की सियासी बिसात बिछा रही है।
प्रियंका अपने मंसूबों में कितना कामयाब होंगी यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इतना तो है कि लोकसभा चुनाव में करारी मात के बाद कांग्रेस को यूपी में दोबारा खड़ा करने की कवायद में जुटी प्रियंका गांधी अब स्वयं कांग्रेस को लीड कर रही हैं जिससे कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं के हौसले भी बुलंद हुए हैं। यूपी की कमान जब से प्रियंका गांधी को मिली है, तब से सूबे में कांग्रेस सड़कों पर आंदोलन करती नजर आ रही है। प्रियंका गांधी लगातार टि्वटर से लेकर सड़क पर उतर कर संघर्ष करने और अपने बयानों के जरिए योगी सरकार पर हमले बोल रही हैं। वहीं, योगी सरकार भी प्रियंका गांधी के बयानों और हमलों पर पलटवार करने में वक्त नहीं लगाती है। सोनभद्र में जमीन मामले को लेकर हुए नरसंहार का मामला हो या फिर उन्नाव में रेप पीड़िता को जलाने का मामला। इसके अलावा हाल ही में जिस तरह से सूबे में सीएए और एनआरसी के खिलाफ हुए हिंसक प्रदर्शन के दौरान पुलिसिया कार्रवाई में करीब 22 प्रदर्शनकारियों की मौत हुई, प्रियंका गांधी ने मृतकों और गिरफ्तार प्रदर्शनकारियों के परिवार वालों से मुलाकात करने के साथ−साथ सरकार पर जमकर हमला बोला है।
-अजय कुमार
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