अपने दम पर जनादेश लेकर लौटे योगी पर दूसरे कार्यकाल में कोई भी दबाव नहीं
2022 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया और बेशक 2017 वाला आंकड़ा इस बार पार्टी नहीं छू सकी पर जिस आंकड़े को छुआ गया, वह भी शानदार है। 403 सीटों के लिए बहुमत होता है 202 लेकिन भाजपा को कुल सीटें मिलीं 255।
2017 से 2022 तक उत्तर प्रदेश काफी बदल चुका है। राप्ती-गोमती का बहुत सारा पानी बह चुका है। फैसले ऐसे हुए, जिनकी किसी ने उम्मीद नहीं की। बहुत जल्द मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह को भी आप देखेंगे। उस समारोह में भी आपको बड़ा बदलाव देखने को मिले तो चौंकिएगा नहीं। देश-काल-परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, फैसला जो भी होगा वह बेहद कड़क होगा। 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा को जो बहुमत मिला था, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर मिला था। लोगों ने टूट कर उनको वोट दिया था। अचानक एक स्टार प्रचारक सह सांसद योगी आदित्यनाथ को अमित शाह का बुलावा आता है और अगले ही पल प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद यह तय हो जाता है कि वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगे।
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2017 से 2022 तक योगी सरकार चलाते हैं और इन पांच वर्षों में कोई दिन ऐसा नहीं होता जब उनकी सरकार चर्चा में न होती हो। चर्चा के कई बिंदु रहे। चाहे वह माफिया अतीक अहमद-मुख्तार अंसारी की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने का फैसला हो या फिर उज्जैन से यूपी लाए गए कुख्यात अपराधी विकास दुबे को गाड़ी पलटने के बाद एनकाउंटर में ढेर किया जाना, सरकार लगातार चर्चा में रही। यह सरकार राशन पहुंचाने में भी चर्चा में रही, भाषण देने में भी। यह योगी ही थे जिन्होंने 80-20 का चुनाव का नया टर्मोलाजी पोलिटिकल सर्कल में उतारा और जब परिणाम आए तो अक्षरशः वही साबित भी हुआ। इन पांच वर्षों में देश-दुनिया में अगर प्रधानमंत्री के बाद कोई चर्चा में रहा तो वह कोई और नहीं, सिर्फ और सिर्फ योगी ही रहे। इस बीच एक और खास बात हुई। यूपी में दंगा नहीं हुआ। अखिलेश के कार्यकाल में यूपी में दंगा रोके नहीं रुकता था, योगी के कार्यकाल में यह चाह कर भी नहीं हुआ। समाजवादी पार्टी का यह संगीन आरोप रहा कि जो दंगा करवाने वाला है, वह सत्ता चला रहा है तो दंगा होगा कैसे। लेकिन, उसे 125 सीटें देकर जनता ने बता दिया कि उसका भरोसा भाजपा के खिलते कमल पर है, साइकिल अब बीते जमाने की बात हुई।
2022 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया और बेशक 2017 वाला आंकड़ा इस बार पार्टी नहीं छू सकी पर जिस आंकड़े को छुआ गया, वह भी शानदार है। 403 सीटों के लिए बहुमत होता है 202 लेकिन भाजपा को कुल सीटें मिलीं 255। अगर सहयोगियों की संख्या को मिला दें तो यह आंकड़ा 273 का होता है। इसे आप बंपर भी कह सकते हैं। लेकिन, भाजपा में ही ऐसे कई तत्व हैं जो इस जीत का श्रेय योगी-मोदी-शाह को नहीं देकर खुद को दे रहे हैं, भले ही वह चुनाव हार गए हों। एक दौर वह भी था, जब उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या यह कहने को तैयार नहीं थे कि विधानसभा का चुनाव योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में होगा। तब वह कहा करते थे कि केंद्र तय करेगा कि चुनाव किसके नेतृत्व में होना है? उस दौर में प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह पहले शख्स थे जिन्होंने खम ठोंक कर कहा था कि चुनाव योगी जी के नेतृत्व में ही होगा और जीतेंगे भी। हुआ भी यही। लेकिन, केशव मौर्या का क्या हुआ? वह अपनी विधानसभा सीट हार गए। वह भी किससे? पल्लवी पटेल से। पल्लवी पहली बार चुनाव लड़ीं और जीतीं।
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योगी सरकार का वर्जन 2.0 कई मामलों में पहली सरकार से अलग होगा। उसके दो कारण हैं। पहला, योगी किसी दबाव में नहीं रहेंगे। वह दिल्ली दरबार के वफादार तो रहेंगे, पिछलग्गू शायद ही बनें। उन्होंने अपने दम पर 273 सीटें जीत कर दिखा दिया कि जनता उन पर विश्वास करती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह होगा कि 2017 की मोदी लहर में भी भाजपा गोरखपुर जिले की 9 विधानसभा सीटों में मात्र 8 पर ही विजय पताका फहरा पाई थी। 2022 में सीन बदल गया। इस बार गोरखपुर जिले की 9 की 9 विधानसभा सीटों पर केसरिया फहरा रहा है। यह योगी का ही कमाल है कि जिस विधायक को पांच साल तक जनता खोजती रही, वह नहीं मिले या बहुत कम मिले, वह भी चुनाव जीत गये इस बार। दुकानदारी करने वाले एक सज्जन के लिए योगी ने दो बार चुनाव प्रचार किया और वह भी 25000 मतों के अंतर से चुनाव जीत गए। ऐसे में, जब केशव प्रसाद मौर्या चुनाव हारते हैं तो मानना पड़ेगा कि योगी का वर्जन 2.0 निष्कंटक होगा।
दूसरा, योगी किसी का दखल बर्दाश्त नहीं करेंगे। वह स्वभावतः किसी का दखल बर्दाश्त नहीं करते। एक ब्यूरोक्रेट के साथ साल भर पहले जो हुआ, उसे एक उदाहरण मान कर आप समझ लें कि यह सरकार बिल्कुल दूसरे टोन में काम करेगी। योगी मूलतः काम करना चाहते हैं। वह डिलीवरी में भरोसा करने वाले हैं। जब राइट टाइम डिलीवरी में कोई दिक्कत आती है तो वह नाराज होते हैं। उन्हें हर चीज अप टू डेट और टू द प्वाइंट चाहिए ही।
योगी ने अपने पांच साल के कार्यकाल में जिस चीज पर सबसे ज्यादा फोकस किया, वह था डिलीवरी। डिलीवरी के मामले में योगी सरकार को आपको 100 में 100 अंक देने पड़ेंगे। उसके पीछे कारण है। जो लक्ष्य तय किया गया था, वह समय पर पूरा किया गया। पूर्वांचल एक्सप्रेस वे उसका शानदार उदाहरण है। ऐसे अनेक कार्य हैं जो प्रदेश में तय समय सीमा से पहले पूर्ण हुए। फिर, जो केंद्र की योजनाएं हैं, उन्हें भी योगी सरकार ने पूरा जोर लगा कर डिलीवर किया। वहां न तो हिंदू-मुसलमान की बात आई और न ही अगड़ों-पिछड़ों की। किसानों के खाते में धनराशि भेजी गई तो यह नहीं देखा गया कि किसान हिंदू है या मुसलमान। बस, उसे किसान ही समझा गया। यही हाल प्रधानमंत्री आवास को लेकर रहा। कोई यह नहीं कह सकता कि अनिवार्य पात्रता की शर्तें पूरी करने के बाद उसे मुसलमान होने के नाते आवास नहीं मिला। डिलीवरी हुई और बेहद कायदे से हुई। इसी डिलीवरी ने योगी के नाम पर, उनके काम पर फिर से जनादेश दिया है। 2022 से 2027 तक चलने वाली नई सरकार में डिलीवरी पर तो फिर से जोर होगा ही, रास्ते के जितने भी कांटे हैं, उन्हें भी निकाला जाएगा और माना जा रहा है कि इस बार भी योगी अपनी ही मर्जी से सरकार चलाएंगे-चाहे कोई कुछ भी सोचे, कहे।
-आनंद सिंह
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