छद्म हिन्दूवादी ‘चेहरों’ को आईना दिखा गया पांच राज्यों का विधानसभा चुनाव
कांग्रेस की हार से इत्तर यदि समाजवादी पार्टी की हार की बात की जाये तो 1993 में पार्टी के गठन के बाद से सपा को सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा है। सपा को मध्य प्रदेश से काफी उम्मीद थी, लेकिन उसे यहां मात्र 0.45 फीसदी वोट मिले।
पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव में से हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के अलावा किसी भी दल की दाल नहीं गल पाई। इन राज्यों में जिस पार्टी की जितनी ‘हैसियत’ थी, उसे यहां की जनता ने उस हिसाब से सबक सिखाया। कांग्रेस के अलावा समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और जनता दल युनाइेड जैसी तमाम क्षेत्रीय पार्टियां सियासी मैदान में दम तोड़ती दिखीं, लेकिन सबसे अधिक चर्चा कांग्रेस की हार की हो रही है। गांधी परिवार पर चौतरफा हल्ला बोला जा रहा है। भाजपा हमलावर है यह बात तो समझ में आती है, लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती जिनकी अपनी परफारमेंस इन चुनावों में किसी तरह से अच्छी नहीं थी, उनके तो दोनों हाथों में मानो लड्डू आ गया है। इन दोनों दलों के मुखिया कांग्रेस और गांधी परिवार को आईना दिखा रहे हैं तो भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड जीत पर ईवीएम पर सवाल उठाकर अपनी हार पर एक तरफ पर्दा डाल रहे हैं तो दूसरी तरफ व्यंग्यात्मक लहजे में बीजेपी की जीत पर तंज भी कस रहे हैं।
कांग्रेस की हार से इत्तर यदि समाजवादी पार्टी की हार की बात की जाये तो 1993 में पार्टी के गठन के बाद से सपा को सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा है। सपा को मध्य प्रदेश से काफी उम्मीद थी, लेकिन उसे यहां मात्र 0.45 फीसदी वोट मिले। इतने कम वोट सपा को कभी नहीं मिले थे। पिछले 25 वर्षों में पहली बार सपा के कुल वोटों का आंकड़ा दो लाख भी नहीं पार कर पाया। सपा ने मध्य प्रदेश में 74 उम्मीदवार उतारे थे। इन उम्मीदरवारों के समर्थन में अखिलेश यादव ने करीब एक दर्जन सभाएं की थीं। अखिलेश के अलावा डिंपल यादव, शिवपाल यादव सहित तमाम नेता चुनाव प्रचार का हिस्सा बने थे। परंतु यहां न सपा का पीडीए कार्ड चला, ना ही जातीय जनगणना वाला दांव सही बैठा। अब अखिलेश ईवीएम पर भी सवाल खड़ा करते हुए कह रहे हैं कि अमेरिका, जापान, जैसे टेक्नालाजी सम्पन्न देश बैलेट पेपर से चुनाव कराते हैं। इसी तरह से बसपा को राजस्थान से काफी उम्मीद थी। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बसपा ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से गठबंधन किया था। एमपी में बसपा ने 178 और गणतंत्र पार्टी ने 50 उम्मीदवार उतारे थे। छत्तीसगढ़ में बसपा ने 53 और गोंडवाना पार्टी ने क्रमशः 53 और 37 प्रत्याशी खड़े किये थे लेकिन राजस्थान की दो सीटों के अलावा बसपा का कहीं खाता नहीं खुला, जबकि एमपी और छत्तीसगढ़ में बसपा ने पिछले चुनावों में दो-दो सीटें जीती थीं। बसपा प्रमुख राज्यों के चुनाव परिणाम को विचित्र बता रही हैं। वह अपने कार्यकर्ताओं से कह रही हैं कि इस अजूबे परिणाम से निराश न हों और पूरे उत्साह के साथ लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट जायें
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खैर, बेहतर यह होता कि चुनाव प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करने की बजाय यह दल अपने गिरेबान में झांक कर देखते। अखिलेश यादव को समझना चाहिए कि स्वामी प्रसाद मौर्या जैसे नेताओं से सतानत धर्म को गाली दिलाकर वह चुनाव जीत सकते हैं तो यह उनकी गलतफहमी है क्योंकि भले ही हिन्दू समाज में अभी भी थोड़ा-बहुत जातपात दिख जाता है, लेकिन हिन्दू देवी-देवताओं को गाली के खिलाफ पूरा हिन्दू समाज एकजुट खड़ा रहता है। यही संदेश राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजों से निकला है, जहां सनातनियों के सामने छद्म हिन्दुत्व हार गया। जिन दलों के नेता जातीय जनगणना कराये जाने की मांग करके हिन्दुओं को बांटना चाहते थे, उन्हें वोटरों ने आईना दिखा दिया। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और पूरी कांग्रेस ने जिस तरह से जातीय जनगणना के नाम पर हिन्दू समाज को बांटने के मंसूबे पाले थे, वह पूरी तरह से धराशायी हो गये।
बहरहाल, तीन राज्यों के विधान सभा चुनाव के नतीजों ने उत्तर प्रदेश की सियासत को भी काफी हद तक बदल दिया है। अब यहां 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए नये सिरे से इबारत लिखी जायेगी। इसी के साथ अगले वर्ष 2024 लोकसभा चुनाव में केंद्र की मोदी सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंकने की आईएनडीआईए गठबंधन की एकजुटता ग्रहण पड़ता नजर आ रहा है। इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि इन चुनावों में खाता भी न खोल पाने वाली समाजवादी पार्टी अपनी धुर विरोधी बीजेपी की जीत से ज्यादा कांग्रेस की हार से खुश नजर आ रही है। सपा नेताओं ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और पूर्व सीएम कमलनाथ पर हमले की बौछार कर दी है। एमपी चुनाव के समय सुभासपा मुखिया ओपी राजभर ने आरोप लगाया था कि अखिलेश यादव कांग्रेस को हराने के लिए और बीजेपी को जिताने के लिए काम कर रहे हैं। सपा ने एमपी की 74 सीटों पर दावा ठोंका था जबकि कांग्रेस ने लगभग सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। दोनों पार्टियों के अलग-अलग चुनाव लड़ने की वजह से समाजवादी पार्टी तो खाता भी नहीं खोल पाई, लेकिन उसने कांग्रेस को नहीं जीतने दिया। समाजवादी पार्टी की ओर से कांग्रेस के बड़े नेताओं पर हमले की बात करें तो सपा के आधिकारिक प्रवक्ताओं ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी और पूर्व सीएम कमलनाथ पर खूब हमला बोला था। सपा प्रवक्ता मनोज काका ने तो यहां तक कहा कि कांग्रेस को अखिलेश यादव को अपमान जनक शब्दों से सम्बोधित करना भारी पड़ा है। उन्होंने बताया कि कमलनाथ ने सपा मुखिया के खिलाफ अपमान जनक शब्द बोले थे। उनका अहंकार सिर चढ़कर बोल रहा था। वहीं सपा के एक अन्य प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने कहा कि आईएनडीआई गठबंधन में कांग्रेस एक बड़ा दल है, उसे बड़े दिल के साथ इस गठबंधन को चलाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सपा प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस को आत्मचिंतन की जरूरत है कि अगर देश से भारतीय जनता पार्टी को हराना है, तो बड़े दल को बड़ा दिल भी दिखाना पड़ेगा।
- अजय कुमार
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