Interview: नीतीश कुमार के जाने के बाद अब इंडिया गठबंधन सही दिशा में आगे बढ़ रहा हैः पवन खेड़ा
पवन खेड़ा ने कहा कि देश के तकरीबन सभी तगड़े विपक्षी दल ‘इंडिया गठबंधन’ का हिस्सा हैं। अगर हम उनसे तुलना करें, तो उधर करीब 38-40 सियासी दलों का झुंड है। उनके मुकाबले के लिए हमारे एकाध दल ही काफी हैं। उधर दर्जनों दल तो ऐसे हैं जिनका सिर्फ अध्यक्ष है और कोई नहीं है।
‘इंडिया गठबंधन’ की एक परेशानी कम होती है, तो दूसरी खड़ी हो जाती है। नीतीश कुमार ने अलग होकर तगड़ा झटका तो दिया ही है, उधर दो सप्ताह से ईडी की विपक्षी नेताओं पर हो रही ताबड़तोड़ छापेमारी ने भी हिला डाला है। ऐसे में सवाल उठता है लोकसभा चुनाव के लिए बचाखुचा गठबंधन अपने को कैसे मजबूत कर पाएगा? इंडिया गठबंधन की मौजूदा स्थिति क्या है और आगे की चुनौतियां क्या हैं? इन सब मुद्दों को लेकर हमारे प्रतिनिधि डॉ0 रमेश ठाकुर ने कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा से विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य हिस्से-
प्रश्नः नीतीश कुमार के गठबंधन छोड़ने के बाद ‘इंडिया गठबंधन’ अब कहां खड़ा है?
उत्तर- देश के तकरीबन सभी तगड़े विपक्षी दल ‘इंडिया गठबंधन’ का हिस्सा हैं। अगर हम उनसे तुलना करें, तो उधर करीब 38-40 सियासी दलों का झुंड है। उनके मुकाबले के लिए हमारे एकाध दल ही काफी हैं। उधर दर्जनों दल तो ऐसे हैं जिनका सिर्फ अध्यक्ष है और कोई नहीं है। कुल मिलाकर कागजों में ही एनडीए मजबूत है, धरातल पर नहीं? नीतीश कुमार के जाने के बाद मुझे लगता है गठबंधन अब सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। देखिए, तानाशाह शासन से लोहा लेने के लिए फौलादी जिगर चाहिए होता है। लड़ाई के बीच में हथियार डालने का मतलब होता है डर जाना या घुटने टेक देना? पर, कुछ लोगों ने इसका परिचय भी दे दिया। शायद उनकी हिम्मत जवाब दे गई हो, तभी सरेंडर कर दिया हो। सरेंडर करने वाले सैनिकों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है, शायद ये बताने की जरूरत नहीं? परिणाम बहुत जल्दी दिखाई देंगे। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि लोकसभा चुनाव का जब रिजल्ट आएगा, तो इंडिया गठबंधन का परिणाम सबको चकित करेगा।
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प्रश्नः अचानक बात बिगड़ी कहां, नीतीश कुमार का मोहभंग हुआ क्यों?
उत्तर- ये सवाल तो उन्हीं से पूछा जाना चाहिए, वही सही जवाब दे पाएंगे। समूचा बिहार भी इसी सवाल का जवाब उनसे मांग रहा है। कभी कहते थे ‘मर जाएंगे, पर एनडीए में नहीं जाएंगे’, लेकिन चले गए? उन्होंने न सिर्फ इंडिया गठबंधन को अंधेरे में रखा, बल्कि बिहार प्रदेशवासियों के साथ भी घोर विश्वासघात किया है। देखना, भाजपा अब उन्हें निगल जाएगी। प्रधानमंत्री-गृहमंत्री के बारे में उन्होंने जितना अनाप-शनाप कहा? उसका बदला लोकसभा चुनाव परिणाम को माध्यम बनाकर ले लेंगे। मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखाकर प्रधानमंत्री ने लोकसभा में कह ही दिया है कि 370 भाजपा की और 400 सीटें एनडीए की आएंगे? इसका मतलब एनडीए में शामिल दलों को सिर्फ एक-एक ही सीटें मिलेंगी। एक गणित ये भी दिखता है कि कई दल तो खाली हाथ ही रहने वाले हैं।
प्रश्नः एक तरफ राहुल गांधी की यात्रा, दूसरी तरफ गठबंधन की प्लानिंग, आखिर दोनों एक साथ कैसे मैनेज हो रही हैं?
उत्तर- ‘इंडिया गठबंधन’ की कोर टीम अपने आगामी बैठकों और योजनाओं में लगी हुई है। जो सभी दलों के साथ संपर्क में है। पूर्व की प्लानिंगों में अब बदलाव किया गया है। राज्य स्तर पर बातचीत की रणनीति बनाई गई है। वहीं, राहुल गांधी की यात्रा को पार्टी के वरिष्ठ सदस्य देख रहे हैं। जयराम रमेश व अन्य नेता उनके संग यात्रा में हैं। राहुल गांधी की यात्रा देशवासियों में नई चेतना पैदा कर रही है। हर वर्ग उनसे जुड़ रहे हैं, कामधाम छोड़कर लोग साथ चल रहे हैं। उम्मीद की निगाहों से राहुल जी की ओर देख रहे हैं देशवासी। दरअसल, देश बदलाव चाहता है। नफरती राजनीति से लोग ऊब चुके हैं। बेरोजगारी-महंगाई से देश आहत है, इससे निजात दिलवाने के लिए राहुल गांधी निकले हुए हैं।
प्रश्नः गठबंधन दलों की सबसे बड़ी नाराजगी शायद सीट बंटवारे को लेकर ही ज्यादा दिखती है?
उत्तर- राजनीति में कुछ हिडन मुद्दे होते हैं जिन्हें सार्वजनिक नहीं किया जाता है। सीटों के बंटवारे पर अभी मंथन नहीं हुआ। जबकि, सभी दल मजबूती से मिलकर चुनाव लड़ने की रणनीतियों में ज्यादा लगे हैं। इस तरह की अफवाहें मीडिया के जरिए भाजपा वाले फैला रहे हैं। जहां तक सीट शेयरिंग की बात है, तो गठबंधन दलों के साथ केंद्रीय नेतृत्व आम सहमति बनाएगा और राज्य स्तर पर फार्मूला बनेगा फिर उसके अनुरूप ही शीट शेयरिंग होगी। इस मसले पर फिलहाल रत्ती भर भी कहीं कोई विरोध नहीं है।
प्रश्नः क्या कांग्रेस दिल्ली में ‘आप’ और यूपी में ‘सपा’ के साथ शीट शेयरिंग को बड़ी चुनौती मान रही है?
उत्तर- दोनों राज्यों में सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत अंतिम दौर में हैं। तकरीबन-तकरीबन फॉर्मूला तय हो चुका है। आगामी बैठकों में सभी बातें साफ हो जाएंगी। दिल्ली-उत्तर प्रदेश के अलावा झारखंड, महाराष्ट्र, तेलंगाना व अन्य प्रमुख राज्यों में सहयोगी गठबंधनों के साथ मंथन हुआ है। जहां, जिनका जितना प्रभाव है, उन्हें उतनी प्राथमिकताएं दी जाएगी। सबसे पहले हम अंदरूनी स्तर पर उन सीटों पर सर्वे करवा रहे हैं जहां हमारी पकड़ थोड़ी बहुत कमजोर है। कमजोर क्यों हैं और उन्हें मतबूत कैसे किया जाए, उस पर ज्यादा फोकस है। देखिए, भाजपा के लोग इंडिया गठबंधन के गठन के पहले दिन से ही भयभीत हैं। हमें आपस में लड़ाने और विपक्षी दलों को तितर-बितर करने के लिए वह हर तरह के हथकंड़े अपना रहे हैं। तरह-तरह की बातें मीडिया में फैलाते हैं। इंडिया गठबंधन की बैठक में कोई नेता अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के चलते अगर नहीं पहुंचता, तो ये लोग प्रचार करते हैं कि फलां दल नाराज है।
प्रश्नः विपक्षी दलों पर ईडी की तेज होती कार्यवाही को आप कैसे देखते हैं?
उत्तर- डर-भय पैदा करना, चुनाव में मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के सिवाय और कुछ नहीं है। ईडी की करीब 97 फीसदी छापेमारी इस वक्त विपक्षी नेताओं पर है। अजित पवार, नारायण राणे, शुभेंदु अधिकारी व हेमंत बिस्वा सरमा जैसे नेताओं के गंभीर केस इसलिए बंद हुए हैं क्योंकि उन्होंने भाजपा की वॉशिंग मशीन में घुसकर खुद को धो लिया है। ईडी का इस्तेमाल मौजूदा सरकार किस तरह कर रही है, ये देश देख रहा है। लेकिन हम ईडी से कतई नहीं डर रहे। करो कितना परेशान करोगे? झारखंड प्रकरण ताजा है, हेमंत सोरेन ने कह तो दिया है उन पर भ्रष्टाचार के लगे आरोप अगर सही साबित हुए, तो राजनीति छोड़ देंगे? इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है। अरविंद केजरीवाल और उनके नेताओं को एक-एक करके जेल में डाला जा रहा है। ये भी जनता देख रही है। देखिए, राजनैतिक विचारधाराएं हमारी भिन्न हो सकती हैं। पर, कांग्रेस कभी गलत को सही नहीं कहती। अन्याय के खिलाफ हम आवाज उठा रहे हैं और उठाते रहेंगे? उसके लिए हमें चाहें कितनी भी परेशानियां क्यों न झेलनी पड़ें।
-बातचीत में जैसा कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने डॉ. रमेश ठाकुर से कहा
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