VP Singh Death Anniversary: कांग्रेस सरकार की खिलाफत कर वीपी सिंह बने देश के 8वें PM, ऐसे बने मसीहा

VP Singh
Prabhasakshi

आज ही के दिन यानी की 27 नवंबर को देश के 8वें प्रधानमंत्री वीपी सिंह का निधन हो गया था। ‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है’ इस नारे के साथ वह देश के प्रधानमंत्री बने थे। वीपी सिंह का भारतीय राजनीति में एक लंबा, शानदार करियर रहा।

आज ही के दिन यानी की 27 नवंबर को देश के 8वें प्रधानमंत्री वीपी सिंह का निधन हो गया था। ‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है’ इस नारे के साथ वह देश के प्रधानमंत्री बने थे। वहीं प्रधानमंत्री बनने से पहले वह राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री रहे और उन्होंने अपनी ही सरकार को बोफोर्स तोप दलाली मुद्दे पर घेरने का काम किया था। जिसके बाद वह मंत्री पद छोड़कर सरकार से अलग हो गए। उनके इस फैसले के बाद वीपी सिंह साफ छवि वाले नेताओं की श्रेणी में आ गए थे। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर वीपी सिंह के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 25 जून 1931 को वीपी सिंह का जन्म हुआ था। वह राजपूत परिवार से ताल्लुक रखते थे। इनका पूरा नाम विश्वनाथ प्रताप सिंह था। जब वह देश के प्रधानमंत्री बने तो नेपाल तक में खुशियां मनाई गईं थी। क्योंकि यह पहला ऐसा मौका था कि आजादी के बाद इस समाज का कोई नेता पीएम की कुर्सी पर बैठा था। वीपी सिंह के राजनैतिक करियर की शुरूआत उत्तर प्रदेश से हुई थी।

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राजनैतिक सफर

बता दें कि साल 1969-1971 में वह उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुंचे। जिसके बाद उन्होंने यूपी की सीएम पद का कार्यभार संभाला। वह 9 जून 1980 से 28 जून 1982 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। फिर 29 जनवरी 1983 को केंद्रीय वाणिज्य मंत्री का पद संभाला। इसके बाद वह देश के वित्त मंत्री बने। इस दौरान उनका राजीव गांधी के साथ उनका टकराव हो गया। जिसके बाद उन्होंने राजीव गांधी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर प्रचार अभियान चलाया। 

ऐसे बने प्रधानमंत्री

दरअसल, बोफोर्स और पनडुब्बी रक्षा सौदों की दलाली का मुद्दा उठाकर वीपी सिंह ने राजीव गांधी की सरकार में वित्त मंत्री पद छोड़ दिया। उस दौरान उनके पास ना तो राजनैतिक दल था और ना ही कोई विचारधारा थी। लेकिन राजीव गांधी सरकार से अलग होने के बाद उनकी छवि एक साफ-सुथरे नेता के तौर पर उभरी थी। जिसके बाद देश में चुनाव हुए और उन्होंने बोफोर्स मुद्दे को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ा। इस दौरान साल 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। वहीं बीजेपी के समर्थन से वीपी सिंह को देश का अगला प्रधानमंत्री बनाया गया। 

वीपी सिंह बने मसीहा

प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए वीपी सिंह ने एक बड़ा कदम ने उठाया। उन्होंने देश में मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर दिया। बता दें कि उस दौरान देश की करीब आधी आबादी ओबीसी थी। वीपी सिंह के इस फैसले से OBC समाज को नौकरियों में आरक्षण मिला। जिससे पिछड़े समुदाय के ना सिर्फ सामाजिक बल्कि आर्थिक हालात भी बदल गए। हांलाकि इस फैसले से वीपी सिंह सामाजिक न्याय के मसीहा तो जरूर बने, लेकिन इस फैसले से सवर्ण समाज आक्रोषित हो उठा और उनको विभाजनकारी के तौर पर देखने लगा।

जो सवर्ण कभी वीपी सिंह को मसीहा बताया करते थे, वही समाज अब उनको इस फैसले के बाद से विलेन समझने लगा था। देश में मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करना वीपी सिंह की नजर में सामाजिक न्याय लाने वाला फैसला था। लेकिन सवर्ण समाज की नजर में उनका यह फैसला राजनीतिक स्वार्त बताया जाने लगा। सवर्ण समाज के विरोध के साथ ही विपक्षी दल और बीजेपी भी इस फैसले से सहमत नहीं थी। जिसके कारण संयुक्त मोर्चा सरकार संसद में विश्वास मत के दौरान गिर गई।

मृत्यु

वीपी सिंह का भारतीय राजनीति में एक लंबा, शानदार करियर रहा। वहीं आखिरी के समय में वीपी सिंह ब्लड कैंसर से पीड़ित थे और लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहे। जिसके बाद 27 नवंबर 2008 को उन्होंने 77 साल की उम्र में आखिरी सांस ली।

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