वीर सावरकर ऐसे क्रांतिकारी हैं जिन्हें सबसे ज्यादा उपेक्षा मिली
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कई महान व्यक्तित्वों ने अपने विचारों और देशभक्ति से स्वतंत्रता की एक नई अलख जगाई। ऐसे ही एक महान विभूति थे विनायक दामोदर सावरकर। जिन्होंने अपने विचार, साहित्य और लेखन से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंक दिया।
कई बार हम इतिहास पढ़ते हैं, पढ़कर आगे भी चले जाते हैं और इतिहास को भूल भी जाते हैं। लेकिन अगर आप दिमाग पर जोर डालेंगे और कुछ ऐसी बातों पर दोबारा से सोचने की कोशिश करेंगे तो आपको कई तथ्य ऐसे पता चलेंगे जिन्हें जानकर आप हैरान हो जाएंगे। आज स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर की 139वीं जयंती है। जिन्हें हम वीर सावरकर के नाम से जानते हैं। विनायक दामोदर सावरकर एक क्रांतिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, चिंतक, लेखक, कवि, वक्ता, राजनेता और दार्शनिक। सावरकर के कई रुप हैं, कुछ लोगों को लुभाते हैं और कुछ लोगों को रास नहीं आते हैं। इस देश में जब भी कोई वीर सावरकर का नाम लेता है तो कांग्रेस पार्टी को बहुत बुरा लगता है। कांग्रेस के नेता अक्सर वीर सावरकर के बारे में अपमानजनक बातें कहते रहे हैं। आपको याद होगा कि जब सावरकर को भारत रत्न देने की मांग उठी थी तो इसका सबसे ज्यादा विरोध कांग्रेस ने ही किया था।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कई महान व्यक्तित्वों ने अपने विचारों और देशभक्ति से स्वतंत्रता की एक नई अलख जगाई। ऐसे ही एक महान विभूति थे विनायक दामोदर सावरकर। जिन्होंने अपने विचार, साहित्य और लेखन से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंक दिया। सावरकर के क्रांतिकारी विचारों से डरकर गोरी हुकूमत ने उन पर न केवल बेइंतहां जुल्म ढाए बल्कि उन्हें काला पानी भेजते हुए दो जन्मों के आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई। लेकिन उन सब से बिना डरे सावरकर भारतवासियों के आजादी दिलाने में जुटे रहे। अपने लेखनी और विचारों से देश को एक सूत्र में पिरोने का काम किया। अतीत में जिस शख्स से लिखने के लिए कागज तक छीन लिया गया हो जिन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक व्यक्ति नहीं विचार कहा करते थे।
हर साल जब 28 मई आती है देश स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर की जयंती पर उन्हें याद करता है। आजादी की लड़ाई में उनके योगदान की चर्चा होती है। क्रांतिकारी और हिंदुत्व विचारक का जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक के भगूर में हुआ था। वो एक महाराष्ट्र के ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। सावरकर एक वकील, कार्यकर्ता, लेखक और राजनीतिज्ञ भी थे। स्वतंत्रता सेनानी को उनकी किताब 'हिंदुत्व: हिंदू कौन है' के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है। जिसमें उन्होंने भारतीय राष्ट्र का गठन करने के बारे में अपने विचार रखे थे। सावरकर शुरुआत से ही क्रांतिकारी थे। नासिक के कलेक्टर की हत्या के आरोप में अंग्रेजों ने 1911 में सावरकर को काला पानी की सजा सुनाई थी। साल 2018 में पीएम मोदी उसी सेल्यूलर जेल में गए थे जहां पर अंग्रेजों ने वीर सावरकर को रखा था। जेल परिसर में पहुंचने के बाद पीएम मोदी ने शहीद स्तंभ पर पुष्प चक्र अर्पित किया था। फिर उस कोठरी में गए जहां हिंदुत्व विचारक वीर सावरकर को रखा गया था।
1857 और वीर सावरकर
भारत के स्वतंत्रता इतिहास का पहला बड़ा आंदोलन 1857 में हुआ था। इस आंदोलन को भारत के स्वतंत्रता संग्राम के तौर पर दर्ज करने का श्रेय विनायक सावरकर को जाता है। जिन्होंने 1909 में एक किताब लिखी जिसका नाम 'द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस 1857' था। इसी किताब में 1857 की लड़ाई को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम घोषित किया गया था।
गांधी और सावरकर की मुलाकात
1906 में सावरकर बैरिस्टर बनने के लिए लंदन गए। 1909 में गांधी और सावरकर के बीच लंदन में एक मुलाकात हुई। गांधी जी ने इस मुलाकात के बारे में बहुत बाद में लिखा। गांधी जी के अनुसार लंदन में वो कई क्रांतिकारियों से मिले इसमें दो भाइयों के विचारों ने बहुत प्रभावित किया। गांधी जी की ये टिप्पणी सावरकर बंधुओं के लिए थी।
पत्थर के टुकड़ों को कलम बना कर 6000 कविताएं दीवार पर लिखीं
जुलाई 1909 को मदन लाल डिंगड़ा ने विलियम कर्जन वायली को गोली मार दी। इसके बाद सावरकर ने लंदन टाइम्स में एक लेख लिखा था। 13 मई 1910 को उन्हें गिरफ्तार किया गया। 24 दिसंबर 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई। 31 जनवरी 1911 को सावरकर को दोबारा आजीवन कारावास दिया गया। 7 अप्रैल 1911 को उन्हें काला पानी की सजा दी गई। सावरकर 4 जुलाई 1911 से 21 मई 1921 तक पोर्टब्लेयर जेल में रहे। अंडमान की जेल में रहते हुए पत्थर के टुकड़ों को कलम बना कर 6000 कविताएं दीवार पर लिखीं और उन्हें कंठस्थ किया। उसके बाद अंग्रेज शासकों ने उनकी याचिका पर विचार करते हुए उन्हें रिहा कर दिया।
हिंदुत्व का एक राजनीतिक विचारधारा के तौर पर इस्तेमाल
अंडमान से वापस आने के बाद सावरकर ने एक पुस्तक लिखी 'हिंदुत्व- हू इज हिंदू?' जिसमें उन्होंने पहली बार हिंदुत्व को एक राजनीतिक विचारधारा के तौर पर इस्तेमाल किया। आजादी के बाद उन्हें महात्मा गांधी की हत्या के बाद गिरफ्तार किया गया। इसके बाद 10 नवंबर को आयोजित प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शताब्दी समारोह में वो मुख्य वक्ता रहे। 1959 में पुणे विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया। सितंबर 1965 में सावरकर को बीमारी ने घेर लिया। इसके बाद उन्होंने उपवास करने का फैसला किया। सावरकर ने 26 फरवरी 1966 को अपना शरीर त्याग दिया।
- अभिनय आकाश
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