अखंड भारत के बड़े पक्षधर थे श्यामा प्रसाद मुखर्जी, देश के बंटवारे का भी किया था विरोध
श्याम प्रसाद मुखर्जी के पिता की एक शिक्षाविद के रूप में लोकप्रियता भी खूब थे। डॉक्टर मुखर्जी की पढ़ाई लिखाई बेहतर तरीके से हुई थी। 1917 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और 1921 में बीए की उपाधि प्राप्त कर चुके थे।
जब जम्मू कश्मीर से अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म किया जा रहा था, तब भाजपा की ओर से एक व्यक्ति का नाम खूब लिया जा रहा था। वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे। श्याम प्रसाद मुखर्जी के लिए यह बात खूब कही जाती है कि वह जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने यह सपना देखा था, उस वक्त जम्मू कश्मीर का अलग झंडा और संविधान हुआ करता था। वहां के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री कहते थे। संसद में भी अपने भाषण के दौरान डॉ मुख़र्जी जम्मू कश्मीर से धारा 370 खत्म करने की जोरदार वकालत करते रहते थे। 1952 जम्मू की एक विशाल रैली के दौरान श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस संकल्प लिया था कि मैं यहां के लोगों को भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा। अपने इस संकल्प को सिद्ध करने के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने तत्कालीन नेहरू सरकार को भी चुनौती दे दी थी। अपने इस संकल्प पर वह जीवन भर अडिग और अटल रहे।
अपनी इस संकल्प को पूरा करने के लिए 1953 में बिना परमिट लिए ही वह जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल गए। जहां उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिया गया था। तभी 23 जून 1953 को उनकी रहस्यमई परिस्थितियों में मौत हो जाती है। भले ही श्याम प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू कश्मीर के लिए अपनी कुर्बानी दे दी हो, लेकिन उन्होंने ऐसी संकल्प ली थी जिसे आज पूरा कर मोदी सरकार खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही है। भाजपा लगातार यह नारा भी देती रही है कि जहां बलिदान हुए मुखर्जी, वह कश्मीर हमारा है। भाजपा के लिए कश्मीर में एक झंडा और एक संविधान एक अहम मुद्दा था। यही कारण था कि जब 2019 में नरेंद्र मोदी की सरकार एक बार फिर से पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई तो सबसे पहले उसने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के इस संकल्प को पूरी करने की प्रक्रिया शुरू की और सफलता भी पाई। श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1921 को कोलकाता में हुआ था। वे शिक्षाविद होने के साथ-साथ चिंतक और भारतीय जनसंघ के संस्थापक भी थे। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
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श्याम प्रसाद मुखर्जी के पिता की एक शिक्षाविद के रूप में लोकप्रियता भी खूब थे। डॉक्टर मुखर्जी की पढ़ाई लिखाई बेहतर तरीके से हुई थी। 1917 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और 1921 में बीए की उपाधि प्राप्त कर चुके थे। 1923 में लॉ की उपाधि अर्जित करने के बाद वे विदेश चले गए और 1926 में इंग्लैंड से बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। श्याम प्रसाद मुखर्जी शिक्षा के क्षेत्र में लगातार कार्य करते रहें। 33 वर्ष की अल्पायु में वे कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति बन गए। एक विचारक और प्रखर शिक्षाविद के रूप में उनकी उपलब्धि पूरे देश में लगातार बढ़ती जा रही थी। उनके कार्यों की चर्चा हो रही थी। भले ही डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर कार्य कर रहे थे। उनकी रूचि भी इस दिशा में बढ़ती जा रही थी। हालांकि, देश के प्रति भी उनके अंदर एक अलग भावना जागृत हो रही थी। जिस प्रकार से सरदार पटेल ने अखंड भारत की कल्पना की थी, उसी अखंड भारत की संकल्पना को साकार करने के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपना पूरा जीवन कुर्बान कर दिया। श्याम प्रसाद मुखर्जी का रुझान धीरे-धीरे राजनीति की ओर बढ़ता चला जा रहा था।
हालांकि यह बात भी सच है कि मुस्लिम लीग की राजनीति की वजह से बंगाल का वातावरण दूषित हो रहा था जोकि श्यामा प्रसाद मुखर्जी के लिए एक बड़ी पीड़ा थी। यही कारण था कि उन्होंने हिंदुओं को एकजुट करने की कोशिश की। श्यामा प्रसाद मुखर्जी धर्म के नाम पर देश के विभाजन के कट्टर विरोधी थे। कहते तो यह भी है कि जब भारत का विभाजन हो रहा था तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इसका विरोध किया था। इतिहासकारों ने यह भी कहा है कि वे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ही थे जिन्होंने विभाजन के दौरान आधा पंजाब और आधा बंगाल को भारत के लिए बचा लिया था। आजादी के बाद वे महात्मा गांधी और सरदार पटेल के अनुरोध पर भारत के पहले मंत्रिमंडल में शामिल हुए। उन्हें जवाहरलाल नेहरू किस सरकार में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री की जिम्मेदारी दी गई। 1950 में जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच एक समझौता हुआ। इस समझौते से श्यामा प्रसाद मुखर्जी इतने नाराज हो गए कि उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया।
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इसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक गुरु गोलवलकर जी से उन्होंने परामर्श लेकर जनसंघ की स्थापना की। 21 अक्टूबर 1951 को जनसंघ की स्थापना की गई। जनसंघ की स्थापना का उद्देश्य अखंड भारत की कल्पना था। देश के पहले आम चुनाव में जनसंघ के तीन सांसद चुने गए। उनमें से एक डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी थे। वे लगातार जवाहरलाल नेहरू की नीतियों की आलोचना करते थे। जनसंघ का स्पष्ट मानना था कि भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में दुनिया के सामने आएगा। डॉ. मुखर्जी के अनुसार अखंड भारत देश की भौगोलिक एकता का ही परिचायक नहीं है, अपितु जीवन के भारतीय दृष्टिकोण का द्योतक है, जो अनेकता में एकता का दर्शन करता है। जनसंघ के लिए अखंड भारत कोई राजनीतिक नारा नहीं था, बल्कि यह तो हमारे संपूर्ण जीवनदर्शन का मूलाधार है।
- अंकित सिंह
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