Sambhaji Maharaj Death Anniversary: राजनीति के ज्ञाता थे संभाजी महाराज, मराठा साम्राज्य की रक्षा के लिए न्योछावर कर दिए प्राण
मध्यकालीन भारत के इतिहास में संभाजी महाराज एक ऐसा नाम हैं, जिनके बिना मराठा शौर्य की कहानी अधूरी रहेगी। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया था। आज ही के दिन यानी की 11 मार्च को संभाजी महाराज वीरगति को प्राप्त हुए थे।
मध्यकालीन भारत के इतिहास में संभाजी महाराज एक ऐसा नाम हैं, जिनके बिना मराठा शौर्य की कहानी अधूरी रहेगी। संभाजी बचपन से ही अपने पिता शिवाजी जैसे वीर योद्धा थे। बता दें कि उन्होंने अपना पूरा जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया था। संभाजी को बचपन से ही राजनीति के ज्ञाता के रूप में जाना जाता था। वहीं कई मौकों पर इन्होंने अपनी कुशलता का परिचय भी दिया। आज ही के दिन यानी की 11 मार्च को संभाजी महाराज की मृत्यु हो गई थी। आइए जानते हैं इनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर संभाजी महाराज के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
महाराष्ट्र स्थित पुरंदर के किले में 14 मई 1657 को संभाजी महाराज का जन्म हुआ था। इनकी माता का नाम सईबाई था। बचपन में ही संभाजी के सिर से मां का साया उठ गया था। सईबाई छत्रपति शिवाजी की दूसरी पत्नी थीं। मां की मौत के बाद शिवाजी की मां जीजाबाई ने संभाजी का पालन-पोषण किया। बाद में संभाजी महाराज का विवाह येसूबाई से हुआ और इनका एक पुत्र था, जिसका नाम छत्रपति साहू था।
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वीरता और युद्ध कौशल
संभाजी महाराज बचपन से ही अपने पिता छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे वीर योद्धा था। वहीं संभाजी ने भी कई बार मुगल शासक औरंगजेब की सेना को हराया था। वह अपनी वीरता और युद्ध कौशल के लिए भी फेमस थे। आपको बता दें कि संभाजी महाराज ने अपने पूरे शासन काल में करीब 210 युद्ध किए थे और इनमें से एक भी युद्ध वह नहीं हारे थे। संभाजी को मराठी और संस्कृत सहित कई भाषाओं में प्रवीणता हासिल थी।
मुगलों से मिले संभाजी
प्राप्त जानकारी के अनुसार, संभाजी की सौतेली मां अपने बेटे राजाराम को अगला राजा बनाना चाहती थीं। जिसके चलने वह शिवाजी महाराज के मन में संभाजी के प्रति घृणा के भाव पैदा करने लगीं। ऐसा करने से शिवाजी और संभाजी के बीच अविश्वास की स्थिति बनी रहती थी। एक बार शिवाजी ने संभाजी को किसी कारण के चलते कारावास में डलवा दिया। लेकिन संभाजी महाराज कारावास से भागने में सफल रहे। जिसके बाद वह मुगलों से जा मिले। लेकिन जब संभाजी ने हिंदुओं के प्रति मुगलों का क्रूर व्यवहार देखा, तो वह वापस अपने राज्य लौट आए। औरंगजेब के कारावास से भागने के दौरान संभाजी की मुलाकात एक ब्राह्मण कवि कलश से हुई। यह ब्राह्मण आगे चलकर संभाजी का सलाहकार बना।
पुरंदर की संधि
बता दें कि साल 1665 में मराठाओं और मुगलों के बीच पुरंदर की संधि हुई। जिसके बाद 3 अप्रैल 1680 को छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई। तब संभाजी महाराज राजा बने। राजा बनने के बाद संभाजी ने अपने पिता के सहयोगियों को उनके पदों से बर्खास्त कर दिया और नए मंत्रिमंडल का गठन किया। इस दौरान संभाजी ने कवि कलश को अपना सलाहकार नियुक्त किया। कवि कलश मथुरा के रहने वाले थे और इनको मराठी भाषा का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था।
मृत्यु
संभाजी द्वारा शिवाजी के सहयोगियों को निकाले जाने पर नाराज लोगों ने संभाजी के खिलाफ आंतरिक विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। इसी विद्रोह के कारण संभाजी मुगलों से लड़ाई में हार गए। जिसके बाद मुगलों ने उनको बंदी बना लिया। संभाजी को गंभीर शारीरिक और मानसिक यातनाएं दीं। लेकिन भगवान शिवजी के भक्त संभाजी ने मरते दम तक हार नहीं मानी और मुगलों के सामने नहीं झुके। वहीं 11 मार्च 1689 को संभाजी वीरगति को प्राप्त हुए।
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