Ram Prasad Bismil Birth Anniversary: राम प्रसाद बिस्मिल ने हिला दी थी अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें, जानिए रोचक बातें

Ram Prasad Bismil
Prabhasakshi

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर ब्राह्मण परिवार में 11 जून 1897 को राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम मुरलीधर था। जोकि शाहजहांपुर की नगरपालिका में कर्मचारी थे। उनकी मां का नाम मूलारानी था। सीमित आय के कारण बिस्मिल का बचपन सामान्य गुजरा था।

आज ही के दिन यानी की 11 जून को भारत माता के वीर सपूत और महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म हुआ था। बिस्मिल ने अपना जीवन भारत माता के चरणों में न्योछावर कर दिया था। हालांकि उनका बचपन भी सामान्य तरीके से शुरू हुआ था। लेकिन उनके जीवन में बहुत सारे ऐसे लोग आए, जिससे बिस्मिल के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आया। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को अपने आगे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर राम प्रसाद बिस्मिल के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर ब्राह्मण परिवार में 11 जून 1897 को राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम मुरलीधर था। जोकि शाहजहांपुर की नगरपालिका में कर्मचारी थे। उनकी मां का नाम मूलारानी था। सीमित आय के कारण बिस्मिल का बचपन सामान्य गुजरा था। वहीं बिस्मिल को पढ़ाई से ज्यादा खेल में रुचि थी। वह अपने शौक पूरे करने के लिए पैसे चुराते थे और उन्हें भांग और सिगरेट की लत लगी थी। ऐसे में उनके लक्षणों को देखकर किसी को उम्मीद नहीं थी कि वह क्या बनने वाले हैं।

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हालांकि स्कूल के दिनों में ही उनको किताबें और उपन्यास पढ़ने का चस्का लग गया था। इसी शौक को पूरा करने के लिए वह घर से पैसे चुराते थे। उन्होंने हिंदी और उर्दू में शुरूआती पढ़ाई पूरी की। लेकिन अंग्रेजी के कारण वह 10वीं की परीक्षा पास नहीं कर सके। ऐसे में उन्होंने अंग्रेजी सीखने की जिद ठान दी और पड़ोसी की संगत मिलने पर पूजापाठ में रम गए। 

समय के साथ बदलते गए बिस्मिल

पड़ोस के पुजारी से मुलाकात के बाद राम प्रसाद बिस्मिल की पूजा-पाठ और ईश्वर के प्रति श्रद्धा जगी। इससे बचपन वाली सारी बुरी आदतें छूट गईं। वहीं उनका पढ़ाई में भी मन लगने लगा। मुंशी इंद्रजीत से मुलाकात के बाद उन्हें  स्वामी दयानंद स्वरस्वती की लिखी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने का मौका मिला। इसे पढ़ने के बाद और स्वामी सोमदेव का सानिध्य मिलने से बिस्मिल में देशभक्ति की भावना प्रबल होने लगी।

राजनैतिक गतिविधियां

यहीं से बिस्मिल की राजनैतिक गतिविधियों में सक्रियता शुरू हुई और वह कई नेताओं और क्रांतिकारियों से मिले। वहीं राम प्रसाद बिस्मिल की ऊंची सोच और ज्ञान से हर कोई प्रभावित होता था। साल 1951 में गदर पार्टी के सदस्य भाई परमानंद की फांसी खबर राम प्रसाद बिस्मिल को अधिक भावुक कर दिया। जिसके बाद उन्होंने क्रांतिकारी की राह पकड़ ली। फिर वह कांग्रेस के नजदीक आए और उनको मोतीलाल नेहरु समेत कई नेताओं से मिलने का मौका मिला।

असहयोग आंदोलन में बिस्मिल कांग्रेस के युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हुए। असहयोग आंदोलन बंद होने और क्रांतिकारियों की संगति बढ़ने से वह योगेश चन्द्र चटर्जी और शचीन्द्रनाथ सान्याल आदि साथियों के साथ हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन पार्टी का गठन हुआ। इसका संविधान राम प्रसाद बिस्मिल ने खुद लिखा था कि वह पूरी तरह से क्रांतिकारी बन गए।

फांसी

भारत की आजादी की लड़ाई में काकोरी कांड एक अहम घटना साबित हुई। काकारो कांड से अंग्रेजी सरकार को बड़ा झटका लगा था। इस कांड के नायक रहे रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और रोशन सिंह को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई।

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