चित्रकला जगत के दिग्गज कलाकार थे मंजीत बावा
भारतीय पौराणिक कथाओं को मंजीत बावा ने अपने चित्रों में नए तरीके से प्रस्तुत किया। जैसा कि लगभग हर चित्रकार को प्रकृति से गहरा लगाव होता है, मंजीत बावा भी प्रकृति प्रेमी थे उन्होंने अपने चित्रों में पशु-पक्षियों और प्रकृति को विशेष महत्व दिया।
चित्रकला जगत में मंजीत बावा एक जाना-माना नाम है। चित्र बनाने में उनकी रूचि बचपन से ही थी, चित्रकला में उनके लगाव को देखते हुए उनके बड़े भाइयों ने उन्हें काफी प्रोत्साहित किया।
मंजीत बावा ने 1958 से 1963 के बीच दिल्ली के कॉलेज ऑफ आर्ट्स में ललित कला की शिक्षा प्राप्त की। चित्रकला में महारत हासिल करने का श्रेय वे अपने गुरू भारत के लोकप्रिय चित्रकार और कला शिक्षक अबनी सेन को देते हैं। उनका कहना था कि श्री सेन उनसे रोज पचास स्कैच बनवाते थे जिनमें से अधिकांश को रद्द कर देते थे और यहीं से उनका रेखांकन का अभ्यास शुरू हुआ और तब से लगातार काम करने की उनकी आदत बन गई।
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चित्रकला की शिक्षा के लिए मंजीत बावा ब्रिटेन भी गए, वहां उन्होंने सिल्कस्क्रीन पेंटिग की कला सीखी और 1964 से 1971 तक ब्रिटेन में रहकर बतौर एक सिल्कस्क्रीन पेंटर कार्य किया। भारत वापस आकर उन्होंने भारतीय पौराणिक कथाओं और सूफी पात्रों को अपनी चित्रकला का विषय बनाया।
मंजीत बावा का जन्म 29 जुलाई 1941 को पंजाब के धूरी शहर में हुआ था। एक चित्रकार के साथ-साथ उन्हें एक कुशल बांसुरी वादक के रूप में भी जाना जाता है। सूफी गायन और दर्शन में वे विशेष रुचि रखते थे। मंजीत बावा ने बचपन में महाभारत की पौराणिक कथाएं, वारिस शाह के काव्य और गुरू ग्रन्थ साहिब को सुना और उनसे प्रेरणा प्राप्त की। चित्रकला में उनका अपना अलग अंदाज था।
भारतीय पौराणिक कथाओं को मंजीत बावा ने अपने चित्रों में नए तरीके से प्रस्तुत किया। जैसा कि लगभग हर चित्रकार को प्रकृति से गहरा लगाव होता है, मंजीत बावा भी प्रकृति प्रेमी थे उन्होंने अपने चित्रों में पशु-पक्षियों और प्रकृति को विशेष महत्व दिया। मंजीत बावा देश के कई स्थानों में घूमें और वहां के दृश्यों का चित्रण भी किया। अपने चित्रों में उन्होंने पाश्चात्य रंगों से हटकर परंपरागत भारतीय रंगों लाल, बैंगनी, पीले रंगों का इस्तेमाल किया।
मंजीत बावा की बनाई पेंटिंग्स करोड़ों रूपए तक भी खरीदी गईं। हाल ही में उनकी बनाई एक पेंटिंग ऑनलाइन नीलामी में 1.7 करोड़ में बिकी। अपनी पेन्टिंग्स में मंजीत बावा ने श्रीकृष्ण-राधा, माँ काली और भगवान शिव के चित्र तो बनाए ही साथ ही हीर रांझा जैसे चरित्रों को भी जगह दी। अपनी चित्रकला में उन्होंने सूफी संवेदनाओं का समकालीन भारतीय कला में समावेश किया।
मंजीत बावा को उनकी अद्भुत चित्रकारी के लिए कई पुरूस्कार भी मिले। 1963 में उन्हें सैलोज पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1980 में ललित कला अकादमी से उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और सन् 2005-06 में उन्हें प्रतिष्ठित कालिदास सम्मान प्राप्त हुआ। उनके जीवन पर बुद्धदेब दासगुप्ता द्वारा बनाये वृत्तचित्र ‘मीटिंग मंजीत’ को ‘नेशनल अवार्ड फॉर बेस्ट डाक्यूमेंट्री’ का पुरस्कार मिला।
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अपने अंतिम समय में मंजीत बावा मस्तिष्काघात के कारण तीन वर्षों तक कौमा में थे और 67 वर्ष की उम्र में 29 दिसम्बर 2008 को इसी वजह से उनका निधन दिल्ली के ग्रीन पार्क में स्थित उनके निवास पर हो गया।
मंजीत बावा के चित्रों को दुनिया भर में पसंद किया गया। वह हरफनमौला इंसान थे। भारतीय समकालीन कला को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ख्याति दिलाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। मंजीत बावा आज भले ही हमारे बीच नहीं है पर भारतीय कला जगत में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।
अमृता गोस्वामी
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