भारत की आजादी के लिए प्राण न्योछावर करने वाले महान क्रांतिकारी थे मदन लाल ढींगरा
लंदन में मदनलाल की मुलाकात महान राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्ण वर्मा से हुई और लंदन में वह इंडिया हाउस में रहने लगे जो तब भारतीय विद्यार्थियों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केन्द्र हुआ करता था।
समस्त भारतवर्ष आज आजादी का 75 वां अमृत महोत्सव मना रहा है, जो याद दिलाता है देश को आजादी दिलाने वाले उन महान क्रांतिकारियों की जो भारत की स्वतंत्रता के लिए ही जिए और भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण तक न्योछावर करने में जरा भी नहीं हिचकिचाए। ऐसे ही महान क्रांतिकारियों में एक नाम है मदनलाल ढींगरा का जिन्होंने अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए विदेश में रहते हुए भी एक महान क्रांति रची थी।
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मदनलाल ढींगरा का जन्म 8 फरवरी 1887 को अमृतसर के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता दित्तामल ढीँगरा एक जाने माने सिविल सर्जन थे जो ब्रिटिश सत्ता के विश्वासपात्र थे। मदनलाल के पिता इंडिया ऑफिस के सेक्रेटरी और राजनैतिक सलाहकार विलियम कर्जन वायली के दोस्त की तरह थे, वहीं उनका बेटा मदनलाल भारतीयों के लिए ब्रिटिश सत्ता के रवैये के सख्त खिलाफ था जिससे उनके पिता बेहद नाराज थे ।
मदनलाल की प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर में हुई थी। वर्ष 1900 तक वह अमृतसर के एमबी इंटरमीडिएट कॉलेज में पढ़े और उसके बाद लाहौर के सरकारी कॉलेज में पढ़ाई की। वर्ष 1904 में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता सम्बंधित क्रांति गतिविधियां करने के आरोप में मदनलाल ढींगरा को कॉलेज से निकाल दिया गया जिसके बाद 1906 में बड़े भाई की सलाह पर मदनलाल उच्च शिक्षा के लिए लंदन गए जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में यांत्रिक प्रौद्योगिकी में प्रवेश लिया।
लंदन में मदनलाल की मुलाकात महान राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्ण वर्मा से हुई और लंदन में वह इंडिया हाउस में रहने लगे जो तब भारतीय विद्यार्थियों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केन्द्र हुआ करता था। इंडिया हाउस में सभी भारतीय देशभक्त अंग्रेजों द्वारा खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सतिंदर पाल और काशी राम जैसे क्रांतिकारियों को मृत्युदंड दिए जाने और अंग्रेजों के भारतीयों के प्रति अन्याय को लेकर अत्यंत क्रोधित थे। यह सब देख, सुनकर मदनलाल के मन में भी ब्रिटिश राज्य के खिलाफ जो चिंगारी थी वह अब और भी विकराल हो गई थी।
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1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा लंदन में ’द नेशनल इंडियन एसोसिएशन’ के एक वार्षिक कार्यक्रम में शामिल हुए जिसमे कर्जन वायली भी उपस्थित थे। इस कार्यक्रम के बाद जब कर्जन वायली बाहर आए तो ढींगरा ने उन पर गोली चलाकर उनकी हत्या कर दी जिसके तुरंत बाद ही पुलिस ने मदनलाल ढींगरा को गिरफ्तार कर लिया। कोर्ट में जब मदन लाल ढींगरा से कर्जन की हत्या की वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा कि अमानवीय ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त कराने के लिए मैंने अपनी भूमिका निभाई है। कर्जन वायली की हत्या के जुर्म में कोर्ट ने मदनलाल को फांसी की सजा सुनाई गई और 17 अगस्त 1909 को ब्रिटिश जेल में उन्हें फांसी दे दी गई।
भारतीय स्वतंत्रता के लिए मदनलाल की रची इस क्रांतिकारी घटना और कर्जन वायली की हत्या से मदनलाल के पिता अत्यंत क्रोधित हुए जिसके पश्चात पिता ने मदनलाल को परिवार व घर से भी बेदखल करने की घोषणा कर दी और यहाँ तक की लंदन से उनकी अस्थियां तक नहीं लाई जा सकीं। फिर कुछ समय बाद शहीद मदन लाल ढींगरा की अस्थियों को कई भारतीय देशभक्तों और केंद्र सरकार की मदद से 13 दिसंबर 1976 को लंदन से भारत लाया गया, जो 20 बीस दिसंबर को अमृतसर पहुंची जहां तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने राजकीय सम्मान के साथ शहीद ढींगरा की अस्थियों का अंतिम संस्कार किया।
हमारा भारतवर्ष भारतीयों के प्रति ब्रिटिश राज्य की कू्र राजनीति से व्यथित मदनलाल ढींगरा जैसे कई महान क्रांतिकारियों की भूमि रहा है । देश के लिए प्राण की आहुति देने वाले मदनलाल ढींगरा ने फांसी लगते समय कहा था 'मुझे गर्व है कि अपनी मातृभूमि के लिए मैं अपना जीवन समर्पित कर रहा हूं, और इसकी रक्षा के लिए मैं कई बार एक राष्ट्रवादी भारतीय बनकर जन्म लेना चाहूंगा।' आज 17 अगस्त शहीद मदनलाल ढींगरा की पुण्यतिथि पर उन्हें शत् शत् नमन!
- अमृता गोस्वामी
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