IK Gujral Birth Anniversary: इंद्र कुमार गुजराल को तोहफे में मिला था पीएम पद, ऐसा रहा राजनीतिक सफर
पाकिस्तान के पंजाब में 04 दिसंबर 1919 को इंद्र कुमार गुजराल का जन्म हुआ था। बाद में गुजराल का पूरा परिवार भारत आया और इनके माता-पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। गुजराल के पिता ने पंजाब के संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी।
आजाद भारत के राजनीतिक इतिहास में 90 का दशक उतार-चढ़ाव भरा रहा। साल 1990 खत्म होने के बाद जब आम चुनाव हुए, तो किसी भी राजनीतिक पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। सबसे बड़ी पार्टी बनने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार सिर्फ 13 दिन में गिर गई। फिर संयुक्त मोर्चा ने एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाया, लेकिन उनकी सरकार का भी जल्द पतन हो गया। जिसके बाद इंदर कुमार गुजराल का नए प्रधानमंत्री के रूप में चयन किया गया। वह देश के 12वें प्रधानमंत्री बनें। आज ही के दिन यानी की 04 दिसंबर को आई के गुजराल का जन्म हुआ था। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर पूर्व पीएम इंदर कुमार गुजराल के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
पाकिस्तान के पंजाब में 04 दिसंबर 1919 को इंद्र कुमार गुजराल का जन्म हुआ था। बाद में गुजराल का पूरा परिवार भारत आया और इनके माता-पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। गुजराल के पिता ने पंजाब के संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी। गुजराल बचपन से पढ़ाई में तेज थे और एम.ए, बी.कॉम और पीएचडी जैसी तमाम डिग्रियां हासिल की।
इसे भी पढ़ें: Sucheta Kriplani Death Anniversary: भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं सुचेता कृपलानी, आजादी की लड़ाई में दिया था अहम योगदान
राजनीतिक सफर
इसके बाद गुजराल ने दिल्ली नगर निगम से राजनीति में कदम रखा और लंबे समय तक उनकी गिनती इंदिरा गांधी के करीबी में होती रही। फिर साल 1980 में कांग्रेस के साथ उनका सफर समाप्त हुआ और वह जनता दल में शामिल हो गए। गुजराल का मानना था कि यदि भारत को अपना सिक्का पूरी दुनिया में जमाना है, तो पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते अच्छे होने चाहिए। जब साल 1996 में भारत की राजनीति में अस्थिरता का दौर चल रहा था, उस दौरान भी इंद्र कुमार गुजराल राजनीति में सक्रिय थे। लेकिन वह कभी देश के प्रधानमंत्री बनेंगे, ऐसी उन्होंने कभी महत्वकांक्षा नहीं पाली थी।
हर नेता का कटा पत्ता
बता दें कि यूनाइटेड फ्रंट में पीएम के उम्मीदवार लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव थे। लेकिन इस दौरान तक किसी ने गुजराल का नाम तक नहीं लिया। बैठकों के कई दौर चले और बहस बढ़ती गई। जहां मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा सीटें जीतकर आए थे और सरकार में रक्षामंत्री भी थे। ऐसे में उनका प्रधानमंत्री बनना आसान था, तो वहीं दूसरी तरफ लालू यादव भी बिहार की राजनीति में पूरी तरह से चमकता सितारा बन चुके थे। वह पिछड़ों के बड़े नेता थे और पीएम बनने की महत्वकांक्षा भी पाले थे।
लेकिन इस दौरान लालू न मुलायम को पसंद करते थे और मुलायम भी लालू को पीएम बनते नहीं देखना चाहते थे। इस सियासी पेंच के कारण दोनों ही नेताओं का पत्ता कट गया। हालांकि लालू यादव तेज थे, जब वह खुद पीएम नहीं बने तो वह किसी ऐसे को पीएम पद पर देखेंगे, जो उनका करीबी हो। तब नाम आया इंद्र कुमार गुजराल का। सिर्फ मुलायम ही ऐसे नेता थे, जिन्होंने गुजराल का विरोध किया था। अन्य नेताओं को गुजराल के नाम से कोई समस्या नहीं थी।
हैरानी की बात यह रही कि जिस समय पीएम पद के लिए मंथन का दौर चल रहा था, उनमें गुजराल शामिल थे। लेकिन जब पीएम पद के लिए गुजराल के नाम पर मोहर लगी, तब वह एक कमरे में सो रहे थे। असल में बताया जाता है कि गुजराल कई घंटों से चल रही मीटिंग से थक चुके थे, ऐसे में वह मीटिंग छोड़कर चले गए। वहीं जब उनके नाम का ऐलान हुआ, तो टीडीपी के एक सांसद भागकर गए और उन्होंने गुजराल को उठाकर नेताओं का फरमान उनको सुनाया। इस तरह से इंद्र कुमार गुजराल देश के 12वें पीएम बन गए। लेकिन गुजराल की सरकार सिर्फ 11 महीनों तक रहे और उसके बाद फिर से सत्ता का खेल पहले जैसा शुरू हो गया।
अन्य न्यूज़