Guru Arjan Dev Birth Anniversary: गुरु अर्जुन देव ने रखी थी 'स्वर्ण मंदिर' की नींव, जानिए शहादत की मार्मिक गाथा
आज ही के दिन यानी की 15 अप्रैल को सिखों के पांचवे गुरु, गुरु अर्जुन देव का जन्म हुआ था। उन्होंने हमेशा परंपरा का पालन करते हुए गलत चीजों के आगे नहीं झुका। गुरु अर्जुन देव ने शरणागतों की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान कर दिया था।
आज ही के दिन यानी की 15 अप्रैल को सिखों के पांचवे गुरु, गुरु अर्जुन देव का जन्म हुआ था। उन्होंने हमेशा परंपरा का पालन करते हुए गलत चीजों के आगे नहीं झुका। गुरु अर्जुन देव ने शरणागतों की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान कर दिया था। लेकिन वह मुगल शासक जहांगीर के आगे नहीं झुके। गुरु अर्जुन देव मानव सेवा के पक्षधर रहे। वह सिख धर्म के सच्चे बलिदानी थे। बता दें कि उनसे ही सिख धर्म में बलिदान की परंपरा का आगाज हुआ था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर गुरु अर्जुन देव के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
पंजाब के अमृतसर में 15 अप्रैल 1563 को गुरु अर्जुन देव का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम गुरु रामदास और माता का नाम बीवी भानी था। वह अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। वहीं गुरु अर्जुन देव के नाना गुरु अमरदास सिखों के तीसरे गुरु थे। गुरु अमरदास की देखरेख में गुरु अर्जुन देव जी का बचपन बीता था। उनके नाना ने ही गुरु अर्जुन देव को गुरमुखी शिक्षा दी थी। साल 1579 में उनका विवाह गंगाजी के साथ हुआ था।
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स्वर्ण मंदिर की नींव
आपको बता दें कि साल 1581 में गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवे गुरु बने थे। वहीं अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव भी गुरु अर्जुन देव ने रखवाई थी। वर्तमान में इसे स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि गुरु अर्जुन देव ने स्वयं स्वर्ण मंदिर का नक्शा बनाकर तैयार किया था।
गुरु ग्रंथ साहिब
गुरु अर्जुन देव ने भाई गुरदास के सहयोग से श्री गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन किया था। साथ ही गुरु वाणियों का रागों के आधार पर वर्गीकरण भी किया। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु अर्जुन देव के हजारों शब्द हैं। इसके अलावा गुरु अर्जुन देव ने इस पवित्र ग्रंथ में बाबा फरीद, भक्त कबीर, संत रविदास और संत नामदेव जैसे अन्य संत-महात्माओं के भी शब्द हैं।
बलिदान गाथा
गुरु अर्जुन देव के समकालीन मुगल शासक जहांगीर था। जहांगीर ने 1605 में मुगल साम्राज्य संभाला और इसी दौरान गुरु अर्जुन देव के विरोधी सक्रिय हो गए। उनके विरोधी जहांगीर को गुरु अर्जुन देव के खिलाफ भड़काने लगे। इसी बीच जहांगीर के पुत्र शहजाद खुसरो ने पिता से बगावत कर दी। तब जहांगीर शहजाद के पीछे पड़ गया तो शहजाद पंजाब भाग गया। पंजाब में वह खुसरो तरनतारन गुरु साहिब के पास पहुंचा। इस दौरान गुरु अर्जुन देव ने शहजाद का स्वागत कर उसको अपने यहां पनाह दी।
जब इस बात की खबर मुगल शासक जहांगीर को हुई तो वह गुरु अर्जुन देव पर भड़क गया और उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। उधर बाल हरिगोबिंद साहिब को गद्दी सौंपकर गुरु अर्जुन देव स्वयं लाहौर पहुंच गए। मुगल बादशाह ने उन पर बगावत करने का आरोप लगाया। जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी को यातना देकर मारने का आदेश दिया।
मृत्यु
मुगल शासक जहांगीर के आदेश के अनुसार, गुरु अर्जुन देव को पांच दिनों तक तरह-तरह की यातनाएं दी गईं। लेकिन गुरु अर्जुन देव ने शांत रहकर सारी यातनाएं सही। आखिरी समय में ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी यानी की 30 मई 1606 में गुरु अर्जुन देव को लाहौर की भीषण गर्मी में गर्म तवे पर बिठाया गया। फिर उनके ऊपर रेत और गर्म तेल डाला गया। यातना की वजह से जब गुरु अर्जुन देव मूर्छित हो गए, तब उनके शरीर को रावी नदी की धारा में बहा दिया गया। गुरु अर्जुन देव की याद में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब का निर्माण कराया गया। जो वर्तमान समय में पाकिस्तान में है।
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